तब बूजी बारकेल का पुत्र एलीहू कहने लगा, “मैं तो जवान हूँ, और तुम बहुत बूढ़े हो; इस कारण मैं रुका रहा, और अपना विचार तुम को बताने से डरता था। मैं सोचता था, ‘जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुद्धि सिखाएँ।’ परन्तु मनुष्य में आत्मा तो है ही, सर्वशक्तिमान की दी हुई साँस, जो उन्हें समझने की शक्ति देता है। जो बुद्धिमान हैं वे बड़ी आयु के लोग ही नहीं, और न्याय के समझनेवाले बूढ़े ही नहीं होते।
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