लूकस 7

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कफ़रनहूम का शतपति
1जनता को अपने ये सब उपदेश सुनाने के बाद येशु कफरनहूम नगर में आए।#मत 8:5-13 2वहाँ किसी रोमन शतपति का अत्‍यन्‍त प्रिय सेवक गंभीर रूप से बीमार था, और मृत्‍यु के निकट था।#यो 4:47 3जब शतपति ने येशु की चर्चा सुनी तो उसने यहूदियों के कुछ धर्मवृद्धों को येशु के पास यह निवेदन करने के लिए भेजा कि वह आ कर उसके सेवक को स्‍वस्‍थ करें। 4वे येशु के पास आए और आग्रह के साथ उनसे निवेदन किया। उन्‍होंने कहा, “वह शतपति इस योग्‍य है कि आप उसके लिए ऐसा करें। 5वह हमारी कौम से प्रेम करता है और उसी ने हमारे लिए सभागृह बनवाया है।” 6येशु उनके साथ चले। वह उसके घर के निकट पहुँचे ही थे कि शतपति ने मित्रों द्वारा येशु के पास यह कहला भेजा, “प्रभु! आप कष्‍ट न करें, क्‍योंकि मैं इस योग्‍य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आएँ। 7इसलिए मैंने अपने को इस योग्‍य नहीं समझा कि आपके पास आऊं। आप एक शब्‍द ही कह दीजिए और मेरा सेवक स्‍वस्‍थ हो जाएगा। 8मैं स्‍वयं शासन के अधीन रहता हूँ और सैनिक मेरे अधीन हैं। जब मैं एक से कहता हूँ−‘जाओ’, तो वह जाता है और दूसरे से−‘आओ’, तो वह आता है और अपने सेवक से−‘यह करो’, तो वह करता है।” 9यह सुन कर येशु को उस पर आश्‍चर्य हुआ। उन्‍होंने अपने पीछे आते हुए लोगों की ओर मुड़ कर कहा, “मैं तुम लोगों से कहता हूँ : इस्राएल में भी मैंने इतना दृढ़ विश्‍वास नहीं पाया।” 10और भेजे हुए लोगों ने घर लौट कर उस सेवक को स्‍वस्‍थ पाया।
विधवा के मृत पुत्र को जीवन-दान
11इसके कुछ समय बाद#7:11 कुछ अन्‍य प्राचीन प्रतियों में, ‘दूसरे दिन’ येशु नाईन नगर को गये। उनके साथ उनके शिष्‍य और एक विशाल जनसमूह भी गया। 12जब वे नगर के प्रवेश-द्वार के निकट पहुँचे, तब लोग एक मुरदे को बाहर ले जा रहे थे। वह अपनी माँ का एकलौता पुत्र था और माँ विधवा थी। नगर के बहुत-से लोग उसके साथ थे।#लू 8:42; 1 रा 17:17 13माँ को देख कर प्रभु का हृदय दया से भर गया। उन्‍होंने उससे कहा, “मत रोओ”, 14और पास आ कर उन्‍होंने अरथी को स्‍पर्श किया। इस पर अरथी को कंधा देने वाले रुक गये। येशु ने कहा, “युवक! मैं तुम से कहता हूँ, उठो!” 15मुरदा उठ बैठा और बोलने लगा। येशु ने उसको उसकी माँ को सौंप दिया।#1 रा 17:23; 2 रा 4:36 16सब लोगों पर भय छा गया और वे यह कहते हुए परमेश्‍वर की महिमा करने लगे, “हमारे बीच महान् नबी उत्‍पन्न हुए हैं और परमेश्‍वर ने अपनी प्रजा की सुध ली है।”#लू 1:68; 19:44 17येशु के विषय में यह बात सारे यहूदा देश और आसपास के समस्‍त क्षेत्र में फैल गयी।
योहन बपतिस्‍मादाता का प्रश्‍न
18योहन के शिष्‍यों ने योहन को इन सब बातों की खबर सुनायी।#मत 11:2-19 19योहन ने अपने दो शिष्‍यों को बुला कर प्रभु के पास यह पूछने भेजा, “क्‍या आप वही हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?”#भज 40:7; 118:26; मल 3:1; दान 9:26 20इन दो शिष्‍यों ने येशु के पास आकर कहा, “योहन बपतिस्‍मादाता ने हमें आपके पास यह पूछने भेजा है−क्‍या आप वही हैं जो आने वाले हैं या हम किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?”
21उसी समय येशु ने बहुतों को बीमारियों, कष्‍टों और दुष्‍टात्‍माओं से मुक्‍त किया और बहुत-से अन्‍धों को दृष्‍टि प्रदान की। 22उन्‍होंने योहन के शिष्‍यों से कहा, “जाओ, तुम जो सुनते और देखते हो, उसे योहन को बता दो कि अन्‍धे देखते हैं, लंगड़े चलते हैं, कुष्‍ठ-रोगी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं, और गरीबों को शुभ समाचार सुनाया जाता है।#यश 35:5; 61:1 23धन्‍य है वह, जो मेरे विषय में भ्रम में नहीं पड़ता।”#7:23 अथवा, ‘जिसका विश्‍वास मेरे कारण विचलित नहीं होता।’ अथवा, “जो मुझ पर संदेह नहीं करता।”
24योहन द्वारा भेजे हुए शिष्‍यों के चले जाने के बाद येशु लोगों से योहन के विषय में कहने लगे, “तुम निर्जन प्रदेश में क्‍या देखने गये थे? हवा से हिलते हुए सरकण्‍डे को? नहीं! 25तो, तुम क्‍या देखने गये थे? बढ़िया कपड़े पहने मनुष्‍य को? नहीं! कीमती वस्‍त्र पहनने वाले और भोग-विलास में जीवन बिताने वाले लोग महलों में रहते हैं। 26फिर तुम क्‍या देखने निकले थे? किसी नबी को? निश्‍चय ही! मैं तुम से कहता हूँ−नबी से भी महान् व्यक्‍ति को।#लू 1:76 27यह वही है, जिसके विषय में धर्मग्रन्‍थ में लिखा है : ‘परमेश्‍वर कहता है−देखो, मैं अपने दूत को तुम्‍हारे आगे भेज रहा हूँ। वह तुम्‍हारे आगे तुम्‍हारा मार्ग तैयार करेगा।’#मल 3:1
28“मैं तुम से कहता हूँ : जो स्‍त्रियों से उत्‍पन्न हुए हैं, उन में योहन से महान् कोई नहीं। फिर भी परमेश्‍वर के राज्‍य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है।”#लू 1:15
इस पीढ़ी को धिक्‍कार
29सारी जनता और चुंगी-अधिकारियों ने जब यह सुना, तो उन्‍होंने योहन का बपतिस्‍मा लेने के कारण परमेश्‍वर की धार्मिकता स्‍वीकार की।#7:29 अथवा, ‘परमेश्‍वर की इच्‍छा पूरी की’#लू 3:7,12; मत 21:32 30परन्‍तु फरीसियों और व्‍यवस्‍था के आचार्यों ने उनका बपतिस्‍मा ग्रहण नहीं कर अपने विषय में परमेश्‍वर की योजना व्‍यर्थ कर दी।#प्रे 13:46
31येशु ने आगे कहा, “मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किस से करूँ? वे किसके सदृश हैं? 32वे बाजार में बैठे हुए बालकों के सदृश हैं, जो एक-दूसरे को पुकार कर कहते हैं :
‘हमने तुम्‍हारे लिए बाँसुरी बजायी,
पर तुम नहीं नाचे;
हमने विलाप किया,
किन्‍तु तुम नहीं रोये।’
33योहन बपतिस्‍मादाता आए। वह न रोटी खाते और न दाखरस पीते हैं। इस पर भी तुम कहते हो, ‘उनमें भूत लगा है।’#लू 15:2 34मानव-पुत्र आया। वह आम आदमी के समान खाता-पीता है और तुम कहते हो, ‘देखो, यह आदमी पेटू और पियक्‍कड़ है। चुंगी-अधिकारियों और पापियों का मित्र है।’ 35किन्‍तु परमेश्‍वर की प्रज्ञ उसकी समस्‍त प्रजा द्वारा प्रमाणित हुई है।”#7:35 अथवा, ‘बुद्धि अपनी सब संतानों द्वारा प्रमाणित होती है।’
पापिनी स्‍त्री
36किसी फ़रीसी ने येशु को अपने साथ भोजन करने के लिए निमन्‍त्रण दिया। वह उस फरीसी के घर गए और भोजन करने के लिए आसन ग्रहण किया।#लू 11:37 37नगर की एक पापिनी स्‍त्री को यह पता चला कि येशु उस फरीसी के यहाँ भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी#मत 26:7-13; यो 12:3-8 38और रोती हुई येशु के पीछे उन के चरणों के पास#7:38 भोज के समय मेहमान सोफे पर शायित स्‍थिति में भोजन करते थे। उनके चरण बाहर की ओर होते थे। खड़ी हो गयी। वह अपने आँसुओं से येशु के चरण धोने, और अपने केशों से उन्‍हें पोंछने लगी। वह बार-बार उनके चरणों को चूमती और उन पर इत्र लगा रही थी।
39जिस फरीसी ने येशु को निमन्‍त्रण दिया था, उसने यह देख कर मन-ही-मन कहा, “यदि यह आदमी नबी होता, तो अवश्‍य जान जाता कि जो स्‍त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है−वह तो पापिनी है।” 40इस पर येशु ने उससे कहा, “शिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है।” उसने उत्तर दिया, “गुरुवर! कहिए।” 41येशु ने कहा, “किसी महाजन के दो कर्ज़दार थे। एक पाँच सौ सिक्‍कों#7:41 मूल में, ‘दीनार’। एक सिक्‍के का मूल्‍य एक दिन की मजदूरी है। का ऋणी था और दूसरा, पचास का। 42उनके पास कर्ज चुकाने के लिए कुछ नहीं था; इसलिए महाजन ने दोनों को माफ कर दिया। उन दोनों में कौन उससे अधिक प्रेम करेगा?” 43शिमोन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ हुआ।” येशु ने उससे कहा, “तुम्‍हारा निष्‍कर्ष ठीक है।” 44तब उन्‍होंने उस स्‍त्री की ओर मुड़ कर शिमोन से कहा, “इस स्‍त्री को देखते हो? मैं तुम्‍हारे घर आया। तुमने मुझे पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसुओं से धोये और अपने केशों से उनको पोंछा।#उत 18:4 45तुमने मेरा चुम्‍बन नहीं किया; परन्‍तु जब से मैं भीतर आया हूँ, यह मेरे पैर चूमती रही है।#रोम 16:16 46तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है। 47इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, इसके पाप जो बहुत हैं, क्षमा हो गये हैं, क्‍योंकि#7:47 अथवा, ‘यह इस बात से स्‍पष्‍ट है कि’ इसने बहुत प्रेम किया है। पर जिसे थोड़ा क्षमा किया गया, वह प्रेम भी थोड़ा करता है।” 48तब येशु ने उस स्‍त्री से कहा, “तुम्‍हारे पाप क्षमा हो गये।”#लू 5:20-21 49साथ भोजन करने वाले एक-दूसरे से कहने लगे, “यह कौन है, जो पापों को भी क्षमा करता है?” 50पर येशु ने उस स्‍त्री से कहा, “तुम्‍हारे विश्‍वास ने तुम्‍हारा उद्धार किया है। शान्‍ति से जाओ।”#लू 8:48; 17:19; 18:42

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