लूकस 12
12
पाखंड के विरुद्ध शिक्षा
1इतने में हजारों लोगों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि लोग एक दूसरे को कुचल रहे थे। तब येशु पहले अपने शिष्यों से कहने लगे, “फरीसियों के कपटरूपी खमीर से सावधान रहो।#मत 16:6; मक 8:15 2ऐसा कुछ भी ढका हुआ नहीं है, जो उघाड़ा नहीं जाएगा#मत 10:26-33 और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जाएगा।#लू 8:17 3इसलिए, तुम ने जो अंधेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जाएगा और तुम ने जो कोठरियों में फुसफुसा कर कहा है, वह छतों से पुकार-पुकार कर कहा जाएगा।
किससे डरना चाहिए?
4“मैं तुम से, अपने मित्रों से कहता हूँ−जो लोग शरीर को मार डालते हैं, परन्तु उसके बाद और कुछ नहीं कर सकते, उन से नहीं डरो। 5मैं तुम्हें बताता हूँ कि किस से डरना चाहिए। उस से डरो, जिसमें तुम्हें मारने के बाद नरक में डालने की शक्ति#12:5 अथवा, ‘का अधिकार’ । है। हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, उसी से डरो।
6“क्या दो पैसे में पाँच गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी परमेश्वर उन में से एक को भी नहीं भुलाता है। 7हाँ, तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। डरो मत। तुम बहुत गौरैयों से बढ़ कर हो।#लू 21:18
8“मैं तुम से कहता हूँ : जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मानव-पुत्र भी परमेश्वर के दूतों के सामने स्वीकार करेगा। 9परन्तु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, वह परमेश्वर के दूतों के सामने अस्वीकार किया जाएगा।#लू 9:26
10“जो मानव-पुत्र के विरुद्ध कुछ कहेगा, उसे क्षमा मिल जाएगी, परन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करेगा उसे क्षमा नहीं मिलेगी।#मत 12:32; मक 3:28-29
11“जब वे तुम्हें सभागृहों, न्यायाधीशों और शासकों के सामने खींच ले जाएँगे, तो यह चिन्ता न करना कि तुम कैसे और क्या उत्तर दोगे अथवा अपनी ओर से क्या कहोगे;#लू 21:14-15; मत 10:19-20 12क्योंकि उस घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखा देगा कि तुम्हें क्या कहना चाहिए।”
मूर्ख धनवान का दृष्टान्त
13भीड़ में से किसी ने येशु से कहा, “गुरुवर! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे साथ पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर ले।” 14उन्होंने उसे उत्तर दिया, “भाई! किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया है?”#नि 2:14; प्रे 7:27
15तब येशु ने लोगों से कहा, “सावधान! हर प्रकार के लोभ से बचो; क्योंकि किसी के पास कितनी ही सम्पत्ति क्यों न हो, उस सम्पत्ति की प्रचुरता में उस का जीवन नहीं है।”#1 तिम 6:9-10 16फिर येशु ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, “किसी धनवान की भूमि पर बहुत फसल हुई। 17उसने अपने मन में इस प्रकार विचार किया, ‘अब मैं क्या करूँ? मेरे पास अपनी उपज रखने के लिए जगह नहीं है।’ 18तब उसने कहा, ‘मैं यह करूँगा। अपने भण्डारगृह तोड़ कर उन से और बड़े भण्डारगृह बनवाऊंगा, और उन में अपना सारा अनाज और अपना माल इकट्ठा करूँगा 19और अपने प्राण से कहूँगा−ओ मेरे प्राण! तेरे पास बरसों के लिए बहुत-सी सम्पत्ति रखी है, इसलिए विश्राम कर, खा-पी और मौज उड़ा।’#प्रव 11:19 20परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा, ‘मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा और तूने जो इकट्ठा किया है, वह अब किसका होगा?’#इब्र 9:27 21यही दशा उन लोगों की होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करते हैं, किन्तु परमेश्वर की दृष्टि में वे धनी नहीं हैं।”#मत 6:20
परमेश्वर पर भरोसा
22येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो−न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खाएँगे और न अपने शरीर की, कि हम क्या पहनेंगे;#मत 6:25-33 23क्योंकि जीवन भोजन से और शरीर वस्त्र से बढ़ कर है। 24कौओं पर ध्यान दो। वे न तो बोते हैं और न काटते हैं; उनके न तो भण्डारगृह हैं, न खलियान। फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है। तुम पक्षियों से कहीं बढ़ कर हो।#भज 147:9 25चिन्ता करने से तुम में से कौन अपनी आयु घड़ी भर भी बढ़ा सकता है?#12:25 इस पद का अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है : “अपने शरीर की लम्बाई एक हाथ और बढ़ा सकता है।” 26यदि तुम इतना छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो फिर दूसरी बातों की चिन्ता क्यों करते हो?
27“फूलों पर ध्यान दो। वे कैसे बढ़ते हैं! वे न तो श्रम करते हैं और न कातते हैं। फिर भी मैं तुम से कहता हूँ कि राजा सुलेमान भी अपने समस्त वैभव में उन में से किसी एक के समान विभूषित नहीं था। 28यदि परमेश्वर घास को, जो आज मैदान में है और कल आग में झोंक दी जाएगी, इस प्रकार पहनाता है, तो अल्पविश्वासियो! वह तुम्हें क्यों नहीं पहनाएगा? 29इसलिए तुम भी इस खोज में न रहो कि तुम क्या खाओगे अथवा क्या पीओगे, और न चिन्ता करो। 30इन सब वस्तुओं की खोज तो संसार की जातियाँ करती हैं। तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इनकी जरूरत है। 31इसलिए उसके राज्य की खोज में लगे रहो और ये वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी। 32हे छोटे झुण्ड! मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है।#लू 22:29; यश 41:14
सच्चा धन
33“अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसे बटुए तैयार करो, जो कभी छीजते नहीं। स्वर्ग में अक्षय धन जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खाते हैं;#मत 6:20-21 34क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहीं तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।
चौकसी
35“तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें#मत 24:42-51 ।#नि 12:11; 1 पत 1:13 36तुम उन सेवकों के सदृश बनो, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह विवाह-भोज से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें।#मत 25:1-13 37धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पाएगा! मैं तुम से सच कहता हूँ : स्वामी अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठाएगा और एक-एक को भोजन परोसेगा।#यो 13:4 38और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर भी उसी प्रकार जागता हुआ पाएगा! 39यह अच्छी तरह समझ लो−यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आएगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।#1 थिस 5:2 40तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की कल्पना भी नहीं करते, उसी घड़ी मानव-पुत्र आ जाएगा।”
ईमानदार और बेईमान प्रबंधक
41पतरस ने पूछा, “प्रभु! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए कह रहे हैं या सब के लिए?” 42प्रभु ने कहा, “कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान प्रबंधक है, जिसे उसका स्वामी अपने सेवक-सेविकाओं पर नियुक्त करे ताकि वह निश्चित् समय पर उन्हें निर्धारित भोजन दे?#2 तिम 2:15 43धन्य है वह सेवक, जिसका स्वामी लौटने पर उसे ऐसा करता हुआ पाएगा! 44मैं तुम से सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी नियुक्त करेगा।#मत 25:21 45परन्तु यदि वह सेवक अपने मन में कहे, ‘मेरा स्वामी आने में देर कर रहा है’ और वह दास-दासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे, 46तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी जिसे वह नहीं जानता होगा। तब स्वामी उसे कठोर दंड देगा#12:46 अथवा, “उसको निकाल देगा” अथवा, “उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालेगा।” । इस प्रकार उसका अंत वही होगा जो अविश्वासियों का होता है।
47“अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया, वह बहुत मार खाएगा।#याक 4:17 48परन्तु जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया, वह थोड़ी मार खाएगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जाएगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से और अधिक ले लिया जाएगा।
विभाजन का कारण
49“मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ और मैं कितना चाहता हूँ कि यह अभी धधक उठे! 50मुझे एक बपतिस्मा लेना है#12:50 शब्दश:, “डूबना, समा जाना”। और जब तक वह पूर्ण नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!#मत 20:22; 26:38; यो 12:27
51“क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, नहीं। मैं फूट डालने आया हूँ।#मत 10:34-36 52क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध। 53वे एक-दूसरे का विरोध करेंगे : पिता अपने पुत्र के विरुद्ध होगा और पुत्र अपने पिता के विरुद्ध। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।”#मी 7:6
समय की पहचान
54येशु ने भीड़ से यह भी कहा, “यदि तुम पश्चिम से बादल उमड़ते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, ‘वर्षा होने वाली है’ और ऐसा ही होता है।#मत 16:2-3 55जब दक्षिण की हवा चलती है, तो कहते हो, ‘लू चलेगी’ और ऐसा ही होता है। 56ढोंगियो! यदि तुम आकाश और पृथ्वी के लक्षण पहचान सकते हो, तो इस समय के लक्षण क्यों नहीं पहचानते?
मुद्दई से समझौता
57“तुम स्वयं क्यों नहीं फैसला कर लेते कि न्यायसंगत क्या है? 58जब तुम अपने मुद्दई के साथ दण्डाधिकारी के पास जा रहे हो, तो मार्ग में ही उस से समझौता करने की कोशिश करो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाधीश के पास खींच ले जाए और न्यायाधीश तुम्हें सिपाही के हवाले कर दे और सिपाही तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।#मत 5:25-26 59मैं तुम से कहता हूँ, जब तक तुम कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं छूटने पाओगे।”
वर्तमान में चयनित:
लूकस 12: HINCLBSI
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