यिर्मयाह 8

8
1प्रभु कहता है, ‘उन दिनों में शत्रु-सेना के सैनिक यहूदा प्रदेश के मृत राजाओं, उच्‍चाधिकारियों, पुरोहितों, नबियों तथा यरूशलेम के मृत नागरिकों की कबर खोदेंगे, और उनकी हड्डियां कबरों से बाहर निकालेंगे। 2उनकी हड्डियां सूर्य, चन्‍द्रमा और आकाश के तारागणों के सामने बिखरा दी जाएंगी; क्‍योंकि इनसे ही वे प्‍यार करते थे। इन की ही उन्‍होंने सेवा की थी, और इनका ही अनुसरण किया था। वे इन से ही शकुन विचारते थे, और इनकी ही पूजा करते थे। उनके इन्‍हीं दुष्‍कर्मों के कारण उनकी हड्डियां एकत्र नहीं की जाएंगी, और न वे पुन: गाड़ी जाएंगी। कूड़े के ढेर की तरह उनकी हड्डियों का ढेर जमीन पर पड़ा रहेगा।#2 रा 9:36 3इस दुष्‍ट पीढ़ी के बचे हुए लोग जीवन की नहीं, मृत्‍यु की कामना करेंगे। जिन देशों में मैं उनको खदेड़ दूंगा, वहां वे जीवित रहना नहीं चाहेंगे,’ स्‍वर्गिक सेनाओं के प्रभु की यही वाणी है।
पथ-भ्रष्‍ट इस्राएली कौम
4‘ओ यिर्मयाह, तू उन से यह कहना,
प्रभु यों कहता है;
जब आदमी गिरता है,
तब क्‍या वह फिर नहीं उठता?
जब कोई मनुष्‍य मार्ग से भटक जाता है,
तब क्‍या वह लौटता नहीं है?
5तो फिर यह इस्राएली कौम
जो अपने मार्ग से भटक गई है,
क्‍या सदा भटकती ही रहेगी?
वे अपनी भूलों को गले लगाए हुए हैं,
और पश्‍चात्ताप करने से इन्‍कार करते हैं।
6मैं ध्‍यान से उनकी बातें सुनता हूं,
किन्‍तु वे उचित बात बोलते ही नहीं!
एक भी आदमी अपने दुष्‍कर्म के लिए
पश्‍चात्ताप नहीं करता;
बल्‍कि वह कहता है, “मैंने किया ही क्‍या है?”
जैसे घोड़ा युद्ध के मैदान में
बिना समझे-बूझे अपनी नाक की सीध में
दौड़ता है,
वैसे ही यह जाति मनमाना आचरण कर रही है।
7आकाश का लकलक पक्षी भी
अपने नियत समय को जानता है;
पण्‍डुकी, सूपाबेनी और सारस भी
अपने लौटने का समय जानते हैं।
किन्‍तु शोक! मेरे निज लोग
अपने प्रभु के न्‍याय-सिद्धान्‍तों को नहीं
जानते।#यश 1:3
प्रभु की व्‍यवस्‍था की उपेक्षा
8‘तुम यह कैसे कह सकते हो
कि तुम बुद्धिमान हो,
और मेरी व्‍यवस्‍था तुम्‍हारे साथ है?
किन्‍तु देखो, शास्‍त्रियों ने उसका क्‍या
किया?
अपनी झूठी कलम से उसको भी झूठ बना
दिया।
9बुद्धिमान लोग अपमानित होंगे;
वे विस्‍मित होंगे,
और अपने ही जाल में फंस जाएंगे।
उन्‍होंने भी प्रभु के वचन को
अस्‍वीकार कर दिया,
तो क्‍या उनमें बुद्धि रहेगी?
10अत: मैं उनकी स्‍त्रियां और उनके खेत
विजेता शत्रुओं के हाथ में सौंप दूंगा।
क्‍योंकि छोटे से बड़े तक, हर कोई मनुष्‍य
अन्‍याय से कमाए गए धन का लोभी बन
गया है।
नबी से पुरोहित तक
सब मनुष्‍य झूठ का सौदा करते हैं।
11वे मेरे निज लोगों के घावों पर
झूठ का मलहम लगाते हैं।
वे उनसे कहते हैं, “तुम्‍हारा कल्‍याण होगा,”
जबकि कल्‍याण होगा ही नहीं।#यिर 6:14; यहेज 13:10
12जब वे घृणित कार्य करते हैं,
तब क्‍या वे लज्‍जित होते हैं?
नहीं, उनकी आंखों में शर्म-लज्‍जा
का पानी मर गया है।
दुष्‍कर्म करते समय
पश्‍चात्ताप की भावना उनमें उभरती ही नहीं।
इसलिए विनाश होनेवालों में
वे भी नष्‍ट होंगे।
जब मैं यरूशलेम के निवासियों को दण्‍ड
दूंगा,
तब नबी और पुरोहित भी ठोकर खाकर
गिर जाएंगे।’ प्रभु की यह वाणी है।
13‘जब मैं उन “बुद्धिमानों” से फसल एकत्र
करूंगा,
तब अंगूर-बेल में न अंगूर होंगे,
और न अंजीर वृक्ष में अंजीर।
पत्तियां भी सूख जाएंगी।
जो मैंने उनको दिया है,
वह भी उनके हाथ से निकल जाएगा।’#यश 5:1; मत 21:19; लू 13:6
14लोग आपस में बोलते हैं:
‘हम हाथ पर हाथ रखे हुए
क्‍यों बैठे रहें?
आओ, एकत्र हों,
और किलाबंद नगरों में शरण लें,
और वहां दम तोड़ें।
हमारे प्रभु परमेश्‍वर ने
हमें मार डालने का दृढ़ निश्‍चय कर रखा है।
उसने हमें विष का प्‍याला पीने को दिया है;
क्‍योंकि हमने उस के प्रति पाप किया है।
15हम कल्‍याण की बाट जोहते रहे,
पर वह नहीं आया।
हम स्‍वस्‍थ होने की प्रतीक्षा कर ररहे थे,
पर देखो, हम पर आतंक छा गया।
16शत्रु के घोड़ों की हिनहिनाहट
दान क्षेत्र से सुनाई दे रही है;
उनके शक्‍तिशाली अश्वों के फुर्राने से सारा
देश कांप उठा है।
शत्रु आ रहे हैं;
वे भूमि की फसल को,
और जो कुछ देश में है, उस सब को
नगरों को, और नागरिकों को
पूर्णत: नष्‍ट कर रहे हैं।’
17और देखो, प्रभु कहता है, ‘मैं तुम्‍हारे बीच
में नाग और सर्प भेजूंगा,
जिन पर मंत्र न चलेगा;
वे तुमको डस लेंगे।’
नबी यिर्मयाह का दु:ख
18मेरा दु:ख असहनीय है।
शोक में मेरा हृदय डूब रहा है।
19मेरे नगर के निवासियों की,
यरूशलेम के नागरिकों की करुण चीख-
पुकार सुनाई दे रही है।
सारे देश में एक छोर से दूसरे छोर तक,
लोग कह रहे हैं, ‘क्‍या सियोन में प्रभु नहीं है?
क्‍या सियोन का राजा सियोन को त्‍याग
चुका है?’
प्रभु ने कहा,
‘इन लोगों ने अपनी मूर्ति-पूजा से,
विदेशियों की निस्‍सार मूर्तियों की प्रतिष्‍ठा से
मेरी क्रोधाग्‍नि क्‍यों भड़कायी?’
20लोग कहते हैं, ‘फसल कट चुकी,
फल पकने की ऋतु समाप्‍त हो गई
फिर भी हमारा उद्धार नहीं हुआ!’
21मेरे लोगों के दु:ख के कारण
मेरा हृदय भी दु:खी है;
मैं शोक मनाता हूं,
मैं आश्‍चर्य में डूबा हुआ हूं।
22क्‍या गिलआद प्रदेश की बलसान औषधि
समाप्‍त हो गई?
क्‍या वहां अब वैद्य भी नहीं रहे?
तब मेरे लोगों के घाव क्‍यों नहीं भर रहे हैं?

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