मत्ती 10
10
बारह प्रेरितों के नाम
1येशु ने अपने बारह शिष्यों को अपने पास बुला कर#मक 6:7-13; लू 9:1-5 उन्हें अशुद्ध आत्माओं को निकालने तथा हर तरह की बीमारी और दुर्बलता दूर करने का अधिकार प्रदान किया।
2बारह प्रेरितों#10:2 अर्थात्, भेजा गया व्यक्ति, प्रेषित के नाम इस प्रकार हैं#मक 3:14-19; लू 6:13-16; यो 1:40-49 − पहला, सिमोन जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रेयास; जबदी का पुत्र याकूब और उसका भाई योहन; 3फिलिप और बरतोलोमी; थोमस और चुंगी-अधिकारी मत्ती; हलफई का पुत्र याकूब और तद्दै; 4शिमोन कनानी और यूदस#10:4 अथवा, ‘यहूदा’ इस्करियोती, जिसने येशु को पकड़वाया।
प्रेरितों का प्रेषण
5येशु ने इन बारहों को यह आदेश दे कर भेजा, “अन्यजातियों के यहाँ मत जाओ और न सामरियों के नगरों में प्रवेश करो, 6बल्कि इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास जाओ।#मत 15:24; प्रे 13:46; यिर 50:6 7राह चलते यह संदेश सुनाओ : ‘स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।’#मत 4:17; लू 10:9 8रोगियों को स्वस्थ करो, मुरदों को जिलाओ, कुष्ठरोगियों को शुद्ध करो, भूतों को निकालो। तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो।#प्रे 20:33
9“अपनी थैली#10:9 शब्दश: ‘अपने फेंटे में’ में सोना, चाँदी या पैसा नहीं लो। 10रास्ते के लिए न झोली, न दो कुरते, न जूते, और न लाठी लो; क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।#लू 10:4; 1 तिम 5:18; गण 18:31
11“जिस किसी नगर या गाँव में प्रवेश करो, तो पता लगाओ कि वहाँ कौन सुपात्र है और विदा होने तक उसी के यहाँ ठहरो। 12घर में प्रवेश करते समय उसे शान्ति की आशिष दो।#लू 10:5-6 13यदि वह घर योग्य है, तो अपनी शान्ति उस पर रहने दो। यदि वह घर योग्य नहीं है, तो अपनी शान्ति अपने पास लौट आने दो। 14यदि कोई तुम्हारा स्वागत न करे और तुम्हारी बातें न सुने, तो उस घर या उस नगर से निकलने पर अपने पैरों की धूल झाड़ दो।#लू 10:12; प्रे 13:51; 18:6 15मैं तुम से सच कहता हूँ − न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सदोम और गमोरा नगरों की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।#मत 11:24; लू 20:47
भावी संकट
16“देखो, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेज रहा हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो।#लू 10:3; यो 10:12; प्रे 20:29; रोम 16:19; इफ 5:15
17“मनुष्यों से सावधान रहो।#मक 13:9-13; लू 21:12-17 वे तुम्हें धर्मसभाओं के हाथ में सौंप देंगे और अपने सभागृहों में तुम्हें कोड़े लगाएंगे।#मत 24:9 18तुम मेरे कारण शासकों और राजाओं के सामने पेश किये जाओगे, जिससे मेरे विषय में तुम उन्हें और गैर-यहूदियों को साक्षी दे सको।#मत 24:14; प्रे 25:23; 27:24
19“जब वे तुम्हें पकड़वाएँ तब यह चिन्ता नहीं करना कि तुम कैसे बोलोगे और क्या कहोगे; क्योंकि जो शब्द तुमको कहने होंगे वे उस समय तुम्हें दिये जाएँगे।#लू 12:11-12 20क्योंकि बोलने वाले तुम नहीं हो, बल्कि तुम्हारे पिता का आत्मा है, जो तुम्हारे द्वारा बोलता है।#यो 14:26; 1 कुर 2:4 21भाई अपने भाई को मृत्यु के लिए सौंप देगा और पिता अपनी सन्तान को। सन्तान अपने माता-पिता के विरुद्ध उठ खड़ी होगी और उन्हें मरवा डालेगी।#मत 10:35; मी 7:6 22मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, किन्तु जो अन्त तक सहता रहेगा, उसे मुक्ति मिलेगी#10:22 अथवा, ‘स्थिर रहेगा, वही बचाया जाएगा’ ।#मत 24:9,13; यो 15:21
23“जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो तुम दूसरे नगर में भाग जाना। मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम इस्राएल देश के सब नगरों का भ्रमण समाप्त भी नहीं कर पाओगे कि मानव पुत्र आ जाएगा।#मत 16:28
24“न शिष्य गुरु से बड़ा होता है और न सेवक अपने स्वामी से।#लू 6:40; यो 13:16; 15:20 25शिष्य के लिए अपने गुरु-जैसा और सेवक के लिए अपने स्वामी-जैसा बन जाना ही बहुत है। यदि लोगों ने घर के स्वामी को बअलजबूल#10:25 भूतों के नायक का एक अपमानजनक नाम कहा है, तो वे उसके घर वालों को क्या कुछ नहीं कहेंगे?#मत 12:24
शिष्यों की निर्भीकता
26“इसलिए उन से नहीं डरो।#लू 12:2-9 ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जाएगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जाएगा।#मक 4:22; लू 8:17 27जो मैं तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें कानों में कहा जाता है, उसे तुम छतों पर से पुकार-पुकार कर कहो।
28“उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते; बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा, दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है।#याक 4:12
29“क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के जाने बिना उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती। 30तुम्हारे तो सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। 31इसलिए नहीं डरो। तुम बहुत गौरैयों से बढ़ कर हो।#मत 12:12
32“जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा 33और जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।#लू 9:26
फूट का कारण
34“यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ।#लू 12:51-53 मैं शान्ति नहीं, बल्कि तलवार ले कर आया हूँ।#यहेज 21:3 35मैं पुत्र और पिता में, पुत्री और माता में, बहू और सास में फूट डालने आया हूँ।#मी 7:6 36मनुष्य के शत्रु उसके घर के लोग ही होंगे।
आत्मत्याग
37“जो पुत्र अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो पिता अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं।#व्य 33:9; लू 14:26-27 38जो शिष्य अपना क्रूस#10:38 अथवा, ‘सलीब’ उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं।#मत 16:24-25 39जो मनुष्य अपना प्राण बचाए हुए है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खो चुका है, वह उसे बचाएगा।#लू 17:33; यो 12:25
पुरस्कार
40“जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।#मत 18:5; लू 10:16; यो 12:44; 13:20 41जो नबी का इसलिए स्वागत करता है कि वह नबी है, वह नबी का पुरस्कार पाएगा और जो धर्मी का इसलिए स्वागत करता है कि वह धर्मी है, वह धर्मी का पुरस्कार पाएगा।
42“जो कोई इन छोटों में से किसी को शिष्य मान कर केवल कटोरा भर ठंडा पानी पिलाएगा, तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह अपना पुरस्कार कदापि नहीं खोएगा।”#मत 25:40; मक 9:41
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बारह प्रेरितों के नाम
1येशु ने अपने बारह शिष्यों को अपने पास बुला कर#मक 6:7-13; लू 9:1-5 उन्हें अशुद्ध आत्माओं को निकालने तथा हर तरह की बीमारी और दुर्बलता दूर करने का अधिकार प्रदान किया।
2बारह प्रेरितों#10:2 अर्थात्, भेजा गया व्यक्ति, प्रेषित के नाम इस प्रकार हैं#मक 3:14-19; लू 6:13-16; यो 1:40-49 − पहला, सिमोन जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रेयास; जबदी का पुत्र याकूब और उसका भाई योहन; 3फिलिप और बरतोलोमी; थोमस और चुंगी-अधिकारी मत्ती; हलफई का पुत्र याकूब और तद्दै; 4शिमोन कनानी और यूदस#10:4 अथवा, ‘यहूदा’ इस्करियोती, जिसने येशु को पकड़वाया।
प्रेरितों का प्रेषण
5येशु ने इन बारहों को यह आदेश दे कर भेजा, “अन्यजातियों के यहाँ मत जाओ और न सामरियों के नगरों में प्रवेश करो, 6बल्कि इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास जाओ।#मत 15:24; प्रे 13:46; यिर 50:6 7राह चलते यह संदेश सुनाओ : ‘स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।’#मत 4:17; लू 10:9 8रोगियों को स्वस्थ करो, मुरदों को जिलाओ, कुष्ठरोगियों को शुद्ध करो, भूतों को निकालो। तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो।#प्रे 20:33
9“अपनी थैली#10:9 शब्दश: ‘अपने फेंटे में’ में सोना, चाँदी या पैसा नहीं लो। 10रास्ते के लिए न झोली, न दो कुरते, न जूते, और न लाठी लो; क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।#लू 10:4; 1 तिम 5:18; गण 18:31
11“जिस किसी नगर या गाँव में प्रवेश करो, तो पता लगाओ कि वहाँ कौन सुपात्र है और विदा होने तक उसी के यहाँ ठहरो। 12घर में प्रवेश करते समय उसे शान्ति की आशिष दो।#लू 10:5-6 13यदि वह घर योग्य है, तो अपनी शान्ति उस पर रहने दो। यदि वह घर योग्य नहीं है, तो अपनी शान्ति अपने पास लौट आने दो। 14यदि कोई तुम्हारा स्वागत न करे और तुम्हारी बातें न सुने, तो उस घर या उस नगर से निकलने पर अपने पैरों की धूल झाड़ दो।#लू 10:12; प्रे 13:51; 18:6 15मैं तुम से सच कहता हूँ − न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सदोम और गमोरा नगरों की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।#मत 11:24; लू 20:47
भावी संकट
16“देखो, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेज रहा हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो।#लू 10:3; यो 10:12; प्रे 20:29; रोम 16:19; इफ 5:15
17“मनुष्यों से सावधान रहो।#मक 13:9-13; लू 21:12-17 वे तुम्हें धर्मसभाओं के हाथ में सौंप देंगे और अपने सभागृहों में तुम्हें कोड़े लगाएंगे।#मत 24:9 18तुम मेरे कारण शासकों और राजाओं के सामने पेश किये जाओगे, जिससे मेरे विषय में तुम उन्हें और गैर-यहूदियों को साक्षी दे सको।#मत 24:14; प्रे 25:23; 27:24
19“जब वे तुम्हें पकड़वाएँ तब यह चिन्ता नहीं करना कि तुम कैसे बोलोगे और क्या कहोगे; क्योंकि जो शब्द तुमको कहने होंगे वे उस समय तुम्हें दिये जाएँगे।#लू 12:11-12 20क्योंकि बोलने वाले तुम नहीं हो, बल्कि तुम्हारे पिता का आत्मा है, जो तुम्हारे द्वारा बोलता है।#यो 14:26; 1 कुर 2:4 21भाई अपने भाई को मृत्यु के लिए सौंप देगा और पिता अपनी सन्तान को। सन्तान अपने माता-पिता के विरुद्ध उठ खड़ी होगी और उन्हें मरवा डालेगी।#मत 10:35; मी 7:6 22मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, किन्तु जो अन्त तक सहता रहेगा, उसे मुक्ति मिलेगी#10:22 अथवा, ‘स्थिर रहेगा, वही बचाया जाएगा’ ।#मत 24:9,13; यो 15:21
23“जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो तुम दूसरे नगर में भाग जाना। मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम इस्राएल देश के सब नगरों का भ्रमण समाप्त भी नहीं कर पाओगे कि मानव पुत्र आ जाएगा।#मत 16:28
24“न शिष्य गुरु से बड़ा होता है और न सेवक अपने स्वामी से।#लू 6:40; यो 13:16; 15:20 25शिष्य के लिए अपने गुरु-जैसा और सेवक के लिए अपने स्वामी-जैसा बन जाना ही बहुत है। यदि लोगों ने घर के स्वामी को बअलजबूल#10:25 भूतों के नायक का एक अपमानजनक नाम कहा है, तो वे उसके घर वालों को क्या कुछ नहीं कहेंगे?#मत 12:24
शिष्यों की निर्भीकता
26“इसलिए उन से नहीं डरो।#लू 12:2-9 ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जाएगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जाएगा।#मक 4:22; लू 8:17 27जो मैं तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें कानों में कहा जाता है, उसे तुम छतों पर से पुकार-पुकार कर कहो।
28“उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते; बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा, दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है।#याक 4:12
29“क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के जाने बिना उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती। 30तुम्हारे तो सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। 31इसलिए नहीं डरो। तुम बहुत गौरैयों से बढ़ कर हो।#मत 12:12
32“जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा 33और जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।#लू 9:26
फूट का कारण
34“यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ।#लू 12:51-53 मैं शान्ति नहीं, बल्कि तलवार ले कर आया हूँ।#यहेज 21:3 35मैं पुत्र और पिता में, पुत्री और माता में, बहू और सास में फूट डालने आया हूँ।#मी 7:6 36मनुष्य के शत्रु उसके घर के लोग ही होंगे।
आत्मत्याग
37“जो पुत्र अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो पिता अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं।#व्य 33:9; लू 14:26-27 38जो शिष्य अपना क्रूस#10:38 अथवा, ‘सलीब’ उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं।#मत 16:24-25 39जो मनुष्य अपना प्राण बचाए हुए है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खो चुका है, वह उसे बचाएगा।#लू 17:33; यो 12:25
पुरस्कार
40“जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।#मत 18:5; लू 10:16; यो 12:44; 13:20 41जो नबी का इसलिए स्वागत करता है कि वह नबी है, वह नबी का पुरस्कार पाएगा और जो धर्मी का इसलिए स्वागत करता है कि वह धर्मी है, वह धर्मी का पुरस्कार पाएगा।
42“जो कोई इन छोटों में से किसी को शिष्य मान कर केवल कटोरा भर ठंडा पानी पिलाएगा, तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह अपना पुरस्कार कदापि नहीं खोएगा।”#मत 25:40; मक 9:41
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