लूका 12

12
पाखण्ड के विरुद्ध चेतावनी
(मत्ती 10:26,27)
1इतने में जब हज़ारों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि वे एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे, तो वह सबसे पहले अपने चेलों से कहने लगा, “फरीसियों के कपटरूपी खमीर से चौकस रहना।#मत्ती 16:6; मरकुस 8:15 2कुछ ढका नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा।#मरकुस 4:22; लूका 8:17 3इसलिये जो कुछ तुम ने अन्धेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जाएगा; और जो तुम ने कोठरियों में कानों कान कहा है, वह छत पर से प्रचार किया जाएगा।
किस से डरें?
(मत्ती 10:28–31)
4“मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूँ कि जो शरीर को घात करते हैं परन्तु उसके पीछे और कुछ नहीं कर सकते, उनसे मत डरो। 5मैं तुम्हें चिताता हूँ कि तुम्हें किससे डरना चाहिए, घात करने के बाद जिसको नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो; हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, उसी से डरो। 6क्या दो पैसे की पाँच गौरैयाँ नहीं बिकतीं? तौभी परमेश्‍वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता। 7तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, इसलिये डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।
यीशु को स्वीकार या अस्वीकार करना
(मत्ती 10:32,33; 12:32; 10:19,20)
8“मैं तुम से कहता हूँ जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा उसे मनुष्य का पुत्र भी परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के सामने मान लेगा। 9परन्तु जो मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करे उसका परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के सामने इन्कार किया जाएगा।
10“जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहे, उसका वह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करे, उसका अपराध क्षमा नहीं किया जाएगा।#मत्ती 12:32; मरकुस 3:29
11“जब लोग तुम्हें सभाओं और हाकिमों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो चिन्ता न करना कि हम किस रीति से या क्या उत्तर दें, या क्या कहें। 12क्योंकि पवित्र आत्मा उसी घड़ी तुम्हें सिखा देगा कि क्या कहना चाहिए।”#मत्ती 10:19,20; मरकुस 13:11; लूका 21:14,15
एक धनवान मूर्ख का दृष्‍टान्त
13फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, मेरे भाई से कह कि पिता की सम्पत्ति मेरे साथ बाँट ले।” 14उसने उससे कहा, “हे मनुष्य, किसने मुझे तुम्हारा न्यायी या बाँटनेवाला नियुक्‍त किया है?” 15और उसने उनसे कहा, “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत से नहीं होता।”
16उसने उनसे एक दृष्‍टान्त कहा : “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। 17तब वह अपने मन में विचार करने लगा, ‘मैं क्या करूँ? क्योंकि मेरे यहाँ जगह नहीं जहाँ अपनी उपज इत्यादि रखूँ।’ 18और उसने कहा, ‘मैं यह करूँगा : मैं अपनी बखारियाँ तोड़ कर उनसे बड़ी बनाऊँगा; और वहाँ अपना सब अन्न और संपत्ति रखूँगा; 19और अपने प्राण से कहूँगा कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत सम्पत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह।’ 20परन्तु परमेश्‍वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है वह किसका होगा?’ 21ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्‍वर की दृष्‍टि में धनी नहीं।”
परमेश्‍वर पर भरोसा रखो
(मत्ती 6:25–34)
22फिर उसने अपने चेलों से कहा, “इसलिये मैं तुम से कहता हूँ, अपने प्राण की चिन्ता न करो कि हम क्या खाएँगे; न अपने शरीर की कि क्या पहिनेंगे। 23क्योंकि भोजन से प्राण, और वस्त्र से शरीर बढ़कर है। 24कौवों पर ध्यान दो; वे न बोते हैं, न काटते; न उनके भण्डार और न खत्ता होता है; तौभी परमेश्‍वर उन्हें पालता है। तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है! 25तुम में से ऐसा कौन है जो चिन्ता करने से अपनी आयु में एक घड़ी#12:25 यू० हाथ भी बढ़ा सकता है? 26इसलिये यदि तुम सबसे छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातों के लिये क्यों चिन्ता करते हो? 27सोसनों के पेड़ों पर ध्यान करो कि वे कैसे बढ़ते हैं : वे न परिश्रम करते, न कातते हैं; तौभी मैं तुम से कहता हूँ कि सुलैमान#1 राजा 10:4–7; 2 इति 9:3–6 भी अपने सारे वैभव में, उनमें से किसी एक के समान वस्त्र पहिने हुए न था। 28इसलिये यदि परमेश्‍वर मैदान की घास को, जो आज है और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा पहिनाता है; तो हे अल्प विश्‍वासियो, वह तुम्हें क्यों न पहिनाएगा? 29और तुम इस बात की खोज में न रहो कि क्या खाएँगे और क्या पीएँगे, और न सन्देह करो। 30क्योंकि संसार की जातियाँ इन सब वस्तुओं की खोज में रहती हैं : और तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन वस्तुओं की आवश्यकता है। 31परन्तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो ये वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।
स्वर्गीय धन
(मत्ती 6:19–21)
32“हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। 33अपनी सम्पत्ति बेचकर दान कर दो; और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं और जिसके निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नहीं बिगाड़ता। 34क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।
जागते रहो
35“तुम्हारी कमरें बन्धी रहें और तुम्हारे दीये जलते रहें,#मत्ती 25:1–13 36और तुम उन मनुष्यों के समान बनो, जो अपने स्वामी की बाट देख रहे हों कि वह विवाह से कब लौटेगा, कि जब वह आकर द्वार खटखटाए तो तुरन्त उसके लिये खोल दें।#मरकुस 13:34–36 37धन्य हैं वे दास जिन्हें स्वामी आकर जागते पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह कमर बाँध कर उन्हें भोजन करने को बैठाएगा, और पास आकर उनकी सेवा करेगा। 38यदि वह रात के दूसरे पहर या तीसरे पहर में आकर उन्हें जागते पाए, तो वे दास धन्य हैं। 39परन्तु तुम यह जान रखो कि यदि घर का स्वामी जानता कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता और अपने घर में सेंध लगने न देता।* 40तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।”#मत्ती 24:43,44
विश्‍वासयोग्य या अविश्‍वासयोग्य दास
(मत्ती 24:45–51)
41तब पतरस ने कहा, “हे प्रभु, क्या यह दृष्‍टान्त तू हम ही से या सबसे कहता है।” 42प्रभु ने कहा, “वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान भण्डारी कौन है, जिसका स्वामी उसे नौकर चाकरों पर सरदार ठहराए कि उन्हें समय पर भोजन सामग्री दे। 43धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। 44मैं तुम से सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सब सम्पत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। 45परन्तु यदि वह दास सोचने लगे कि मेरा स्वामी आने में देर कर रहा है, और दासों और दासियों को मारने–पीटने लगे, और खाने–पीने और पियक्‍कड़ होने लगे। 46तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन, जब वह उसकी बाट जोहता न रहे, और ऐसी घड़ी जिसे वह जानता न हो, आएगा और उसे भारी दण्ड देकर उसका भाग अविश्‍वासियों के साथ ठहराएगा। 47वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था, और तैयार न रहा और न उसकी इच्छा के अनुसार चला, बहुत मार खाएगा। 48परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा। इसलिये जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा।
यीशु के आगमन का परिणाम
(मत्ती 10:34–36)
49“मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ; और क्या चाहता हूँ केवल यह कि अभी सुलग जाती! 50मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है, और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी व्यथा में रहूँगा!#मरकुस 10:38 51क्या तुम समझते हो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ; नहीं, वरन् अलग कराने आया हूँ। 52क्योंकि अब से एक घर में पाँच जन आपस में विरोध रखेंगे, तीन दो से और दो तीन से। 53पिता पुत्र से, और पुत्र पिता से विरोध रखेगा; माँ बेटी से, और बेटी माँ से, सास बहू से, और बहू सास से विरोध रखेगी।#मीका 7:6
समय के लक्षण
(मत्ती 16:2,3)
54उसने भीड़ से भी कहा, “जब तुम बादल को पश्‍चिम से उठते देखते हो तो तुरन्त कहते हो कि वर्षा होगी,और ऐसा ही होता है; 55और जब दक्षिणी हवा चलती देखते हो तो कहते हो कि लूह चलेगी, और ऐसा ही होता है। 56हे कपटियो, तुम धरती और आकाश के रूप–रंग में भेद कर सकते हो, परन्तु इस युग के विषय में क्यों भेद करना नहीं जानते?
अपने मुद्दई से समझौता
(मत्ती 5:25,26)
57“तुम आप ही निर्णय क्यों नहीं कर लेते कि उचित क्या है? 58जब तू अपने मुद्दई के साथ हाकिम के पास जा रहा है तो मार्ग ही में उससे छूटने का यत्न कर ले, ऐसा न हो कि वह तुझे न्यायी के पास खींच ले जाए, और न्यायी तुझे सिपाही को सौंपे और सिपाही तुझे बन्दीगृह में डाल दे। 59मैं तुम से कहता हूँ कि जब तक तू दमड़ी–दमड़ी भर न देगा तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।”

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