परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 2: न्यायियों)नमूना
हन्ना,मुक्त महिला
जिस समय पर इस्राएल देश निरन्तर परमेश्वर से दूर हो रहा था,उसी समय प्रकाश की किरण चमकी,परन्तु उसके सामने भी कष्टों की भरमार थी।
हन्ना,बांझ होने के कारण बहुत दुःखी रहा करती थी। ज़ख्मों पर नमक छिड़कने के लिएः
·एल्काना 10 पुत्रों से बढ़कर होने का दावा तो करता है लेकिन उसे पूरी तरह से समझता नहीं है
·पनिन्ना, दूसरी पत्नी जिसकी पाँच सन्तानें थीं,उसे ताना मारा करती थी
·एली याजक उस पर टिप्पणी करता है कि उसने मदिरा पी रखी है
कई बार परमेश्वर आशीषों की बरसात करने से कुछ समय पहले तक आशीषों को रोके रखते हैं।
हन्ना ने इन भयानक परिस्थितियों में अद्भुत ढंग से प्रतिक्रिया दी।
·उसने अपनी सारी चिन्ताओं को परमेश्वर को दे दिया।
जब वह प्रार्थना कर रही थी,और एली उस पर नशा करने का आरोप लगा रहा था,उसने बड़े आदर के साथ उसे अपनी समस्या बताई। उसने उसे निश्चय दिलाया कि वह सन्तान को जन्म देगी। हन्ना ने उसकी बातों पर विश्वास किया और तुरन्त उसका दुःख दूर हो गया। “तब वह स्त्री चली गई और खाना खाया,और उसका मुँह फिर उदास न रहा। ” शमूएल 1:18। उसने अपनेः
- दर्द
- घमण्ड
- समस्याओं को छोड़ दिया।
उसने प्रतिज्ञा को मज़बूती से पकड़ लिया।
·उसने परमेश्वर से आशीष को पा लिया।
शमूएल के रूप में प्राप्त आशीष केवल उसी के लिए नहीं वरन वह सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए आशीष थी। जब आशा खत्म होती है तब ही परमेश्वर के दासों उसके अगुवे का जन्म होता है।
·उसने अपनी आशीष को परमेश्वर को दे दिया
दूध छुड़ाने के बाद अब हन्ना की बारी थी कि वह परमेश्वर से मांगी हुई मन्नत को पूरा करे। यहूदी संस्कृति के हिसाब से छुड़ाने का काम तीन तरीकों को होता है - मां का दूध छुड़ाना,बच्चों के तरीके और माता पिता पर निर्भरता छुड़ाना। शमूएल को जब मन्दिर में दिया गया तो वह 12 वर्ष का था,और सेवा कर सकता था। (1 शमूएल 2:11)।
हन्ना चाहती तो अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने से इनकार कर सकती थी (1शमूएल 2:12) क्योंकि जिस समय पर हन्ना ले शमूएल को एली के पास छोड़ा उस समय एली स्वयं अपने बच्चों को ठीक ढंग से पालन पोषण नहीं कर पा रहा था। (1शमूएल 2:1-10)इसका मतलब वह:
- आनन्द के साथ
- स्थायी रूप में
- धन्यवाद के साथ
- बिना अपेक्षाओं के देती है
·वह परमेश्वर से बहुतायत से आशीष पाती है।
“और यहोवा ने हन्ना की सुधि ली,और वह गर्भवति हुई और उसके तीन बेटे और दो बेटियां उत्पन्न हुई। और बालक शमूएलयहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया।”(1शमूएल 2:21)
उसके पश्चात,याजकता समाप्त होने लगी,एली के पुत्र परमेश्वर को तुच्छ समझने लगे। परमेश्वर ने एली को सूचित किया यह उसके वंश से याजक पद लिया जा रहा है। (1शमूएल 2:25-35)
यह दण्ड आगे चलकर इस्राएल को भी भुगतना पड़ा जब पवित्र संदूक पर कब्ज़ा कर लिया गया और परमेश्वर की महिमा उन्हें छोड़ कर चली गयी
दूसरी तरफ शमूएल इस्राएल में स्थिरता और शान्ति को वापस लाता है और सभी लोग उसे भविष्यद्वक्ता के रूप में स्वीकार कर लेते हैं
हमारे जीवन की वो कौन सी आशीषें या बोझ हैं जिन्हें हमें परमेश्वर को हाथों में सौंपने की ज़रूरत है? हमें किस प्रकार से देने की आदत बनानी चाहिए?
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
इस्राएलियों को परमेश्वर द्वारा सीधे अगुवाई पाने का अनोखा सौभाग्य प्राप्त था जिसने बाद में मूसा द्वारा कार्यप्रणाली को तैयार किया। परमेश्वर ने अगुवाई करने के लिए न्यायियों को खड़ा किया। उन्हें केवल परमेश्वर की आज्ञाओं का़ पालन करने तथा उसकी आराधना करने की ज़रूरत थी।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए बेला पिल्लई को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://www.bibletransforms.com/