व्यवस्था-विवरण 10
10
विधान की नई पट्टियाँ
1‘उस समय प्रभु ने मुझसे कहा था, “तू प्रथम पट्टियों के समान पत्थर की दो पट्टियां कटवा और पहाड़ पर चढकर मेरे पास आ। तू लकड़ी की एक मंजूषा बना।#नि 34:1; 25:10 2मैं उन पर वे ही शब्द लिखूंगा जो प्रथम पट्टियों पर लिखे थे और जिनको तूने टुकड़े-टुकड़े कर दिया है। तू उनको मंजूषा में रख देना।” 3अत: मैंने बबूल की लकड़ी की एक मंजूषा बनाई, और प्रथम पट्टियों के समान पत्थर की दो पट्टियाँ कटवायीं। मैं पहाड़ पर चढ़ा। दोनों पट्टियाँ मेरे हाथ में थीं। 4प्रभु ने प्रथम लेख के समान, दस आज्ञाएं#10:4 शब्दश:, ‘वचन’ पट्टियों पर लिख दीं, जो उसने सभा के दिन पहाड़ पर अग्नि के मध्य से तुमसे कही थीं। उसके बाद प्रभु ने उनको मुझे दे दिया। 5मैं लौटा और पहाड़ से नीचे उतर गया। मैंने उन पट्टियों को उस मंजूषा में, जिसे मैंने बनाया था, रख दिया। वे तब से वहीं हैं, जैसी प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी। 6(इस्राएली लोगों ने याकन वंशियों के कुओं से मोसेराह की ओर प्रस्थान किया। वहाँ हारून की मृत्यु हुई, और वहीं उसे गाड़ा गया। उसका पुत्र एलआजर उसके स्थान पर पुरोहित का कार्य करने लगा।#गण 20:28 7वहाँ से उन्होंने गूदगोदाह की ओर प्रस्थान किया, और गूदगोदाह से योट-बाताह की ओर गए, जो जल-सरिताओं की भूमि है। 8उस समय प्रभु ने लेवी कुल को पृथक किया कि वे प्रभु की विधान-मंजूषा को वहन करें। वे प्रभु के सम्मुख प्रस्तुत रहकर उसकी सेवा करें और उसके नाम से आशिष दें, जैसा वे आज भी करते हैं। 9इसलिए लेवी कुल के वंशजों को अपने भाई-बन्धुओं के साथ कोई निज भूमि-भाग अथवा पैतृक सम्पत्ति नहीं मिली है, वरन् प्रभु ही उनकी पैतृक-सम्पत्ति है, जैसा तुम्हारा प्रभु परमेश्वर ने उन्हें वचन दिया था।)#गण 18:20
प्रभु की शर्त
10‘मैं पहले के समान पहाड़ पर चालीस दिन और चालीस रात रहा। उस समय भी प्रभु ने मेरी बात सुनी, और तुम्हें नष्ट करने की इच्छा त्याग दी।#नि 34:28 11प्रभु ने मुझसे कहा था, “उठ, और इन लोगों के आगे-आगे मार्ग-दर्शन कर, जिससे वे उस देश में प्रवेश करें और उस पर अधिकार करें। उस देश को प्रदान करने की शपथ मैंने इनके पूर्वजों से खाई है।”
12‘अब, ओ इस्राएल, तेरा प्रभु परमेश्वर तुझ से क्या चाहता है? केवल यह कि तू अपने प्रभु परमेश्वर की भक्ति करे#10:12 अथवा, ‘भय माने’ उसके सब मार्गों पर चले और उससे प्रेम करे; तू अपने सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से अपने प्रभु परमेश्वर की सेवा करे,#व्य 6:5 13और उसकी सब आज्ञाओं तथा संविधियों का पालन करे, जिसका आदेश मैं तेरी भलाई के लिए आज तुझे दे रहा हूँ।
14‘देखो यह आकाश, उच्च आकाश, और पृथ्वी तथा उसमें जो कुछ है, वह सब तुम्हारे प्रभु परमेश्वर ही का है।#1 रा 8:27; भज 24:1; यश 66:1-2 15फिर भी प्रभु ने तुम्हारे ही पूर्वजों के प्रति प्रेम की कामना की, और उनके पश्चात् उनके वंशजों को, अर्थात् तुम्हीं को अन्य जातियों में से चुना, जैसा आज भी है। 16अत: अपने हृदय को विनम्र बनाओ#10:16 मूल में ‘का खतना करो’, और हठीले न बने रहो#यिर 4:4; रोम 2:29 17क्योंकि तुम्हारा प्रभु परमेश्वर समस्त देवताओं का परमेश्वर है। वह समस्त स्वामियों का स्वामी है। वह महान, बलवान और आतंकमय परमेश्वर है। वह किसी का पक्षपात नहीं करता, और न किसी से घूस ही लेता है।#प्रक 17:14; 1 तिम 6:15; 2 इत 19:7; अय्य 34:19; प्रे 10:34; रोम 2:11; गल 2:6; इफ 6:9; कुल 3:25; 1 पत 1:17; प्रज्ञ 6:7 18वह पितृहीन और विधवा का न्याय करता है। वह तुम्हारे देश में रहने वाले प्रवासी व्यक्ति से प्रेम करता है, उसको भोजन-वस्त्र देता है।#प्रव 35:12-15,17 19अत: प्रवासी व्यक्ति से प्रेम करो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में प्रवासी थे।#नि 22:21; लेव 19:34
20‘तू प्रभु परमेश्वर की भक्ति करना। तू उसकी आराधना करना, और उससे ही सम्बद्ध रहना। तू केवल उसके नाम की शपथ खाना। 21वही तेरे लिए आराध्य है। वह तेरा परमेश्वर है, जिसने तेरे लिए महान और आतंकमय कार्य किए हैं, जिनको तूने अपनी आंखों से देखा है। 22जब तेरे पूर्वज मिस्र देश गए, तब वे केवल सत्तर प्राणी थे; किन्तु अब तेरे प्रभु परमेश्वर ने तुझे आकाश के तारों के समान असंख्य बना दिया है। तू अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करना, तथा उसके द्वारा सौंपे गये दायित्वों और उसके आदेशों, उसकी संविधियों और आज्ञाओं का सदा पालन करना।#10:22 मूल में 11:1#उत 46:27; 15:5; प्रे 7:14
वर्तमान में चयनित:
व्यवस्था-विवरण 10: HINCLBSI
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