परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 3- राजवंशजों का राज)नमूना
सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर से धरती के राजाओं तक
वर्षों तक अनेकों बार विजय प्रदान करने वाले परमेश्वर को अपने राजा के रूप में पाने के अतुल्य व अनोखे अवसर का आनन्द उठाने के बाद, इस्राएल ने अपने जीवन का सबसे बुरा और भयानक निर्णय लिया जिसकी कोई क्षतिपूर्ति नहीं कर सकता। उन्होंने अपने लिए एक राजा की मांग की और हमेशा की तरह,परमेश्वर को अस्विकार कर दिया।
उनकी प्रतिक्रिया पर भयावित होकर लम्बी सांस लेने से पहले,हम इस बात को याद रखें कि परमेश्वर के प्रति इस्राएल की प्रतिक्रिया आज के बहुत से मसीहियों और कलीसियाओं को प्रतिबिम्बित करती है-अर्थात आज भी ऐसा ही होता है। मसीह की प्रभुता के अधीन होने की बजाय, हमसांसारिक आकर्षण को चुनतेऔर विविध स्तरों पर शान्ति व सुरक्षा को खो देते हैं।
जब शमूएल अति दुःखी होता है तो परमेश्वर कहते हैं “उन्होंने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है,कि मैं उनका राजा न रहूँ”- 1शमूएल 8। अपने प्रेम के निमित्त,परमेश्वर उन्हें इस चुनाव के परिणामों के बारे में सचेत करते वरन इस्राएलियों की राजा चुनने में मदद भी करते हैं।
प्रथम राजा,शाऊल,पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होता है वरन वह नबूवत भी करता है (1 शमूएल 10: 9,10) । लेकिन समय के बीतने पर,सत्ता का खुमार उसके सिर पर चढ़ जाता है,और परमेश्वर को उसे अस्विकार करके उससे राज्य छीनना पड़ता है (1शमूएल 13:12-14)। लेकिन इसके प्रतिउत्तर में,शाऊल पश्चाताप करने के बजाय,यह कहते हुए अपनी प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास करता है कि मेरी प्रजा के पुरनियों और इस्राएल के सामने मेरा आदर कर (1 शमूएल 15:30-31) उसकी वह उड़ान जो पवित्र आत्मा के साथ आरम्भ हुई थी वह दुष्ट आत्मा की शरण में पतन के साथ खत्म होती है क्योंकि वह एक मार्गदर्शन के लिए एक भूतसिद्धि करनेवाली की मदद लेता है (1शमूएल 28:7)।
लेकिन शाऊल का अन्त होने से पहले ही,अगले राजा,दाऊद को, “परमेश्वर के मन के अनुसार जन”(1 शमूएल 13:14) के रूप में चिन्हित व अभिषिक्त कर लिया गया। वह भी दृढ़ता के साथ प्रारम्भ करता औरः
- परमेश्वर द्वारा सम्मान पाता है- 1शमूएल 16 में दाऊद के बढ़े भाईयों को नहीं वरन अद्भुत रीति से उसे चुना जाता है।
- राजा द्वारा उसका सम्मान होता है- उसकी सफलता को देखकर राजा शाऊल ने उसे योद्धाओं का प्रधान नियुक्त किया। (1शमूएल18: 5)
- लोगों ने उसका सम्मान किया- विजय प्राप्त करने के बाद जब सैनिक युद्ध से वापस लौटे तब स्त्रियों ने नांचते हुए गीत गाए। (1शमूएल 18:7) ।
- गोलियत के साथ प्रसिद्ध युद्ध में(अध्याय 18)उसकी सफलता के प्रमुख घटक निम्न हैं :
- सकेन्द्रित मन- वह पूरी तरह से सकेन्द्रित था,कोई भी चीज़ उसे डराकर रोक या हतोत्साहित नहीं कर पाई।
- एक लक्ष्य- गोलियत के साथ लड़ाई में कूदने का कारण 1शमूएल 17:46 में दिया गया है,“तब समस्त पृथ्वी के लोग जान लेगें कि इस्राएल में एक परमेश्वर है।”
आज भी, परमेश्वर किसी को अभिषिक्त करना चाहता है-सम्भवतः शाऊल या दाऊद के समान प्रत्यक्ष रूप में नहीं वरन आत्मिक रूप में अवश्य। किसी ऐसे जन को जिससे परम्परागत अगुवे व मसीही जगत के लोग कम ही उम्मीद रखते हैं।
क्या परमेश्वर या मनुष्य का विचार या अपेक्षा हमें अधिक परेशान करती है? कौन सी चीज़ हमें विवश करती है ? हम उसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए कितने संकेन्द्रित हैं?
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
वे समुद्र के बीच में से होकर गुज़रे, बादल के खम्बे और आग के खम्बे ने उनकी अगुवाई की, उन्होंने शहरपनाहों को तोड़ डाला और शक्शिाली शत्रुओं को हराया। इसके बावज़ूद भी इस्राएल एक राजा की मांग करता है,वह परमेश्वर की अवज्ञा करता है,जिसने उन्हें चेतावनी दे रखी थी। कुछ ही राजाओं ने परमेश्वर का आदर किया, और बाकि राजाओं ने इस्राएल को निर्वासन,गुलामी और विखण्डन में धकेल दिया।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए बेला पिल्लई को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://www.bibletransforms.com/