भजन संहिता 128

128
प्रभु के भक्‍त की नियति
यात्रा-गीत।
1ओ प्रभु के भक्‍त!
तू धन्‍य है,
तू प्रभु के मार्ग पर चलता है!
2तू अपने हाथ के परिश्रम का फल खाएगा;
तू सुखी होगा, तेरा भला होगा।
3तेरे घर की जनानी ड्‍योढ़ी में
तेरी पत्‍नी फलवन्‍त अंगूर-बेल के सदृश
बनेगी;
तेरी चौकी के चारों ओर
जैतून के अंकुरों के समान तेरे बाल-बच्‍चे
होंगे।
4देखो, जो व्यक्‍ति प्रभु का भक्‍त है,
वह यह आशिष पाएगा।
5प्रभु सियोन से तुझे आशिष दे!
तू अपनी आयु के समस्‍त दिन
यरूशलेम की समृद्धि भोगे।
तुझे दीर्घ आयु प्राप्‍त हो
6और तू अपने पुत्र-पौत्रादि को देखे!
इस्राएल को शान्‍ति मिले!

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