व्यवस्थाविवरण 14

14
शोक मनाने की वर्जित विधि
1“तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के पुत्र हो; इसलिये मरे हुओं के कारण न तो अपना शरीर चीरना और न भौहों के बाल मुँड़ाना#14:1 मूल में, अपनी आँखों के बीच गंजापन न करना #लैव्य 19:28; 21:5 2क्योंकि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिये एक पवित्र समाज है, और यहोवा ने तुझ को पृथ्वी भर के समस्त देशों के लोगों में से अपनी निज सम्पत्ति होने के लिये चुन लिया है।#निर्ग 19:5,6; व्य 4:20; 7:6; 26:18; तीतु 2:14; 1 पत 2:9
शुद्ध और अशुद्ध पशु
(लैव्य 11:1–47)
3“तू कोई घिनौनी वस्तु न खाना। 4जो पशु तुम खा सकते हो वे ये हैं, अर्थात् गाय–बैल, भेड़–बकरी, 5हरिण, चिकारा, मृग, बनैली बकरी, सांभर, नीलगाय, और बनैली भेड़। 6अत: पशुओं में से जितने पशु चिरे या फटे खुरवाले और पागुर करनेवाले होते हैं उनका मांस तुम खा सकते हो। 7परन्तु पागुर करनेवाले या चिरे खुरवालों में से इन पशुओं को, अर्थात् ऊँट, खरहा, और शापान को न खाना, क्योंकि ये पागुर तो करते हैं परन्तु चिरे खुर के नहीं होते, इस कारण वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं। 8फिर सूअर, जो चिरे खुर का तो होता है परन्तु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना, और न इनकी लोथ छूना।
9“फिर जितने जलजन्तु हैं उनमें से तुम इन्हें खा सकते हो, अर्थात् जितनों के पंख और छिलके होते हैं। 10परन्तु जितने बिना पंख और छिलके के होते हैं उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं।
11“सब शुद्ध पक्षियों का मांस तो तुम खा सकते हो। 12परन्तु इनका मांस न खाना, अर्थात् उकाब, हड़फोड़, कुरर; 13गरुड़, चील और भाँति भाँति के शाही, 14और भाँति भाँति के सब काग; 15शुतुर्मुर्ग, तहमास, जलकुक्‍कुट, और भाँति भाँति के बाज; 16छोटा और बड़ा दोनों जाति का उल्‍लू, और घुग्घू; 17धनेश, गिद्ध, हाड़गील; 18सारस, भाँति भाँति के बगुले, हुदहुद, और चमगादड़। 19और जितने रेंगने वाले जंतु हैं वे सब तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं; वे खाए न जाएँ। 20परन्तु सब शुद्ध पंखवालों का मांस तुम खा सकते हो।
21“जो अपनी मृत्यु से मर जाए उसे तुम न खाना; उसे अपने फाटकों के भीतर किसी परदेशी को खाने के लिये दे सकते हो, या किसी पराए के हाथ बेच सकते हो; परन्तु तू तो अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिये पवित्र समाज है। बकरी का बच्‍चा उसकी माता के दूध में न पकाना।#निर्ग 23:19; 34:26; लैव्य 11:39,40; 17:15
दशमांश का नियम
22“बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपजे उसका दशमांश अवश्य अलग करके रखना। 23और जिस स्थान को तेरा परमेश्‍वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उसमें अपने अन्न, और नये दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय–बैलों और भेड़–बकरियों के पहिलौठे अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने खाया करना; जिस से तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे। 24परन्तु यदि वह स्थान जिसको तेरा परमेश्‍वर यहोवा अपना नाम बनाए रखने के लिये चुन लेगा बहुत दूर हो, और इस कारण वहाँ की यात्रा तेरे लिये इतनी लम्बी हो कि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की आशीष से मिली हुई वस्तुएँ वहाँ न ले जा सके, 25तो उसे बेचके, रुपये को बाँध, हाथ में लिये हुए उस स्थान पर जाना जो तेरा परमेश्‍वर यहोवा चुन लेगा, 26और वहाँ गाय–बैल, या भेड़–बकरी, या दाखमधु, या मदिरा, या किसी भाँति की वस्तु क्यों न हो, जो तेरा जी चाहे, उसे उसी रुपये से मोल लेकर अपने घराने समेत अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने खाकर आनन्द करना। 27और अपने फाटकों के भीतर के लेवीय को न छोड़ना, क्योंकि तेरे साथ उसका कोई भाग या अंश न होगा।
28“तीन तीन वर्ष के बीतने पर तीसरे वर्ष की उपज का सारा दशमांश निकालकर अपने फाटकों के भीतर इकट्ठा कर रखना; 29तब लेवीय जिसका तेरे संग कोई निज भाग या अंश न होगा वह, और जो परदेशी, और अनाथ, और विधवाएँ तेरे फाटकों के भीतर हों, वे भी आकर पेट भर खाएँ; जिससे तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझे आशीष दे।#लैव्य 27:30–33; गिन 18:21

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