योहन 7
7
येशु के भाइयों का आग्रह
1इसके पश्चात् येशु गलील प्रदेश में भ्रमण करने लगे। वह यहूदा प्रदेश में भ्रमण करना नहीं चाहते थे, क्योंकि यहूदी धर्मगुरु उन्हें मार डालने की ताक में थे।#मक 9:30; लू 9:51
2यहूदियों का मण्डप-पर्व निकट था।#लेव 23:34 3इसलिए येशु के भाइयों ने उनसे कहा, “यह प्रदेश छोड़ कर यहूदा प्रदेश जाइए, जिससे आप जो महान् कार्य करते हैं, उन्हें आपके शिष्य भी देख सकें।#प्रे 1:14; यो 2:12; मत 12:46 4जो नाम कमाना चाहता है, वह छिप कर काम नहीं करता। जब आप ऐसे कार्य करते ही हैं, तो अपने को दुनिया के सामने प्रकट कर दीजिए।” (5येशु के भाई भी उनमें विश्वास नहीं करते थे।)#मत 13:55 6येशु ने उन से कहा, “अब तक मेरा समय नहीं आया है। पर तुम लोगों का समय तो सदा अनुकूल है।#यो 2:4 7संसार तुम से बैर नहीं कर सकता; किन्तु वह मुझ से बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विषय में यह साक्षी देता हूँ कि उसके काम बुरे हैं।#यो 15:18 8तुम पर्व के लिए जाओ। मैं#7:8 पाठांतर, “मैं अभी” इस पर्व के लिए नहीं जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय अब तक पूरा नहीं हुआ है।” 9यह कहकर येशु गलील प्रदेश में ही रह गये। 10बाद में, जब उनके भाई पर्व के लिए जा चुके थे, तब येशु भी प्रकट रूप में नहीं, बल्कि गुप्त रूप में वहाँ गये।
मण्डप-पर्व में येशु का प्रवचन
11यहूदी धर्मगुरु पर्व में येशु को ढूँढ़ रहे थे, और लोगों से पूछ रहे थे, “वह कहाँ है?” 12जनता में उनके विषय में बड़ी कानाफूसी हो रही थी। कुछ लोग कहते थे, “वह भला मनुष्य है।” कुछ कहते थे, “नहीं, वह लोगों को पथभ्रष्ट कर रहा है।” 13फिर भी धर्मगुरुओं के भय के कारण कोई उनके विषय में खुल कर बातें नहीं करता था।#यो 9:22; 12:42; 19:38
14जब पर्व के आधे दिन बीत गए, तब येशु मन्दिर में गए, और लोगों को शिक्षा देने लगे। 15यहूदी धर्मगुरु आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने कहा, “इसने कभी पढ़ा नहीं। तब इसे शास्त्र का ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ?”#मत 13:54; लू 2:47 16येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी शिक्षा मेरी नहीं है। यह उसकी है, जिसने मुझे भेजा है।#यो 12:49 17यदि कोई उसकी इच्छा पूरी करने का संकल्प करेगा, तो वह यह जान जाएगा कि मेरी शिक्षा परमेश्वर की ओर से है अथवा मैं अपनी ओर से बोलता हूँ। 18जो अपनी ओर से बोलता है वह अपने लिए सम्मान चाहता है; किन्तु जो उसके लिए सम्मान चाहता है, जिसने उसे भेजा, वह सच्चा है और उस में कोई कपट नहीं है।#यो 5:41,44
19“क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? फिर भी तुम लोगों में कोई व्यवस्था का पालन नहीं करता।#यो 5:16,18,47; प्रे 7:53; रोम 2:17-29
“तुम लोग मुझे मार डालने की ताक में क्यों रहते हो?” 20लोगों ने उत्तर दिया, “आप को भूत लगा है। कौन आप को मार डालने की ताक में रहता है!”#यो 8:48,52; 10:20; मक 3:21 21येशु ने उत्तर दिया, “मैंने एक कार्य किया है, और तुम सब आश्चर्य करते हो।#यो 5:16 22सुनो, निश्चय मूसा ने तुम्हें ख़तना कराने का नियम दिया−यद्यपि वह मूसा से नहीं, बल्कि पूर्वजों से चला आ रहा है, और तुम विश्राम-दिवस पर भी मनुष्य का खतना करते हो।#उत 17:10-12; लेव 12:3 23यदि विश्राम-दिवस पर मनुष्य का खतना इसलिए किया जाता है कि मूसा का नियम भंग न हो, तो तुम लोग मुझ से इस बात पर क्यों रुष्ट हो कि मैंने विश्राम-दिवस पर एक मनुष्य को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया?#यो 5:8 24मुँह देखा न्याय मत करो, वरन् निष्पक्ष न्याय करो।”#यो 8:15
क्या यह मसीह है?
25इस पर यरूशलेम के कुछ लोगों ने कहा, “क्या यह वही नहीं है, जिसे हमारे धर्माधिकारी मार डालने की ताक में हैं?#यो 7:19 26देखो तो, यह प्रकट रूप से बोल रहा है और वे इस से कुछ नहीं कहते। क्या उन्होंने सचमुच मान लिया कि यह मसीह है? 27फिर भी हम जानते हैं कि यह कहाँ का है; परन्तु जब मसीह प्रकट होंगे, तो किसी को यह पता नहीं चलेगा कि वह कहाँ के हैं।#यो 7:41”
28येशु ने मन्दिर में शिक्षा देते हुए पुकार कर कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ। जिसने मुझे भेजा है, वह सच्चा है और तुम उसे नहीं जानते। 29मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उसके यहाँ से आया हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।”#मत 11:27 30इस पर उन्होंने येशु को गिरफ्तार करना चाहा, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला; क्योंकि अब तक उनका समय नहीं आया था।#यो 8:20; 13:1; लू 22:53
31फिर भी जनता में बहुतों ने येशु पर विश्वास किया। उन्होंने कहा, “जब मसीह आएँगे, तब क्या वह इन से भी अधिक आश्चर्यपूर्ण चिह्न दिखाएँगे?”#यो 8:30; 10:42; यो 11:45; 12:42 32फरीसियों ने सुना कि जनता में येशु के विषय में इस प्रकार की कानाफूसी हो रही है। अत: महापुरोहितों और फरीसियों ने येशु को गिरफ्तार करने के लिए सिपाहियों को भेजा।
33उस समय येशु ने कहा, “अब मैं कुछ ही समय तक तुम्हारे साथ रहूँगा। इसके पश्चात् मैं उसके पास चला जाऊंगा, जिसने मुझे भेजा है।#यो 13:33 34तुम मुझे ढूँढ़ोगे, किन्तु नहीं पाओगे। मैं जहाँ हूँ तुम लोग वहाँ नहीं आ सकते।”#यो 8:21; 12:36; 17:24 35इस पर यहूदी धर्मगुरुओं ने आपस में कहा, “इन्हें कहाँ जाना है, जो हम इन को नहीं पा सकेंगे? क्या यह यूनानियों के बीच बसे हुए यहूदियों के पास जाएँगे और यूनानियों को भी शिक्षा देंगे? 36इनके इस कथन का क्या अर्थ है : ‘तुम लोग मुझे ढूँढ़ोगे, किन्तु नहीं पाओगे’ और ‘मैं जहाँ हूँ, तुम वहाँ नहीं आ सकते’?”
संजीवन-जल की प्रतिज्ञा
37पर्व के अन्तिम और मुख्य दिन येशु खड़े हुए और उन्होंने पुकार कर कहा, “यदि कोई प्यासा है, तो वह मेरे पास आए।#यो 4:10,14; लेव 23:36 38जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाए। जैसा कि धर्मग्रन्थ का कथन है : ‘उसके अन्तस्तल से संजीवन-जल की नदियाँ बह निकलेंगी।#7:38 अथवा, “यदि कोई प्यासा है, तो वह मेरे पास आए और अपनी प्यास बुझाए। जैसा कि धर्मग्रन्थ का कथन है, ‘जो मुझ में विश्वास करता है, उसके अन्तस्तल से संजीवन-जल की नदियाँ बह निकलेंगी’ ” ’ ”#यश 44:3; 55:1; 58:11; यहेज 47:1,12; जक 13:1; 14:8; योए 2:28; 3:18 39उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषय में कही, जो उन में विश्वास करने वालों को प्राप्त होगा। उस समय तक आत्मा नहीं था#7:39 पाठांतर, “पवित्र आत्मा प्रदान नहीं किया गया था”, क्योंकि येशु अभी महिमान्वित नहीं हुए थे।#यो 16:7; 2 कुर 3:17
येशु के विषय में मतभेद
40ये शब्द सुन कर जनता में कुछ लोगों ने कहा, “यह सचमुच वही नबी हैं, जो आनेवाले थे।”#यो 6:14; व्य 18:15 41कुछ ने कहा, “यह मसीह हैं।” किन्तु कुछ लोगों ने कहा, “क्या मसीह गलील प्रदेश से आएँगे?#यो 1:46 42क्या धर्मग्रन्थ यह नहीं कहता कि दाऊद के वंश से और दाऊद के गाँव बेतलेहम से मसीह का आगमन होगा?”#2 शम 7:12; मी 5:2; मत 2:5-6; 22:42; भज 89:3 43इस प्रकार येशु के विषय में लोगों में मतभेद हो गया।#यो 9:16 44कुछ लोग येशु को गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला।#यो 7:30
निकोदेमुस येशु का पक्ष लेता है
45जब सिपाही महापुरोहितों और फरीसियों के पास लौटे, तब फरीसियों ने उन से पूछा, “उसे क्यों नहीं लाए?”#यो 7:32 46सिपाहियों ने उत्तर दिया, “जैसा वह मनुष्य बोलता है, वैसा कभी कोई नहीं बोला।”#मत 7:28-29 47इस पर फरीसियों ने कहा, “क्या उसने तुम्हें भी पथभ्रष्ट कर दिया? 48क्या हमारे अधिकारियों अथवा फरीसियों में किसी ने उस में विश्वास किया है?#यो 12:42 49भीड़ की बात दूसरी है। वह व्यवस्था से अनभिज्ञ है और शापित है।”
50निकोदेमुस जो पहले एक बार येशु से मिलने आए थे, उन फरीसियों में से एक था।#यो 3:1-2 निकोदेमुस ने उन से कहा, 51“क्या हमारी व्यवस्था किसी मनुष्य को, जब तक पहले उसकी बात न सुन ले और यह न पता लगा ले कि उसने क्या किया है, उसे दोषी ठहराती है?”#व्य 1:16-17; 19:15 52उन्होंने निकोदेमुस को उत्तर दिया, “कहीं आप भी तो गलीली नहीं हैं? शास्त्रों का अनुशीलन कर पता लगा लीजिए कि गलील प्रदेश में नबी नहीं उत्पन्न होता।”#यो 1:46; 7:41 [#7:52 कुछ प्राचीन प्रतियों में 7:53 से 8:11 तक पद नहीं पाए जाते हैं। 53इसके बाद सब अपने-अपने घर चले गए।
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येशु के भाइयों का आग्रह
1इसके पश्चात् येशु गलील प्रदेश में भ्रमण करने लगे। वह यहूदा प्रदेश में भ्रमण करना नहीं चाहते थे, क्योंकि यहूदी धर्मगुरु उन्हें मार डालने की ताक में थे।#मक 9:30; लू 9:51
2यहूदियों का मण्डप-पर्व निकट था।#लेव 23:34 3इसलिए येशु के भाइयों ने उनसे कहा, “यह प्रदेश छोड़ कर यहूदा प्रदेश जाइए, जिससे आप जो महान् कार्य करते हैं, उन्हें आपके शिष्य भी देख सकें।#प्रे 1:14; यो 2:12; मत 12:46 4जो नाम कमाना चाहता है, वह छिप कर काम नहीं करता। जब आप ऐसे कार्य करते ही हैं, तो अपने को दुनिया के सामने प्रकट कर दीजिए।” (5येशु के भाई भी उनमें विश्वास नहीं करते थे।)#मत 13:55 6येशु ने उन से कहा, “अब तक मेरा समय नहीं आया है। पर तुम लोगों का समय तो सदा अनुकूल है।#यो 2:4 7संसार तुम से बैर नहीं कर सकता; किन्तु वह मुझ से बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विषय में यह साक्षी देता हूँ कि उसके काम बुरे हैं।#यो 15:18 8तुम पर्व के लिए जाओ। मैं#7:8 पाठांतर, “मैं अभी” इस पर्व के लिए नहीं जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय अब तक पूरा नहीं हुआ है।” 9यह कहकर येशु गलील प्रदेश में ही रह गये। 10बाद में, जब उनके भाई पर्व के लिए जा चुके थे, तब येशु भी प्रकट रूप में नहीं, बल्कि गुप्त रूप में वहाँ गये।
मण्डप-पर्व में येशु का प्रवचन
11यहूदी धर्मगुरु पर्व में येशु को ढूँढ़ रहे थे, और लोगों से पूछ रहे थे, “वह कहाँ है?” 12जनता में उनके विषय में बड़ी कानाफूसी हो रही थी। कुछ लोग कहते थे, “वह भला मनुष्य है।” कुछ कहते थे, “नहीं, वह लोगों को पथभ्रष्ट कर रहा है।” 13फिर भी धर्मगुरुओं के भय के कारण कोई उनके विषय में खुल कर बातें नहीं करता था।#यो 9:22; 12:42; 19:38
14जब पर्व के आधे दिन बीत गए, तब येशु मन्दिर में गए, और लोगों को शिक्षा देने लगे। 15यहूदी धर्मगुरु आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने कहा, “इसने कभी पढ़ा नहीं। तब इसे शास्त्र का ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ?”#मत 13:54; लू 2:47 16येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी शिक्षा मेरी नहीं है। यह उसकी है, जिसने मुझे भेजा है।#यो 12:49 17यदि कोई उसकी इच्छा पूरी करने का संकल्प करेगा, तो वह यह जान जाएगा कि मेरी शिक्षा परमेश्वर की ओर से है अथवा मैं अपनी ओर से बोलता हूँ। 18जो अपनी ओर से बोलता है वह अपने लिए सम्मान चाहता है; किन्तु जो उसके लिए सम्मान चाहता है, जिसने उसे भेजा, वह सच्चा है और उस में कोई कपट नहीं है।#यो 5:41,44
19“क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? फिर भी तुम लोगों में कोई व्यवस्था का पालन नहीं करता।#यो 5:16,18,47; प्रे 7:53; रोम 2:17-29
“तुम लोग मुझे मार डालने की ताक में क्यों रहते हो?” 20लोगों ने उत्तर दिया, “आप को भूत लगा है। कौन आप को मार डालने की ताक में रहता है!”#यो 8:48,52; 10:20; मक 3:21 21येशु ने उत्तर दिया, “मैंने एक कार्य किया है, और तुम सब आश्चर्य करते हो।#यो 5:16 22सुनो, निश्चय मूसा ने तुम्हें ख़तना कराने का नियम दिया−यद्यपि वह मूसा से नहीं, बल्कि पूर्वजों से चला आ रहा है, और तुम विश्राम-दिवस पर भी मनुष्य का खतना करते हो।#उत 17:10-12; लेव 12:3 23यदि विश्राम-दिवस पर मनुष्य का खतना इसलिए किया जाता है कि मूसा का नियम भंग न हो, तो तुम लोग मुझ से इस बात पर क्यों रुष्ट हो कि मैंने विश्राम-दिवस पर एक मनुष्य को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया?#यो 5:8 24मुँह देखा न्याय मत करो, वरन् निष्पक्ष न्याय करो।”#यो 8:15
क्या यह मसीह है?
25इस पर यरूशलेम के कुछ लोगों ने कहा, “क्या यह वही नहीं है, जिसे हमारे धर्माधिकारी मार डालने की ताक में हैं?#यो 7:19 26देखो तो, यह प्रकट रूप से बोल रहा है और वे इस से कुछ नहीं कहते। क्या उन्होंने सचमुच मान लिया कि यह मसीह है? 27फिर भी हम जानते हैं कि यह कहाँ का है; परन्तु जब मसीह प्रकट होंगे, तो किसी को यह पता नहीं चलेगा कि वह कहाँ के हैं।#यो 7:41”
28येशु ने मन्दिर में शिक्षा देते हुए पुकार कर कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ। जिसने मुझे भेजा है, वह सच्चा है और तुम उसे नहीं जानते। 29मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उसके यहाँ से आया हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।”#मत 11:27 30इस पर उन्होंने येशु को गिरफ्तार करना चाहा, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला; क्योंकि अब तक उनका समय नहीं आया था।#यो 8:20; 13:1; लू 22:53
31फिर भी जनता में बहुतों ने येशु पर विश्वास किया। उन्होंने कहा, “जब मसीह आएँगे, तब क्या वह इन से भी अधिक आश्चर्यपूर्ण चिह्न दिखाएँगे?”#यो 8:30; 10:42; यो 11:45; 12:42 32फरीसियों ने सुना कि जनता में येशु के विषय में इस प्रकार की कानाफूसी हो रही है। अत: महापुरोहितों और फरीसियों ने येशु को गिरफ्तार करने के लिए सिपाहियों को भेजा।
33उस समय येशु ने कहा, “अब मैं कुछ ही समय तक तुम्हारे साथ रहूँगा। इसके पश्चात् मैं उसके पास चला जाऊंगा, जिसने मुझे भेजा है।#यो 13:33 34तुम मुझे ढूँढ़ोगे, किन्तु नहीं पाओगे। मैं जहाँ हूँ तुम लोग वहाँ नहीं आ सकते।”#यो 8:21; 12:36; 17:24 35इस पर यहूदी धर्मगुरुओं ने आपस में कहा, “इन्हें कहाँ जाना है, जो हम इन को नहीं पा सकेंगे? क्या यह यूनानियों के बीच बसे हुए यहूदियों के पास जाएँगे और यूनानियों को भी शिक्षा देंगे? 36इनके इस कथन का क्या अर्थ है : ‘तुम लोग मुझे ढूँढ़ोगे, किन्तु नहीं पाओगे’ और ‘मैं जहाँ हूँ, तुम वहाँ नहीं आ सकते’?”
संजीवन-जल की प्रतिज्ञा
37पर्व के अन्तिम और मुख्य दिन येशु खड़े हुए और उन्होंने पुकार कर कहा, “यदि कोई प्यासा है, तो वह मेरे पास आए।#यो 4:10,14; लेव 23:36 38जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाए। जैसा कि धर्मग्रन्थ का कथन है : ‘उसके अन्तस्तल से संजीवन-जल की नदियाँ बह निकलेंगी।#7:38 अथवा, “यदि कोई प्यासा है, तो वह मेरे पास आए और अपनी प्यास बुझाए। जैसा कि धर्मग्रन्थ का कथन है, ‘जो मुझ में विश्वास करता है, उसके अन्तस्तल से संजीवन-जल की नदियाँ बह निकलेंगी’ ” ’ ”#यश 44:3; 55:1; 58:11; यहेज 47:1,12; जक 13:1; 14:8; योए 2:28; 3:18 39उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषय में कही, जो उन में विश्वास करने वालों को प्राप्त होगा। उस समय तक आत्मा नहीं था#7:39 पाठांतर, “पवित्र आत्मा प्रदान नहीं किया गया था”, क्योंकि येशु अभी महिमान्वित नहीं हुए थे।#यो 16:7; 2 कुर 3:17
येशु के विषय में मतभेद
40ये शब्द सुन कर जनता में कुछ लोगों ने कहा, “यह सचमुच वही नबी हैं, जो आनेवाले थे।”#यो 6:14; व्य 18:15 41कुछ ने कहा, “यह मसीह हैं।” किन्तु कुछ लोगों ने कहा, “क्या मसीह गलील प्रदेश से आएँगे?#यो 1:46 42क्या धर्मग्रन्थ यह नहीं कहता कि दाऊद के वंश से और दाऊद के गाँव बेतलेहम से मसीह का आगमन होगा?”#2 शम 7:12; मी 5:2; मत 2:5-6; 22:42; भज 89:3 43इस प्रकार येशु के विषय में लोगों में मतभेद हो गया।#यो 9:16 44कुछ लोग येशु को गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला।#यो 7:30
निकोदेमुस येशु का पक्ष लेता है
45जब सिपाही महापुरोहितों और फरीसियों के पास लौटे, तब फरीसियों ने उन से पूछा, “उसे क्यों नहीं लाए?”#यो 7:32 46सिपाहियों ने उत्तर दिया, “जैसा वह मनुष्य बोलता है, वैसा कभी कोई नहीं बोला।”#मत 7:28-29 47इस पर फरीसियों ने कहा, “क्या उसने तुम्हें भी पथभ्रष्ट कर दिया? 48क्या हमारे अधिकारियों अथवा फरीसियों में किसी ने उस में विश्वास किया है?#यो 12:42 49भीड़ की बात दूसरी है। वह व्यवस्था से अनभिज्ञ है और शापित है।”
50निकोदेमुस जो पहले एक बार येशु से मिलने आए थे, उन फरीसियों में से एक था।#यो 3:1-2 निकोदेमुस ने उन से कहा, 51“क्या हमारी व्यवस्था किसी मनुष्य को, जब तक पहले उसकी बात न सुन ले और यह न पता लगा ले कि उसने क्या किया है, उसे दोषी ठहराती है?”#व्य 1:16-17; 19:15 52उन्होंने निकोदेमुस को उत्तर दिया, “कहीं आप भी तो गलीली नहीं हैं? शास्त्रों का अनुशीलन कर पता लगा लीजिए कि गलील प्रदेश में नबी नहीं उत्पन्न होता।”#यो 1:46; 7:41 [#7:52 कुछ प्राचीन प्रतियों में 7:53 से 8:11 तक पद नहीं पाए जाते हैं। 53इसके बाद सब अपने-अपने घर चले गए।
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