1 योहन 4
4
सत्य और असत्य का निर्णय
1प्रियो! प्रत्येक आत्मा पर विश्वास मत करो। आत्माओं की परीक्षा कर देखो कि वे परमेश्वर की ओर से हैं या नहीं; क्योंकि बहुत-से झूठे नबी संसार में आये हैं।#1 थिस 5:21; मत 7:15 2परमेश्वर के आत्मा को तुम इस प्रकार जान सकते हो : प्रत्येक आत्मा, जो यह स्वीकार करती है कि येशु मसीह देहधारण कर आये, वह परमेश्वर की ओर से है#1 कुर 12:3 3और प्रत्येक आत्मा, जो इस प्रकार येशु को स्वीकार नहीं करती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं है और वह मसीह-विरोधी की आत्मा है। तुमने सुना है कि वह संसार में आने वाला है और अब तो वह संसार में आ चुका है।#1 यो 2:28; 2 थिस 2:3-7; यो 8:17
4बच्चो! तुम परमेश्वर के हो और तुम ने उन लोगों पर विजय पायी है; क्योंकि जो तुम में है, वह उस से महान् है, जो संसार में है।#रोम 8:31; मत 12:29 5वे संसार के हैं और इसलिए वे संसार की बातें करते हैं और संसार उनकी सुनता है।#यो 15:19 6किन्तु हम परमेश्वर के हैं और जो परमेश्वर को जानता है, वह हमारी सुनता है। जो परमेश्वर का नहीं है, वह हमारी बात सुनना नहीं चाहता।#यो 8:47
हम इस प्रकार सत्य की आत्मा और भ्रान्ति की आत्मा को जान सकते हैं।
परमेश्वर प्रेम है
7प्रियो! हम एक दूसरे से प्रेम करें, क्योंकि प्रेम परमेश्वर से उत्पन्न होता है। जो प्रेम करता है, वह परमेश्वर की सन्तान है और परमेश्वर को जानता है।#1 यो 2:29 8जो प्रेम नहीं करता, वह परमेश्वर को नहीं जानता; क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। 9परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में इसलिए भेजा कि हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें।#यो 3:16 10प्रेम इसमें नहीं है कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया, बल्कि परमेश्वर ने हम से प्रेम किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।#1 यो 2:2
11प्रियो! यदि परमेश्वर ने हमसे इतना प्रेम किया, तो हम को भी एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए।#मत 18:33 12परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर हम में निवास करता है और हम में उसका प्रेम परिपूर्णता तक पहुंच जाता है।#यो 1:18
13परमेश्वर ने हमें अपना आत्मा प्रदान किया है, इसलिए हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है।#1 यो 3:24; रोम 5:5
14पिता ने अपने पुत्र को संसार के उद्धारकर्ता के रूप में भेजा। हमने यह देखा है और हम इसकी साक्षी देते हैं।#यो 3:17 15जो यह स्वीकार करता है कि येशु परमेश्वर के पुत्र हैं, परमेश्वर उस में निवास करता है और वह परमेश्वर में।#1 यो 5:5 16इस प्रकार हम अपने प्रति परमेश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। परमेश्वर प्रेम है और जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में और परमेश्वर उस में निवास करता है।
17इस प्रकार प्रेम हम में अपनी परिपूर्णता तक पहुँच जाता है, जिससे हम न्याय के दिन पूरा भरोसा रख सकें; क्योंकि जैसे मसीह हैं वैसे हम भी इस संसार में हैं।#1 यो 2:28
18प्रेम में भय नहीं होता। पूर्ण प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय में दण्ड की आशंका रहती है और जो डरता है, उसका प्रेम पूर्णता तक नहीं पहुँचा है।
19हम प्रेम करते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने पहले हमसे प्रेम किया। 20यदि कोई यह कहे कि मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ और वह अपने भाई अथवा बहिन से बैर करे, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई अथवा बहिन से, जिसे वह देखता है, प्रेम नहीं करता, तो वह परमेश्वर से जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्रेम नहीं कर सकता। 21इसलिए हमें मसीह से यह आदेश मिला है कि जो परमेश्वर से प्रेम करता है, उसे अपने भाई-बहिनों से भी प्रेम करना चाहिए।#मक 12:29-31
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