प्रकाशन भूमिका

भूमिका
“प्रकाशन ग्रन्‍थ” (संत योहन को प्रभु येशु का प्रकाशन) तब लिखा गया था जब रोम के साम्राज्‍य में नव-मसीहियों को प्रभु येशु पर उनके विश्‍वास के कारण सताया जा रहा था। ये मसीही प्रभु येशु को आध्‍यात्‍मिक साम्राज्‍य का ‘प्रभु’ मानते थे। प्रस्‍तुत ग्रंथ के लेखक का उद्देश्‍य अपने पाठकों को आशा और प्रोत्‍साहन देना है। वह अपने पाठकों को प्रबोधन देता है कि वे अपने वर्तमान सताव और संकट की घड़ी में दु:ख और अत्‍याचार की दशा में भी, प्रभु येशु पर अपना विश्‍वास बनाए रखें। लेखक अपना नाम “योहन” बताता है; वह स्‍वयं येशु की साक्षी के कारण पतमुस द्वीप पर निष्‍कासित हुआ था।
लेखक ने अपने अनेक दर्शनों और प्रकाशनों का प्रतीकात्‍मक भाषा और शैली में वर्णन किया है। इस प्रतीकात्‍मक भाषा को लेखक के युग के मसीही पाठक तो समझते थे; किन्‍तु गैर-मसीही पाठकों के लिए यह रहस्‍यमयी, अनजान भाषा थी।
किसी महान कला-कृति की विषय-वस्‍तु के समान लेखक ने दर्शनों की शृंखला में बार-बार और भिन्न-भिन्न तरीके से अपनी विषय-वस्‍तु को दुहराया है। आधुनिक युग के धर्म-वैज्ञानिकों में इन दर्शनों के गूढ़ अर्थ के संबंध में मतैक्‍य नहीं है; किन्‍तु प्रस्‍तुत ग्रन्‍थ के मूल विषय में किसी को सन्‍देह नहीं है। मूल विषय यह है : येशु ही प्रभु हैं, और परमेश्‍वर बुराई की समस्‍त शैतानी शक्‍तियों को प्रभु येशु के द्वारा सदा के लिए पूर्णत: नष्‍ट कर देगा। परमेश्‍वर अन्‍तिम विजय के उपरान्‍त अपने विश्‍वासियों को, अनन्‍त पुरस्‍कार स्‍वरूप, एक नयी पृथ्‍वी और एक नया आकाश प्रदान करेगा।
विषय-वस्‍तु की रूपरेखा
प्रस्‍तावना 1:1-3
पहला दर्शन और सात कलीसियाओं के नाम अलग-अलग सात पत्र 1:4−3:22
सात मुहरबन्‍द वाली पुस्‍तक 4:1−8:1
सात तुरहियाँ 8:2−11:18
सर्प तथा महिला, दो पशु, और अन्‍य दर्शन 11:19−14-20
परमेश्‍वर के प्रकोप के सात प्‍याले 15:1−16:21
बेबीलोन महानगर का विनाश 17:1−19:5
युगांत के दर्शन : मेमने का विवाहोत्‍सव, पशु की पराजय, अन्‍तिम न्‍याय और नया यरूशलेम नगर 19:6−22:5
उपसंहार 22:6-21

वर्तमान में चयनित:

प्रकाशन भूमिका: HINCLBSI

हाइलाइट

शेयर

कॉपी

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in