यशायाह 41
41
यहोवा सृजनहार है: वह अमर है
1यहोवा कहा करता है,
“सुदूरवर्ती देशों, चुप रहो और मेरे पास आओ!
जातियों, फिर से सुदृढ़ बनों।
मेरे पास आओ और मुझसे बातें करो।
आपस में मिल कर हम
निश्चय करें कि उचित क्या है।
2किसने उस विजेता को जगाया है, जो पूर्व से आयेगा
कौन उससे दूसरे देशों को हरवाता और राजाओं को अधीन कर देता
कौन उसकी तलवारों को इतना बढ़ा देता है
कि वे इतनी असंख्य हो जाती जितनी रेत—कण होते हैं
कौन उसके धनुषों को इतना असंख्य कर देता जितना भूसे के छिलके होते हैं
3यह व्यक्ति पीछा करेगा और उन राष्ट्रों का पीछा बिना हानि उठाये करता रहेगा
और ऐसे उन स्थानों तक जायेगा जहाँ वह पहले कभी गया ही नहीं।
4कौन ये सब घटित करता है किसने यह किया
किसने आदि से सब लोगों को बुलाया मैं यहोवा ने इन सब बातों को किया!
मैं यहोवा ही सबसे पहला हूँ।
आदि के भी पहले से मेरा अस्तित्व रहा है,
और जब सब कुछ चला जायेगा तो भी मैं यहाँ रहूँगा।
5सुदूरवर्ती देश इसको देखें
और भयभीत हों।
दूर धरती के छोर के लोग
फिर आपस में एक जुट होकर
भय से काँप उठें!
6“एक दूसरे की सहायता करेंगें। देखो! अब वे अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए एक दूसरे की हिम्मत बढ़ा रहे हैं। 7मूर्ति बनानें के लिए एक कारीगर लकड़ी काट रहा है। फिर वह व्यक्ति सुनार को उत्साहित कर रहा है। एक कारीगर हथौड़ें से धातु का पतरा बना रहा है। फिर वह कारीगर निहायी पर काम करनेवाले व्यक्ति को प्रेरित कर रहा है। यह अखिरी कारीगर कह रहा है, काम अच्छा है किन्तु यह धातु पिंड कहीं उखड़ न जाये। इसलिए इस मूर्ति को आधार पर कील से जड़ दों! उससे मूर्ति गिरेगी नहीं, वह कभी हिलडुल तक नहीं पायेगो।”
यहोवा ही हमारी रक्षा कर सकता है
8यहोवा कहता है: “किन्तु तू इस्राएल, मेरा सेवक है।
याकूब, मैंने तुझ को चुना है
तू मेरे मित्र इब्राहीम का वंशज है।
9मैंने तुझे धरती के दूर देशों से उठाया।
मैंने तुम्हें उस दूर देश से बुलाया।
मैंने कहा, ‘तू मेरा सेवक है।’
मैंने तुझे चुना है
और मैंने तुझे कभी नहीं तजा है।
10तू चिंता मत कर, मैं तेरे साथ हूँ।
तू भयभीत मत हो, मैं तेरा परमेश्वर हूँ।
मैं तुझे सुदृढ़ करुँगा।
मैं तुझे अपने नेकी के दाहिने हाथ से सहारा दूँगा।
11देख, कुछ लोग तुझ से नाराज हैं किन्तु वे लजायेंगे।
जो तेरे शत्रु हैं वे नहीं रहेंगे, वे सब खो जायेंगे।
12तू ऐसे उन लोगों की खोज करेगा जो तेरे विरुद्ध थे।
किन्तु तू उनको नहीं पायेगा।
वे लोग जो तुझ से लड़े थे, पूरी तरह लुप्त हो जायेंगे।
13मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ।
मैंने तेरा सीधा हाथ थाम रखा है।
मैं तुझ से कहता हूँ कि मत डर! मैं तुझे सहारा दूँगा।
14मूल्यवान यहूदा, तू निर्भय रह! हे मेरे प्रिय इस्राएल के लोगों।
भयभीत मत रहो।”
सचमुच मैं तुझको सहायता दूँगा।
स्वयं यहोवा ही ने यें बातें कहीं थी।
इस्राएल के पवित्र (परमेश्वर) ने
जो तुम्हारी रक्षा करता है, कहा था:
15देख, मैंने तुझे एक नये दाँवने के यन्त्र सा बनाया है।
इस यन्त्र में बहुत से दाँते हैं जो बहुत तीखे हैं।
किसान इसको अनाज के छिलके उतारने के काम में लाते है।
तू पर्वतों को पैरों तले मसलेगा और उनको धूल में मिला देगा।
तू पर्वतों को ऐसा कर देगा जैसे भूसा होता है।
16तू उनको हवा में उछालेगा और हवा उनको उड़ा कर दूर ले जायेगी और उन्हें कहीं छितरा देगी।
तब तू यहोवा में स्थित हो कर आनन्दित होगा।
तुझको इस्राएल के पवित्र (परमेश्वर) पर पहुत गर्व होगा।
17“गरीब जन, और जरुरत मंद जल ढूँढ़ते हैं किन्तु उन्हें जल नहीं मिलता है।
वे प्यासे हैं और उनकी जीभ सूखी है। मैं उनकी विनतियों का उत्तर दूँगा।
मैं उनको न ही तजूँगा और न ही मरने दूँगा।
18मैं सूखे पहाड़ों पर नदियाँ बहा दूँगा।
घाटियों में से मैं जलस्रोत बहा दूँगा।
मैं रेगिस्तान को जल से भरी झील में बदल दूँगा।
उस सूखी धरती पर पानी के सोते मिलेंगे।
19मरुभूमि में देवदार के, कीकार के, जैतून के, सनावर के, तिघारे के, चीड़ के पेड़ उगेंगे!
20लोग ऐसा होते हुए देखेंगे और वे जानेंगे कि
यहोवा की शक्ति ने यह सब किया है।
लोग इनको देखेंगे और समझना शुरु करेंगे कि
इस्राएल के पवित्र (परमेश्वर) ने यह बातें की हैं।”
यहोवा की झूठे देवताओं को चेतावनी
21याकूब का राजा यहोवा कहता है, “आ, और मुझे अपनी युक्तियाँ दे। अपना प्रमाण मुझे दिखा और फिर हम यह निश्चय करेंगे कि उचित बातें क्या हैं 22तुम्हारे मूर्तियों को हमारे पास आकर, जो घट रहा है, वह बताना चाहिये। प्रारम्भ में क्या कुछ घटा था और भविष्य में क्या घटने वाला है। हमें बताओं हम बड़े ध्यान से सुनेंगे। जिससे हम यह जान जायें कि आगे क्या होने वाला है। 23हमें उन बातों को बताओ जो घटनेवाली हैं। जिन्हें जानने का हमें इन्तज़ार है ताकि हम विश्वास करें कि सममुच तुम देवता हो। कुछ करो! कुछ भी करो। चाहे भला चाहे बुरा ताकि हम देख सकें और जान सके कि तुम जीवित हो और तुम्हारा अनुसरण करें।
24“देखो झूठे देवताओं, तुम बेकार से भी ज्यादा बेकार हो! तुम कुछ भी तो नहीं कर सकते। केवल बेकार के भ्रष्ट लोग ही तुम्हें पूजना चाहते हैं!”
बस यहोवा ही परमेश्वर है
25“उत्तर में मैंने एक व्यक्ति को उठाया है।
वह पूर्व से जहाँ सूर्य उगा करता है, आ रहा है।
वह मेरे नाम की उपासना किया करता है।
जैसे कुम्हार मिट्टी रौंदा करता है वैसे ही वह विशेष व्यक्ति राजाओं को रौंदेगा।”
26“यह सब घटने से पहले ही हमें जिसने बताया है, हमें उसे परमेश्वर कहना चाहिए।
क्या हमें ये बातें तुम्हारे किसी मूर्ति ने बतायी नहीं!
किसी भी मूर्ति ने कुछ भी हमको नहीं बताया था।
वे मूर्ति तो एक भी शब्द नहीं बोल पाते हैं।
वे झूठे देवता एक भी शब्द जो तुम बोला करते हो नहीं सुन पाते हैं।
27मैं यहोवा सिय्योन को इन बातों के विषय में बताने वाला पहला था।
मैंने एक दूत को इस सन्देश के साथ यरूशलेम भेजा था कि: ‘देखो, तुम्हारे लोग वापस आ रहे हैं!’”
28मैंने उन झूठे देवों को देखा था, उनमें से कोई भी इतना बुद्धिमान नहीं था जो कुछ कह सके।
मैंने उनसे प्रश्न पूछे थे वे एक भी शब्द नहीं बोल पाये थे।
29वे सभी देवता बिल्कुल ही व्यर्थ हैं!
वे कुछ नहीं कर पाते वे पूरी तरह मूल्यहीन हैं!
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