रोमियों 8

8
पवित्र आत्‍मा द्वारा पवित्रीकरण
1जो लोग येशु मसीह से संयुक्‍त हैं, उनके लिए अब कोई दण्‍डाज्ञा नहीं रह गयी है; 2क्‍योंकि, ओ मनुष्‍य! पवित्र आत्‍मा के विधान ने, जो येशु मसीह द्वारा जीवन प्रदान करता है, तुझ को पाप तथा मृत्‍यु के नियम से मुक्‍त कर दिया है।#रोम 3:27; 7:23-24 3मानव स्‍वभाव की दुर्बलता के कारण मूसा की व्‍यवस्‍था जो कार्य करने में असमर्थ थी, वह कार्य परमेश्‍वर ने कर दिया है। उसने पाप के प्रायश्‍चित्त के लिए अपने पुत्र को भेजा, जिसने पापी मनुष्‍य के सदृश शरीर धारण किया। इस प्रकार परमेश्‍वर ने मानव शरीर में पाप को दण्‍डित किया,#यो 1:14; प्रे 13:38; 15:10 4जिससे हम लोगों में—जो कि शारीरिक स्‍वभाव के अनुसार नहीं, बल्‍कि आत्‍मा के अनुसार आचरण करते हैं—धार्मिकता के संबंध में व्‍यवस्‍था की मांग पूर्ण हो जाए।#गल 5:16,25
5-6क्‍योंकि जो शारीरिक स्‍वभाव से#8:5-6 शब्‍दश: “शरीर के अनुसार”। संचालित हैं, वे शारीरिक आचरण की बातों की चिन्‍ता करते हैं और इसका परिणाम मृत्‍यु है; जो आत्‍मा से संचालित हैं, वे आत्‍मा की बातों की चिन्‍ता करते हैं और इसका परिणाम जीवन और शान्‍ति है।#रोम 6:21 7क्‍योंकि शारीरिक आचरण की चिन्‍ता करना परमेश्‍वर के प्रतिकूल है। यह शारीरिक चिन्‍ता परमेश्‍वर के नियम के अधीन नहीं होती और हो भी नहीं सकती।#मत 12:34; याक 4:4; यो 8:43; 12:39 8जो लोग शारीरिक स्‍वभाव के वश में हैं, वे परमेश्‍वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। 9यदि परमेश्‍वर का आत्‍मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शारीरिक स्‍वभाव के वश में नहीं, बल्‍कि आत्‍मा से ही प्रभावित हैं। जिस मनुष्‍य में मसीह का आत्‍मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।#1 कुर 3:16; 12:3 10यदि मसीह आप में निवास करते हैं, तो पाप के फलस्‍वरूप शरीर भले ही मृत हो, किन्‍तु परमेश्‍वर के मुक्‍ति-विधान के फलस्‍वरूप पवित्र आत्‍मा ही तुम्‍हारा जीवन है#गल 2:20; फिल 1:21; 1 पत 4:6#8:10 अथवा, “तुम्‍हारी आत्‍मा को जीवन प्राप्‍त है।” 11जिसने येशु को मृतकों में से जिलाया, यदि उसका आत्‍मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने येशु मसीह को मृतकों में से जिलाया, वह अपने आत्‍मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्‍वर शरीर को भी जीवन प्रदान करेगा।
12इसलिए, भाइयो और बहिनो! हम ऋणी तो हैं, किन्‍तु शारीरिक स्‍वभाव के नहीं कि हम उसके अनुसार जीवन बिताएँ। #रोम 6:7,18 13यदि आप शारीरिक स्‍वभाव के अनुसार ही जीवन बितायेंगे, तो अवश्‍य मर जायेंगे। लेकिन यदि आप आत्‍मा की प्रेरणा से शरीर की प्रवृत्तियों का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्‍त होगा।#गल 6:8; इफ 4:22-24 14जो लोग परमेश्‍वर के आत्‍मा से संचालित हैं, वे सब परमेश्‍वर के पुत्र-पुत्रियाँ हैं— 15आप लोगों को दासत्‍व का आत्‍मा नहीं मिला है, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को दत्तक संतान बनने का आत्‍मा ही मिला है, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, “अब्‍बा, हे पिता!”#2 तिम 1:7; गल 4:5-6 16यह आत्‍मा स्‍वयं हमें आश्‍वासन देता है#8:16 अथवा, “हमारी आत्‍मा के साथ एक ही साक्षी देता है।” कि हम सचमुच परमेश्‍वर की सन्‍तान हैं।#2 कुर 1:22 17यदि हम सन्‍तान हैं, तो हम विरासत के अधिकारी भी हैं—हां, परमेश्‍वर के उत्तराधिकारी, वरन् मसीह के सह-उत्तराधिकारी। केवल एक शर्त है कि हम मसीह के साथ दु:ख सहें, जिससे हम उनके साथ महिमान्‍वित भी हों।#गल 4:7; प्रक 21:7
भावी महिमा
18मैं समझता हूँ कि हम पर जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दु:ख नगण्‍य है;#2 कुर 4:17; रोम 5:2; प्रज्ञ 3:5-6 19क्‍योंकि समस्‍त सृष्‍टि उत्‍कण्‍ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब मनुष्‍य परमेश्‍वर की संतान के रूप में प्रकट होंगे#कुल 3:4 #8:19 शब्‍दश:, “परमेश्‍वर के पुत्रों के प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रही है।” 20यह सृष्‍टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है—अपनी इच्‍छा से नहीं, बल्‍कि उसकी इच्‍छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है—किन्‍तु यह आशा भी बनी रही#उत 3:17-19; 5:29 21कि वह विकृति की दासता से मुक्‍त हो जायेगी और परमेश्‍वर की सन्‍तान की महिमामय स्‍वतन्‍त्रता की सहभागी बनेगी।#2 पत 3:13; 1 यो 3:2 22हम जानते हैं कि समस्‍त सृष्‍टि मिलकर अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराह रही है 23और सृष्‍टि ही नहीं, वरन् हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं। हमें तो पवित्र आत्‍मा मिल चुका है, जो परमेश्‍वर के कृपादानों का प्रथम फल है। लेकिन हम अपने शरीर की विमुक्‍ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब हम परमेश्‍वर की दत्तक संतान होंगे।#2 कुर 5:2; गल 5:5 24इस आशा में हमारा उद्धार हुआ है। यदि कोई वह बात देखता है, जिसकी वह आशा करता है, तो यह आशा नहीं कही जा सकती। मनुष्‍य जिस वस्‍तु को देख रहा है, उसकी आशा क्‍यों करेगा?#2 कुर 5:7 25हम उसकी आशा करते हैं, जिसे हम अब तक नहीं देख सके हैं। इसलिए हमें धैर्य के साथ उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
26पवित्र आत्‍मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करना चाहिए, किन्‍तु आत्‍मा स्‍वयं आहें भरकर—जो शब्‍दों द्वारा प्रकट नहीं की जा सकती हैं—हमारे लिए विनती करता है। 27परमेश्‍वर हमारे हृदय का रहस्‍य जानता है। वह समझता है कि आत्‍मा का अभिप्राय क्‍या है,क्‍योंकि आत्‍मा परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार सन्‍तों के लिए विनती करता है।#भज 139:1; 1 कुर 4:5
28हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं और उसके उद्देश्‍य के अनुसार बुलाये गये हैं, परमेश्‍वर उनके कल्‍याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है#इफ 1:11; 3:11;#8:28 अथवा, “उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई ही उत्‍पन्न करती हैं।” 29क्‍योंकि परमेश्‍वर ने निश्‍चित किया कि जिन्‍हें उसने पहले से अपना समझा, वे उसके पुत्र के प्रतिरूप बनाये जायेंगे, जिससे उसका पुत्र इस प्रकार बहुत-से भाई-बहिनों में पहिलौठा हो।#कुल 1:18; इब्र 1:6 30उसने जिन्‍हें पहले से निश्‍चित किया, उन्‍हें बुलाया भी है : जिन्‍हें बुलाया, उन्‍हें धार्मिक भी ठहराया है और जिन्‍हें धार्मिक ठहराया है, उन्‍हें महिमान्‍वित भी किया है।
परमेश्‍वर का प्रेम
31और कहना ही क्‍या है? यदि परमेश्‍वर हमारे पक्ष में है, तो कौन हमारे विरुद्ध होगा?#भज 118:6; मत 1:23 32उसने अपने निजी पुत्र को भी नहीं बचाया, उसने हम सब के लिए उसे समर्पित कर दिया। तो, इतना देने के बाद, क्‍या वह हमें अपने पुत्र के साथ सब कुछ नहीं देगा? #यो 3:16 33जिन्‍हें परमेश्‍वर ने चुना है, उन पर कौन अभियोग लगा सकेगा? जिन्‍हें परमेश्‍वर ने दोष-मुक्‍त कर दिया है,#यश 50:8 34उन्‍हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्‍या येशु मसीह ऐसा करेंगे? वह तो मर गये, बल्‍कि जी उठे और परमेश्‍वर के दाहिने हाथ विराजमान हो कर हमारे लिए निवेदन करते रहते हैं।#भज 110:1; 1 यो 2:1 35कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग कर सकता है? क्‍या विपत्ति या संकट? क्‍या अत्‍याचार, भूख, नग्‍नता, जोखिम या तलवार? 36जैसा कि धर्मग्रन्‍थ में लिखा है, “तेरे कारण दिन-भर हमारा वध किया जाता है। हमें वध होने वाली भेड़ जैसा समझा गया।”#भज 44:22; 2 कुर 4:11 37किन्‍तु इन सब बातों में हम उन्‍हीं के द्वारा पूर्ण विजय प्राप्‍त करते हैं, जिन्‍होंने हमसे प्रेम किया है।#यो 16:33 38मुझे दृढ़ विश्‍वास है कि न तो मृत्‍यु न जीवन, न स्‍वर्गदूत न नरकदूत, न वर्तमान न भविष्‍य, न सामर्थ्यगण, 39न आकाश में या पाताल में कोई शक्‍ति और न समस्‍त सृष्‍टि में कोई वस्‍तु हमें परमेश्‍वर के उस प्रेम से अलग कर सकती है, जो हमें हमारे प्रभु येशु मसीह द्वारा मिला है।

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