लूकस 18
18
न्यायाधीश और विधवा का दृष्टान्त
1येशु ने शिष्यों को यह बतलाने के लिए कि उन्हें सदा प्रार्थना करना चाहिए, और निराश नहीं होना चाहिए, एक दृष्टान्त सुनाया।#रोम 12:12; कुल 4:2; 1 थिस 5:17 2येशु ने कहा, “किसी नगर में एक न्यायाधीश था, जो न तो परमेश्वर से डरता और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। 3उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए।’ 4बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो परमेश्वर से डरता और न किसी मनुष्य की परवाह करता हूँ, 5किन्तु यह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं इसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे।’ ”#लू 11:7-8
6प्रभु ने कहा, “सुनो, इस अधर्मी न्यायाधीश ने क्या कहा? 7तो क्या परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?#प्रव 35:19 8मैं तुम से कहता हूँ, वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव-पुत्र आएगा, तब क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
फरीसी और चुंगी-अधिकारी
9कुछ लोग बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे। येशु ने ऐसे लोगों के लिए यह दृष्टान्त सुनाया, 10“दो मनुष्य प्रार्थना करने मन्दिर में गये : एक फरीसी संप्रदाय का था और दूसरा चुंगी-अधिकारी था। 11फरीसी खड़े-खड़े इस प्रकार प्रार्थना कर रहा था, ‘परमेश्वर! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि मैं दूसरे लोगों की तरह लोभी, अन्यायी, व्यभिचारी नहीं हूँ और न इस चुंगी-अधिकारी की तरह हूँ।#लू 16:15; यश 58:2-3 12मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दशमांश दान करता हूँ।’#मत 23:23 13चुंगी-अधिकारी कुछ दूरी पर खड़ा था। उसे स्वर्ग की ओर आँख उठाने तक का साहस नहीं हुआ। वह अपनी छाती पीट-पीट कर यह कह रहा था, ‘परमेश्वर! मुझ पापी पर दया कर।’ ”#भज 51:1
14येशु ने कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, वह पहला नहीं, बल्कि यह मनुष्य पापमुक्त हो कर#18:14 अथवा, “परमेश्वर की दृष्टि में धार्मिक ठहर कर” अपने घर गया। क्योंकि जो कोई अपने आपको ऊंचा करता है, वह नीचा किया जाएगा; परन्तु जो अपने आप को नीचा करता है, वह ऊंचा किया जाएगा।”#लू 14:11; मत 23:12; यहेज 21:31
बच्चों को आशीर्वाद
15लोग येशु के पास छोटे बच्चों को भी लाए कि वह उन्हें स्पर्श करें। शिष्यों ने यह देख कर लोगों को डाँटा।#मत 19:13-15; मक 10:13-16 16किन्तु येशु ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें मत रोको; क्योंकि परमेश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का ही है। 17मैं तुम से सच कहता हूँ : जो मनुष्य छोटे बालक की तरह परमेश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में कभी प्रवेश नहीं करेगा।”#मत 18:3
धनी युवक
18एक कुलीन मनुष्य ने येशु से यह पूछा, “भले गुरु! शाश्वत जीवन का उत्तराधिकारी बनने के लिए मैं क्या करूँ?”#मत 19:16-29; मक 10:17-30 19येशु ने उससे कहा, “मुझे भला क्यों कहते हो? परमेश्वर को छोड़ और कोई भला नहीं। 20तुम आज्ञाओं को जानते हो : व्यभिचार मत करो, हत्या मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, अपने माता-पिता का आदर करो।”#नि 20:12-16; व्य 5:16-20 21उसने उत्तर दिया, “इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ।” 22येशु ने यह सुन कर उस से कहा, “तुम में अब तक एक बात का अभाव है। अपना सब कुछ बेच कर गरीबों में बाँट दो और तुम्हारे पास स्वर्ग में धन होगा। तब आकर मेरा अनुसरण करो।”#मत 6:20 23वह यह सुन कर बहुत उदास हो गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
धन की जोखिम
24येशु ने उसे उदास देख कर कहा, “धनवानों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! 25परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने की अपेक्षा ऊंट का सूई के छेद से हो कर निकलना अधिक सरल है।” 26इस पर सुनने वालों ने कहा, “तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?” 27येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्यों के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है।”
स्वैच्छिक निर्धनता
28तब पतरस ने कहा, “देखिए, हम लोग तो अपना सब कुछ#18:28 अथवा, “घर-बार” छोड़ कर आपके अनुयायी हो गये हैं।” 29येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ; ऐसा कोई नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए घर, पत्नी, भाई-बहिनों, माता-पिता या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो 30और इस लोक में उसे कई गुना न मिले और आने वाले युग में शाश्वत जीवन।”
दु:खभोग की तीसरी भविष्यवाणी
31बारह प्रेरितों#18:31 मूल में “बारहों” को अलग ले जा कर येशु ने उनसे कहा, “देखो, हम यरूशलेम जा रहे हैं।#मत 20:17-19; मक 10:32-34 मानव-पुत्र के विषय में नबियों ने जो कुछ लिखा है, वह सब पूरा होने वाला है।#लू 9:22,44 32वह अन्यजातियों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। वे उसका उपहास और अपमान करेंगे और उस पर थूकेंगे। 33वे उसे कोड़े लगाएँगे और मार डालेंगे। लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।” 34उन्हें ये बातें समझ में नहीं आईं। इन शब्दों का अर्थ उन से छिपा ही रहा और वे इनका तात्पर्य नहीं समझ सके।#मक 9:32
अन्धे मनुष्य को दृष्टिदान
35येशु यरीहो नगर के पास पहुँचे। वहाँ एक अन्धा सड़क के किनारे बैठा भीख माँग रहा था।#मत 20:29-34; मक 10:46-52 36उसने भीड़ को गुजरते सुन कर पूछा कि क्या हो रहा है। 37लोगों ने उसे बताया कि येशु नासरी जा रहे हैं। 38इस पर वह यह कहते हुए पुकार उठा, “येशु! दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए।” 39आगे चलने वाले लोगों ने उसे चुप करने के लिए डाँटा, किन्तु वह और भी जोर से पुकारने लगा, “हे दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए।” 40येशु रुक गए और उसको अपने पास लाने की आज्ञा दी। जब वह पास आया, तो येशु ने उससे पूछा, 41“तुम क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” उसने उत्तर दिया, “प्रभु! मैं फिर देख सकूँ।” 42येशु ने उससे कहा, “तुम फिर देखने लगो। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया।”#लू 17:19 43उसी क्षण वह देखने लगा और वह परमेश्वर की स्तुति करते हुए येशु के पीछे हो लिया। सारी जनता भी यह देखकर परमेश्वर की स्तुति करने लगी।
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न्यायाधीश और विधवा का दृष्टान्त
1येशु ने शिष्यों को यह बतलाने के लिए कि उन्हें सदा प्रार्थना करना चाहिए, और निराश नहीं होना चाहिए, एक दृष्टान्त सुनाया।#रोम 12:12; कुल 4:2; 1 थिस 5:17 2येशु ने कहा, “किसी नगर में एक न्यायाधीश था, जो न तो परमेश्वर से डरता और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। 3उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए।’ 4बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो परमेश्वर से डरता और न किसी मनुष्य की परवाह करता हूँ, 5किन्तु यह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं इसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे।’ ”#लू 11:7-8
6प्रभु ने कहा, “सुनो, इस अधर्मी न्यायाधीश ने क्या कहा? 7तो क्या परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?#प्रव 35:19 8मैं तुम से कहता हूँ, वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव-पुत्र आएगा, तब क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
फरीसी और चुंगी-अधिकारी
9कुछ लोग बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे। येशु ने ऐसे लोगों के लिए यह दृष्टान्त सुनाया, 10“दो मनुष्य प्रार्थना करने मन्दिर में गये : एक फरीसी संप्रदाय का था और दूसरा चुंगी-अधिकारी था। 11फरीसी खड़े-खड़े इस प्रकार प्रार्थना कर रहा था, ‘परमेश्वर! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि मैं दूसरे लोगों की तरह लोभी, अन्यायी, व्यभिचारी नहीं हूँ और न इस चुंगी-अधिकारी की तरह हूँ।#लू 16:15; यश 58:2-3 12मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दशमांश दान करता हूँ।’#मत 23:23 13चुंगी-अधिकारी कुछ दूरी पर खड़ा था। उसे स्वर्ग की ओर आँख उठाने तक का साहस नहीं हुआ। वह अपनी छाती पीट-पीट कर यह कह रहा था, ‘परमेश्वर! मुझ पापी पर दया कर।’ ”#भज 51:1
14येशु ने कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, वह पहला नहीं, बल्कि यह मनुष्य पापमुक्त हो कर#18:14 अथवा, “परमेश्वर की दृष्टि में धार्मिक ठहर कर” अपने घर गया। क्योंकि जो कोई अपने आपको ऊंचा करता है, वह नीचा किया जाएगा; परन्तु जो अपने आप को नीचा करता है, वह ऊंचा किया जाएगा।”#लू 14:11; मत 23:12; यहेज 21:31
बच्चों को आशीर्वाद
15लोग येशु के पास छोटे बच्चों को भी लाए कि वह उन्हें स्पर्श करें। शिष्यों ने यह देख कर लोगों को डाँटा।#मत 19:13-15; मक 10:13-16 16किन्तु येशु ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें मत रोको; क्योंकि परमेश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का ही है। 17मैं तुम से सच कहता हूँ : जो मनुष्य छोटे बालक की तरह परमेश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में कभी प्रवेश नहीं करेगा।”#मत 18:3
धनी युवक
18एक कुलीन मनुष्य ने येशु से यह पूछा, “भले गुरु! शाश्वत जीवन का उत्तराधिकारी बनने के लिए मैं क्या करूँ?”#मत 19:16-29; मक 10:17-30 19येशु ने उससे कहा, “मुझे भला क्यों कहते हो? परमेश्वर को छोड़ और कोई भला नहीं। 20तुम आज्ञाओं को जानते हो : व्यभिचार मत करो, हत्या मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, अपने माता-पिता का आदर करो।”#नि 20:12-16; व्य 5:16-20 21उसने उत्तर दिया, “इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ।” 22येशु ने यह सुन कर उस से कहा, “तुम में अब तक एक बात का अभाव है। अपना सब कुछ बेच कर गरीबों में बाँट दो और तुम्हारे पास स्वर्ग में धन होगा। तब आकर मेरा अनुसरण करो।”#मत 6:20 23वह यह सुन कर बहुत उदास हो गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
धन की जोखिम
24येशु ने उसे उदास देख कर कहा, “धनवानों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! 25परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने की अपेक्षा ऊंट का सूई के छेद से हो कर निकलना अधिक सरल है।” 26इस पर सुनने वालों ने कहा, “तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?” 27येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्यों के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है।”
स्वैच्छिक निर्धनता
28तब पतरस ने कहा, “देखिए, हम लोग तो अपना सब कुछ#18:28 अथवा, “घर-बार” छोड़ कर आपके अनुयायी हो गये हैं।” 29येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ; ऐसा कोई नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए घर, पत्नी, भाई-बहिनों, माता-पिता या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो 30और इस लोक में उसे कई गुना न मिले और आने वाले युग में शाश्वत जीवन।”
दु:खभोग की तीसरी भविष्यवाणी
31बारह प्रेरितों#18:31 मूल में “बारहों” को अलग ले जा कर येशु ने उनसे कहा, “देखो, हम यरूशलेम जा रहे हैं।#मत 20:17-19; मक 10:32-34 मानव-पुत्र के विषय में नबियों ने जो कुछ लिखा है, वह सब पूरा होने वाला है।#लू 9:22,44 32वह अन्यजातियों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। वे उसका उपहास और अपमान करेंगे और उस पर थूकेंगे। 33वे उसे कोड़े लगाएँगे और मार डालेंगे। लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।” 34उन्हें ये बातें समझ में नहीं आईं। इन शब्दों का अर्थ उन से छिपा ही रहा और वे इनका तात्पर्य नहीं समझ सके।#मक 9:32
अन्धे मनुष्य को दृष्टिदान
35येशु यरीहो नगर के पास पहुँचे। वहाँ एक अन्धा सड़क के किनारे बैठा भीख माँग रहा था।#मत 20:29-34; मक 10:46-52 36उसने भीड़ को गुजरते सुन कर पूछा कि क्या हो रहा है। 37लोगों ने उसे बताया कि येशु नासरी जा रहे हैं। 38इस पर वह यह कहते हुए पुकार उठा, “येशु! दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए।” 39आगे चलने वाले लोगों ने उसे चुप करने के लिए डाँटा, किन्तु वह और भी जोर से पुकारने लगा, “हे दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए।” 40येशु रुक गए और उसको अपने पास लाने की आज्ञा दी। जब वह पास आया, तो येशु ने उससे पूछा, 41“तुम क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” उसने उत्तर दिया, “प्रभु! मैं फिर देख सकूँ।” 42येशु ने उससे कहा, “तुम फिर देखने लगो। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया।”#लू 17:19 43उसी क्षण वह देखने लगा और वह परमेश्वर की स्तुति करते हुए येशु के पीछे हो लिया। सारी जनता भी यह देखकर परमेश्वर की स्तुति करने लगी।
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