भजन संहिता 42

42
दूसरा खण्‍ड
परमेश्‍वर के लिए तीव्र इच्‍छा
मुख्‍यवादक के लिए। कोरह वंशियों का मसकील।
1जैसे हरिणी को बहते झरनों की चाह
होती है
वैसे ही, हे परमेश्‍वर, मेरे प्राण को तेरी प्‍यास है।
2मेरा प्राण परमेश्‍वर के,
जीवंत परमेश्‍वर के दर्शन का प्‍यासा है।
मैं कब जाऊंगा और परमेश्‍वर के मुख का
दर्शन पाऊंगा?#यो 7:37
3रात और दिन मेरे आंसू ही मेरा आहार रहे हैं।
लोग निरन्‍तर मुझसे पूछते हैं,
“कहां है तेरा परमेश्‍वर?”
4जब मुझे ये बातें स्‍मरण आती हैं
तब मेरे हृदय में तीव्र भाव उमड़ आते हैं:
मैं लोगों के साथ गया था।
मैंने उन्‍हें परमेश्‍वर के भवन तक पहुंचाया था।
जनसमूह जयजयकार और स्‍तुति के साथ
पर्व मना रहा था।
5ओ मेरे प्राण, तू क्‍यों व्‍याकुल है?
क्‍यों तू हृदय में अशांत है?
ओ मेरे प्राण, तू परमेश्‍वर की आशा कर;
मैं अपने उद्धार को, अपने परमेश्‍वर को पुन:
सराहूंगा।
6मेरे हृदय में प्राण व्‍याकुल है।
यर्दन और हेर्मोन प्रदेश से, मिसार पर्वत से
मैं तुझ को स्‍मरण करता हूँ।
7तेरे जल-प्रपात के गर्जन से सागर सागर को
पुकारता है;
तेरी लहरें-तरंगें मेरे ऊपर से गुजर चुकी है।#भज 88:7; योना 2:3
8दिन में प्रभु अपनी करुणा भेजता है।
मैं रात में उसका गीत गाता हूँ,
और अपने जीवन के परमेश्‍वर से प्रार्थना
करता हूँ।
9मैं अपने परमेश्‍वर,
अपनी चट्टान से यह पूछता हूँ:
“तू ने मुझे क्‍यों भुला दिया?
क्‍यों मैं शत्रु के अत्‍याचार के कारण
शोक-संतप्‍त मारा-मारा फिरता हूँ?”
10मेरे बैरी ताना मारते हैं।
वे मानो मेरी देह पर घातक प्रहार करते हैं।
वे निरन्‍तर मुझ से यह पूछते हैं,
“कहां है तेरा परमेश्‍वर?”
11ओ मेरे प्राण, तू क्‍यों व्‍याकुल है?
क्‍यों तू हृदय में अशांत है?
ओ मेरे प्राण, तू परमेश्‍वर की आशा कर;
मैं अपने उद्धार को, अपने परमेश्‍वर को
पुन: सराहूँगा।

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