योहन 11
11
लाजर की मृत्यु
1लाजर नामक एक व्यक्ति बीमार पड़ गया। वह मरियम और उसकी बहिन मार्था के गाँव बेतनियाह का निवासी था।#लू 10:38-39 2यह वही मरियम थी, जिसने इत्र से प्रभु का अभ्यंजन किया और अपने केशों से उनके चरण पोंछे थे। उसका भाई लाजर बीमार था।#यो 12:3 3दोनों बहिनों ने येशु को समाचार भेजा, “प्रभु! देखिए, जिसे आप प्यार करते हैं, वह बीमार है।” 4येशु ने यह सुन कर कहा, “इस बीमारी का अन्त मृत्यु नहीं, बल्कि यह परमेश्वर की महिमा के लिए है। इसके द्वारा परमेश्वर का पुत्र महिमान्वित होगा।”#यो 9:3
5येशु मार्था, उसकी बहिन मरियम और लाजर से प्रेम करते थे। 6यह सुन कर कि लाजर बीमार है, वह जहाँ थे, वहाँ और दो दिन ठहर गये; 7किन्तु इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “आओ! हम फिर यहूदा प्रदेश को चलें।” 8शिष्य बोले, “गुरुवर! कुछ ही दिन पहले वहाँ के लोग आप को पत्थरों से मार डालना चाहते थे और आप फिर वहीं जा रहे हैं?”#यो 8:59; 10:31 9येशु ने उत्तर दिया, “क्या दिन के बारह घण्टे नहीं होते? जो दिन में चलते हैं, वे ठोकर नहीं खाते, क्योंकि वे इस संसार के प्रकाश को देखते हैं।#यो 9:4-5; 1 यो 2:10 10परन्तु जो रात में चलते हैं, वे ठोकर खाते हैं, क्योंकि उनमें प्रकाश नहीं होता।”#यो 12:35; 1 यो 2:11
11इतना कहने के बाद वह फिर उन से बोले, “हमारा मित्र लाजर सो गया है। किन्तु मैं उसे नींद से जगाने जा रहा हूँ।”#मत 9:24; लू 8:52 12शिष्यों ने कहा, “प्रभु! यदि वह सो रहा है, तो स्वस्थ हो जाएगा।” 13येशु ने यह उसकी मृत्यु के विषय में कहा था, लेकिन उनके शिष्यों ने समझा कि वह नींद के विश्राम के विषय में कह रहे हैं। 14इसलिए येशु ने उन से स्पष्ट शब्दों में कहा, “लाजर मर गया है, 15और मैं तुम्हारे कारण प्रसन्न हूँ कि मैं वहाँ नहीं था, जिससे तुम लोग विश्वास कर सको। आओ, हम उसके पास चलें।” 16इस पर थोमस ने, जो दिदिमुस#11:16 अर्थात्, ‘जुड़वां’ । कहलाता था, अपने सहशिष्यों से कहा, “आओ, हम भी इनके साथ मरने को चलें।”#मक 10:32; 14:31
येशु जीवन और पुनरुत्थान हैं
17वहाँ पहुँचने पर येशु को पता चला कि लाजर को कबर में दफनाए चार दिन हो चुके हैं। 18बेतनियाह यरूशलेम के समीप, लगभग तीन किलोमीटर#11:18 मूल में, ‘पन्द्रह स्तदियन’ दूर था। 19इसलिए भाई की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिए यहूदा प्रदेश के बहुत-से लोग मार्था और मरियम से मिलने आए थे। 20ज्यों ही मार्था ने यह सुना कि येशु आ रहे हैं, वह उन से मिलने गयी। किन्तु मरियम घर में ही बैठी रही।
21मार्था ने येशु से कहा, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।#यो 11:32 22और मैं जानती हूँ कि आप अब भी परमेश्वर से जो कुछ मागेंगे, परमेश्वर आप को वही प्रदान करेगा।” 23येशु ने उस से कहा, “तुम्हारा भाई फिर जी उठेगा।” 24मार्था ने उत्तर दिया, “मैं जानती हूँ कि वह अन्तिम दिन पुनरुत्थान के समय फिर जी उठेगा”।#यो 5:29; 6:40; लू 14:14; 2 मक 7:22-23; 12:44 25येशु ने कहा, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है, वह मरने पर भी जीवित रहेगा 26और जो जीवित है, तथा मुझ में विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो?”#यो 5:24; 8:51 27उसने उत्तर दिया, “हाँ, प्रभु! मैं विश्वास करती हूँ कि आप ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे।”#यो 6:69
28वह यह कह कर चली गयी और अपनी बहिन मरियम को बुला कर उसने चुपके से उससे कहा, “गुरुवर यहाँ हैं और तुम को बुला रहे हैं।” 29यह सुनते ही वह उठ खड़ी हुई और येशु से मिलने गयी। 30येशु अब तक गाँव नहीं पहुँचे थे। वह उसी स्थान पर थे, जहाँ मार्था उन से मिली थी।#यो 11:20 31जो लोग संवेदना प्रकट करने के लिए मरियम के साथ घर में थे, वे यह देख कर कि वह अचानक उठ कर बाहर चली गयी, उसके पीछे हो लिये; क्योंकि उन्होंने समझा कि वह कबर पर रोने जा रही है।
येशु रोए
32मरियम उस जगह पहुँची, जहाँ येशु थे। उन्हें देखते ही वह उनके चरणों पर गिर पड़ी और बोली, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।”#यो 11:21 33येशु, उसे और उसके साथ आए हुए लोगों को रोते देख कर, बहुत व्याकुल हो उठे और गहरी साँस ले कर#यो 13:21 34बोले, “तुम लोगों ने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने कहा, “प्रभु! आइए और देखिए।” 35येशु रो पड़े।#लू 19:41 36इस पर लोगों ने कहा, देखो! यह उसे कितना प्यार करते थे”; 37किन्तु उनमें से कुछ बोले, “इन्होंने तो अन्धे की आँखें खोलीं। क्या वह इतना नहीं कर सके कि यह मनुष्य नहीं मरता?”
लाजर को जीवन-दान
38येशु ने फिर गहरी साँस ली और कबर पर आए। वह कबर एक गुफा थी, जिसके मुँह पर पत्थर रखा हुआ था।#मत 27:60 39येशु ने कहा, “पत्थर हटा दो।” मृतक की बहिन मार्था ने उन से कहा, “प्रभु! अब उसमें से दुर्गन्ध आती होगी; क्योंकि उसे मरे चार दिन हो चुके हैं।”#यो 10:1 40येशु ने उसे उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम से यह नहीं कहा कि यदि तुम विश्वास करोगी, तो परमेश्वर की महिमा देखोगी?” 41इस पर लोगों ने पत्थर हटा दिया।
येशु ने आँखें ऊपर उठा कर कहा, “पिता! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ; तूने मेरी प्रार्थना सुन ली है। 42मैं जानता था कि तू सदा मेरी प्रार्थना सुनता है। किन्तु मैंने आसपास खड़े लोगों के कारण ऐसा कहा है, जिससे वे विश्वास करें कि तूने मुझे भेजा है।”#यो 12:30 43यह कह कर येशु ने ऊंचे स्वर से पुकारा, “लाजर! बाहर निकल आओ!” 44मृतक बाहर निकल आया। उसके हाथ और पैर पट्टियों से बंधे हुए थे और उसके मुख पर अंगोछा लपेटा हुआ था। येशु ने लोगों से कहा, “इसके बन्धन खोल दो और इसे जाने दो।”
येशु को मार डालने का षड्यन्त्र
45जो लोग मरियम से मिलने आए थे और जिन्होंने येशु का यह कार्य देखा, उनमें से बहुतों ने येशु में विश्वास किया।#यो 10:42; 12:42; लू 16:31 46परन्तु उनमें से कुछ व्यक्तियों ने फरीसियों के पास जा कर बताया कि येशु ने क्या किया है।
47तब महापुरोहितों और फरीसियों ने धर्म-महासभा बुला कर कहा, “हम क्या करें? यह मनुष्य बहुत आश्चर्यपूर्ण चिह्न दिखा रहा है। 48यदि हम उसे ऐसा करते रहने देंगे, तो सब उसमें विश्वास कर लेंगे और रोमन लोग आ कर हमारा मन्दिर और हमारी जाति को नष्ट कर देंगे।” 49उन में से एक ने, जिसका नाम काइफा था और जो उस वर्ष प्रधान महापुरोहित था, उन से कहा, “आप लोग कुछ भी नहीं जानते 50और न आप समझते हैं कि आपका कल्याण इसमें है कि जनता के लिए केवल एक मनुष्य मरे और समस्त जाति नष्ट न हो।”#यो 18:14 51उसने यह बात अपनी ओर से नहीं कही। किन्तु उसने उस वर्ष के प्रधान महापुरोहित के रूप में नबूवत की कि येशु यहूदी जाति के लिए मरेंगे#उत 50:20; नि 28:30; गण 27:21 52और न केवल यहूदी जाति के लिए, बल्कि इसलिए भी कि वह परमेश्वर की बिखरी हुई सन्तान को एकत्र कर एक करें।#यो 10:16; 1 यो 2:2; मत 12:30 53उसी दिन से वे येशु को मार डालने का षड्यन्त्र रचने लगे। 54इसलिए येशु ने उस समय से यहूदा प्रदेश में प्रकट रूप से आना-जाना बन्द कर दिया। वह निर्जन प्रदेश के निकटवर्ती क्षेत्र के एफ्रइम नामक नगर को चले गये और वहाँ अपने शिष्यों के साथ रहने लगे।
55यहूदियों का पास्का (फसह) पर्व निकट था। बहुत लोग पर्व से पहले अपने-आप को शुद्ध करने के लिए देहात से यरूशलेम आए।#2 इत 30:17; मक 10:32; प्रे 21:24,26 56वे येशु को ढूँढ़ रहे थे और मन्दिर में खड़े हुए आपस में बात कर रहे थे, “आपका क्या विचार है? क्या वह पर्व के लिए नहीं आ रहे हैं?” 57महापुरोहितों और फरीसियों ने येशु को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से यह आदेश दिया था कि यदि किसी व्यक्ति को मालूम हो जाए कि येशु कहाँ हैं, तो वह इसकी सूचना उनको दे।
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