यशायाह 58

58
पर्वों को मनाने की उचित विधि
1गला फाड़कर पुकार, तुरही के उच्‍च
स्‍वर के सदृश आवाज दे!
मेरे निज लोगों पर उनके अपराध प्रकट कर,
याकूब के वंशजों को उनके पाप बता।
2वे प्रतिदिन मुझे ढूंढ़ते हैं;
वे मेरे मार्ग जानने की इच्‍छा प्रकट करते हैं;
मानो वे धर्म-कर्म करनेवाला राष्‍ट्र हैं,
जिसने अपने ईश्‍वर के न्‍याय-सिद्धान्‍तों का
परित्‍याग नहीं किया है।
वे मुझ से धर्म के नियम पूछते हैं।
वे मुझ-परमेश्‍वर के समीप आते,
और प्रसन्न होते हैं।
3वे मुझसे कहते हैं: ‘हम उपवास करते हैं
किन्‍तु तू उसको देखता नहीं,
हम अपने प्राण को कष्‍ट देते हैं,
परन्‍तु तू उस पर ध्‍यान नहीं देता।’
देखो, जब तुम उपवास करते हो,
तब तुम्‍हारा उद्देश्‍य
अपनी इच्‍छाओं को पूर्ण करना होता है;
तुम अपने मजदूरों पर अत्‍याचार करते हो।#मल 3:14; मत 6:18
4देखो, तुम केवल लड़ाई-झगड़ा करने के
लिए,
दुष्‍टता से घूसा मारने के लिए उपवास करते हो।
तुम्‍हारे आजकल के उपवास से
तुम्‍हारी प्रार्थना स्‍वर्ग में नहीं सुनाई देगी!
5क्‍या मैं ऐसे उपवास से प्रसन्न होता हूं?
क्‍या इस दिन उपवास करनेवाले व्यक्‍ति को
अपने प्राण को कष्‍ट नहीं देना चाहिए?
क्‍या सिर को झाऊ वृक्ष की तरह झुकाना,
अपने नीचे राख और टाट-वस्‍त्र बिछाना,
उपवास कहलाता है?
क्‍या तुम इसको उपवास कहते हो?
क्‍या ऐसा उपवास का दिन मुझे स्‍वीकार
होगा?
6जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं,
वह यह है :
दुर्जनता के बन्‍धकों से मनुष्‍य को मुक्‍त करना,
व्यक्‍ति की गरदन से जूआ उतारना,
अत्‍याचार की गुलामी में कैद इन्‍सान को
स्‍वतन्‍त्र करना,
वस्‍तुत: हर प्रकार की गुलामी से
मनुष्‍य को स्‍वतंत्र करना।#प्रे 8:23
7अपना भोजन भूखों को खिलाना,
बेघर गरीब को अपने घर में जगह देना,
किसी को नंगे देखकर उसे कपड़े
पहिनाना,
अपने जरूरतमन्‍द भाई-बहिन से मुंह न छिपाना।#मत 25:35
8तब तेरे आनन्‍द का प्रकाश
प्रात: के पौ फटने के सदृश चमकेगा।
तेरा घाव अति शीघ्र भरेगा।
तेरी धार्मिकता मार्ग में
तेरे आगे-आगे तेरा मार्गदर्शन करेगी,
और प्रभु की महिमा तेरे पीछे-पीछे
रक्षक बनकर तेरी रक्षा करेगी।
9तब तू मुझ-प्रभु को संकट में पुकारेगा
और वह तुझको उत्तर देगा।
तू उसकी दुहाई देगा,
और वह तुझसे कहेगा: ‘मैं प्रस्‍तुत हूं।’
यदि तू अपने मध्‍य से दूसरे को गुलाम बनाना,
लोगों पर अंगुली उठाना,
दुष्‍ट वचन बोलना दूर कर दे;
10यदि भूखे व्यक्‍ति के लिए
अपना भण्‍डार-गृह खोल दे#58:10 अक्षरश: ‘अपने प्राण उण्‍डेल दे’। पाठभेद: ‘अपनी रोटी खिला दे’। ,
पीड़ित मनुष्‍य के प्राण को सन्‍तुष्‍ट करे,
तो तेरे आनन्‍द का प्रकाश
अंधकार में चमकेगा,
और तेरे दु:ख का अंधकार
दोपहर के सुखद प्रकाश में
परिणत हो जाएगा।
11प्रभु निरन्‍तर तेरा मार्गदर्शन करता रहेगा,
और वह अभाव के दिनों में भी
तुझे तृप्‍त करेगा।
वह तेरी हड्डियों को मजबूत बनाएगा,
और तू सिंचे हुए उद्यान के सदृश
हरा-भरा होगा;
तू उस झरने के समान होगा,
जिसका जल कभी नहीं सूखता।
12तेरे नगर के प्राचीन खण्‍डहरों का
पुन: निर्माण होगा,
जो नींव अनेक वर्षों से उजाड़ पड़ी थी,
तू उसको फिर उठाएगा,
तू दरारों को भरनेवाला,
और घरों में निवास के हेतु
गलियों को सुधारनेवाला कहलाएगा।
विश्राम-दिवस का पालन करना
13यदि तू विश्राम-दिवस को अपवित्र नहीं
करेगा,
मेरे पवित्र दिवस पर
अपना दैनिक काम-धन्‍धा नहीं करेगा,
और विश्राम-दिवस को आनन्‍द-पर्व मानेगा,
उसको प्रभु का पवित्र और सम्‍मानीय दिन
समझेगा;
यदि तू अपने मार्ग पर
अपने मन के अनुरूप आचरण नहीं करेगा,
अपना काम-काज नहीं करेगा,
और न व्‍यर्थ बातों में उसको गुजारेगा
और यों उसका सम्‍मान करेगा;
14तो तुझे मुझ-प्रभु में सुख प्राप्‍त होगा,
और मैं तुझे पृथ्‍वी के उच्‍चतम स्‍थानों में
विजय प्रदान करूंगा;
मैं तुझे तेरे पिता याकूब का उत्तराधिकार
भोगने के लिए प्रदान करूंगा।
स्‍वयं मेरे मुंह से यह वचन निकला है।#व्‍य 32:13

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यशायाह 58: HINCLBSI

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