अय्‍यूब 41

41
1 # 41:1 मूल में, अध्‍याय 40:25 ‘क्‍या तू समुद्र-राक्षस लिव्‍यातान को
अथवा मगरमच्‍छ को
बंसी के काँटे से फँसाकर खींच सकता है?
या रस्‍सी से उसकी जीभ बाँध सकता है?#भज 74:14; यश 27:1
2क्‍या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता है;
या काँटे से उसका जबड़ा छेद सकता है?
3क्‍या वह अपने प्राण बचाने के लिए
तुझसे अनुनय-विनय करेगा;
अथवा तुझसे मीठी बातें बोलेगा?
4क्‍या वह तेरे साथ सन्‍धि करेगा
जिससे तू उसको आजीवन अपना सेवक
बनाए?
5जैसे तू पक्षी से खेलता है
क्‍या वैसे ही तू उससे खेल सकता है?
अथवा अपनी पुत्रियों का दिल बहलाने के
लिए
उसको बाँध कर रख सकता है?
6क्‍या मछुए उसकी बिक्री कर सकते हैं?
क्‍या व्‍यापारी आपस में उसको बाँट सकते
हैं?
7क्‍या तू उसका चमड़ा बरछी से बेध सकता
है;
अथवा मछुए के त्रिशूलों से
क्‍या तू उसका सिर फोड़ सकता है?
8तुझमें हिम्‍मत है तो उसको हाथ लगा!
यह लड़ाई तुझे सदा याद रहेगी!
फिर कभी ऐसा करने का साहस तुझे न
होगा।
9 # 41:9 मूल में, अध्‍याय 40:1 निस्‍सन्‍देह मगरमच्‍छ को पकड़ने की आस
मात्र दुराशा है;
मनुष्‍य उसके दर्शन मात्र से मुँह के बल गिर
पड़ता है।
10मनुष्‍य इतना दुस्‍साहसी नहीं है कि
वह उसको भड़काए?
तब कौन मनुष्‍य मेरे सामने खड़ा हो सकता
है?
11क्‍या कभी किसी मनुष्‍य ने मुझे उधार दिया
है कि
मैं उसको लौटाऊं?
आकाश के नीचे की सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी मेरी ही
है।#रोम 11:35
12‘मैं उसके शरीर के अंगों के विषय में कुछ
न छिपाऊंगा,
उसकी महाशक्‍ति और शरीर की
सुन्‍दर बनावट के विषय में तुझे बताऊंगा।
13क्‍या कोई मनुष्‍य
उसकी ऊपरी चमड़ी को उतार सकता है?
उसके दुहरे चर्म-कवच को कौन बेध
सकता है?
14क्‍या कोई मनुष्‍य उसके जबड़े खोल सकता
है?
उसके दाँतों के चारों ओर आतंक रहता है।
15उसकी पीठ ढाल-समूहों की बनी है;
मानो उनको मुहर से बन्‍द कर दिया गया है।
16वे एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं,
कि उनके बीच से वायु भी नहीं गुजर
सकती।
17वे आपस में मिले हुए हैं,
वे आपस में सटे हुए हैं,
कि वे अलग-अलग नहीं किए जा सकते
हैं।
18उसकी छींक से प्रकाश चमक उठता है;
उसकी आँखें ऊषा की तरह ज्‍योतिर्मय
होती हैं।
19उसके मुँह से अग्‍नि शिखाएँ निकलती हैं,
उसके मुँह से आग की चिन्‍गारियाँ छूटती
हैं।
20जैसे खौलती हुई हांडी से,
जलते हुए नरकटों से धुआं निकलता है
वैसे ही उसके नथुनों से निकलता है।
21उसकी सांस से कोयले सुलग जाते हैं,
उसके मुँह से आग की ज्‍वाला निकलती है।
22उसकी गर्दन में शक्‍ति का निवास है;
उसके सामने आतंक नाचता है।
23उसके मांस की परतें परस्‍पर जुड़ी हैं,
वे मजबूती से सटी हैं, और नहीं हिलतीं।
24उसका दिल पत्‍थर की तरह कड़ा है;
वह चक्‍की के निचले पाट के समान मजबूत
है।
25जब वह उठता है तब शक्‍तिशाली पुरुष भी
डर जाते हैं;
उसको देखकर उनके होश उड़ जाते हैं।
26उस पर तलवार से वार करने पर भी
उस पर असर नहीं होता;
न भाले का, न बर्छी का और न सांग का।
27वह लोहे को तिनका समझता है,
और पीतल को सड़ी लकड़ी।
28तीर से वह भागता नहीं;
गोफन से फेंके गए पत्‍थर उसे भूसे जैसे
लगते हैं।
29लाठियों की मार भी उसको फूल जैसी
लगती है;
वह सांग के वार पर हँसता है।
30उसके शरीर के निचले भाग
पैनी ठिकरियों के समान हैं;
वह कीचड़ पर मानो हेंगा फेरता है।
31वह गहरे समुद्र को
हांडी के जल के समान मथता है;
वह नील नदी को काढ़े के समान बना देता
है।
32वह अपने पीछे एक चमकीली लीक छोड़
जाता है;
जिसके कारण सागर सफेद दिखाई देता है।
33उसके समान निडर प्राणी
पृथ्‍वी पर दूसरा कोई नहीं है।
34वह बड़े से बड़े प्राणी का निर्भयता से सामना
करता है;
वह समस्‍त महाशक्‍तिशाली प्राणियों का
राजा है।’

वर्तमान में चयनित:

अय्‍यूब 41: HINCLBSI

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