योना 4
4
परमेश्वर से योना की शिकायत
1किन्तु योना को परमेश्वर का यह निर्णय बहुत बुरा लगा। वह प्रभु परमेश्वर से नाराज हो गया।#लू 15:28 2उसने प्रभु से प्रार्थना की। उसने कहा, ‘प्रभु, मेरी तुझसे यह प्रार्थना है: जब मैं अपने देश में था, तब मैंने तुझ से यही तो कहा था; अब तो वही बात हुई। इसी कारण मैं तुरन्त तर्शीश नगर को भागा था। मैं जानता था कि तू कृपालु और दयालु परमेश्वर है। तू विलम्ब से क्रोध करने वाला और करुणा का सागर है। तू विपत्ति ढाहने के अपने निर्णय को बदलता भी है।#नि 34:6 3इसलिए अब मैं तुझसे यह विनती करता हूं: हे प्रभु, तू मेरा प्राण मुझसे ले ले। मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्छा है।’#1 रा 19:4
4प्रभु ने योना से कहा, ‘क्या तेरा यह क्रोध उचित है?’
5तब योना नगर से बाहर निकला। वह नगर के पूर्व में रहने लगा। उसने अपने सिर पर एक छप्पर डाला। वह छप्पर की छाया में बैठ गया और देखने लगा कि नगर का अब क्या होगा।
6प्रभु परमेश्वर ने योना के सिर के ऊपर अंडी का एक पेड़ उगाया कि वह योना के सिर पर छाया करे और उसे आराम दे सके। योना इस पेड़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ।
7दूसरे दिन जब प्रात:काल हुआ, तब परमेश्वर ने एक कीड़े को भेजा। कीड़े ने अंडी के पेड़ को काटा और अंडी का पेड़ सूख गया। 8जब सूरज निकला तब परमेश्वर ने पूर्व दिशा से गरम हवा बहाई। योना के सिर पर सूरज की किरणें पड़ीं और वह बेहोश हो गया। योना मृत्यु की इच्छा करने लगा। उसने कहा, ‘मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्छा है।’ 9तब परमेश्वर ने योना से पूछा, ‘क्या यह उचित है कि तू अंडी के पेड़ के कारण नाराज हो?’ योना ने उत्तर दिया, ‘मेरा क्रोध उचित है। इसलिए मैं नाराज हूं। मैं मर जाना चाहता हूं।’ 10प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ‘तू उस अंडी के पेड़ के लिए दु:खित है जिसके लिए तूने कोई परिश्रम नहीं किया। तूने उसको न लगाया था और न बड़ा किया था। वह एक रात में उगा और दूसरी रात में नष्ट हो गया। 11सुन, इस महानगर नीनवे में एक लाख बीस हजार से ज्यादा अबोध बच्चे हैं, जो अपने दाएं-बाएं हाथ का भी अन्तर नहीं पहचानते। इसके अतिरिक्त निर्दोष पशु भी हैं। तब क्या मुझे इस महानगर के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए?’
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