“दाहड़ु, चांद अने तारा मे सेलाणी देखाव पड़हे; अने धरती ना आखा देस-देस ना माणहु नी जीवाय पोर गरा हयहे, अने तीहया दर्यान ह़ुहवारा अने झलक ने देखीन घबराय जहे। अने माणहु बीहीन अने कळजुग पोर आव्वा वाळी आखी वेला नी वाट जोवी-जोवीन तीमना जीव मे जीव नी रेय, काहाके ह़रग मे वाळी सक्ती हील जहे। अने तत्यार आखा माणहु मनख्यान बेटा ने सक्ती भेळ अने बड़ाय भेळ वादळा पोर बहीन आवत्लो देखहु।