यशायाह 59

59
राष्‍ट्रीय दुराचरण
1देखो, प्रभु का हाथ इतना छोटा नहीं है
कि वह बचा न सके।
प्रभु के कान बहरे नहीं हैं,
कि वह सुन न सके।#गण 11:23
2किन्‍तु तुम्‍हारे अधर्म के कामों ने
तुम्‍हारे और तुम्‍हारे परमेश्‍वर के मध्‍य
अलगाव की दीवार खड़ी कर दी है।
तुम्‍हारे पापों ने परमेश्‍वर के मुख को
तुम से छिपा दिया है,
इसलिए वह तुम्‍हारी बात नहीं सुनता।
3तुम्‍हारे हाथ हत्‍या के खून से,
और तुम्‍हारी अंगुलियाँ दुष्‍कर्म से
अपवित्र हैं।
तुम्‍हारे ओंठ झूठ बोलते हैं,
तुम्‍हारी जीभ दुष्‍टतापूर्ण बातें निकालती है।#यश 1:15
4कोई भी व्यक्‍ति सच्‍चाई से नालिश नहीं करता,
और न कोई ईमानदारी से मुकदमा लड़ता है।
वे सब झूठे तर्कों पर भरोसा करते हैं,
वे झूठ ही बोलते हैं,
उन्‍हें अनिष्‍ट का गर्भ रहता है,
और वे अधर्म को जन्‍म देते हैं!#अय्‍य 15:35
5वे सांप के अण्‍डे सेते,
और मकड़ी के जाले बुनते हैं।
जो व्यक्‍ति उनका अण्‍डा खाता है,
वह मर जाता है,
और जो अण्‍डा फूटता है,
उसमें से सांप का बच्‍चा निकलता है!
6उनके जालों से कपड़ा नहीं बनेगा;
जो वे बुनते हैं, उनसे मनुष्‍य अपने शरीर को
ढक नहीं सकता।
उनके काम केवल दुष्‍कर्म हैं,
उनके हाथों से सिर्फ हिंसा के काम होते हैं।
7उनके पैर बुराई की ओर दौड़ते हैं,
वे निर्दोष व्यक्‍ति का रक्‍त बहाने को
भागकर जाते हैं।
उनके विचार अधर्म के विचार हैं,
उनकी योजनाएं
केवल हिंसा और विनाश के लिए हैं।#नीति 1:16; रोम 3:15-17
8वे शान्‍ति का मार्ग नहीं जानते;
उनके आचरण में न्‍याय का अभाव है;
वे सीधे मार्ग पर नहीं चलते;
वरन् उन्‍होंने अपने मार्गों को टेढ़ा बनाया है;
उनके मार्ग पर चलनेवाला व्यक्‍ति
शान्‍ति का अनुभव नहीं करता।
9इस कारण न्‍याय हमसे दूर है;
और धार्मिकता हमारे पास नहीं फटकती।
हम प्रकाश की तलाश में हैं
लेकिन हमें अंधकार मिलता है।
हम उजियाला चाहते हैं,
पर चलते हैं अंधकार में!#यिर 8:15
10हम अंधों की तरह दीवार टटोलते हैं,
नेत्रहीनों के समान हम टटोलते हैं।
हम दिन-दोपहर में रात की तरह
ठोकर खाते हैं।
हृष्‍ट-पुष्‍ट लोगों के मध्‍य हम मुरदों के समान हैं!
11हम-सब रीछों के सदृश गुर्राते हैं;
और कबुतरों के समान गुटरगूं...
गुटरगूं करते हुए विलाप करते हैं।
हम न्‍याय की राह देखते हैं।
पर वह है ही नहीं;
हम उद्धार की प्रतीक्षा करते हैं
पर वह हमसे बहुत दूर है।
12क्‍योंकि प्रभु के सम्‍मुख
हमारे अपराधों का अम्‍बार लग गया है!
हमारे पाप ही हमारे विरुद्ध साक्षी देते हैं;
हमारे अपराध हमारे साथ हैं,
हम अपने दुष्‍कर्मों को जानते हैं :
13हमने प्रभु को अस्‍वीकार किया;
उसके प्रति अपराध किया;
अपने परमेश्‍वर का अनुसरण करना छोड़
दिया,
उससे अपना मुंह फेर लिया।
हमने अत्‍याचार और विरोध की बातें कहीं,
हमने मन में झूठी बातें गढ़ीं,
और उनको अपने मुंह से निकाला भी।
14अत: न्‍याय ने हम से मुंह मोड़ लिया;
धार्मिकता हमसे दूर चली गई।
चौराहे पर सच्‍चाई की धज्‍जियाँ उड़ गईं,
सद्आचरण प्रवेश नहीं पा सकता।
15हमारे जीवन में सत्‍य का अभाव है;
जो बुराई से दूर रहता है, वही ठगा जाता है।
प्रभु ने यह देखा, वह अप्रसन्न हुआ कि
न्‍याय का अस्‍तित्‍व नहीं रहा।
16उसने देखा कि किसी में भी पुरुषार्थ नहीं
रहा।
यह देखकर उसे अचरज हुआ
कि कोई भी ऐसा मनुष्‍य नहीं है,
जो बुराई से संघर्ष करे।
अत: उसने अपने भुजबल से
विजय प्राप्‍त की,
और उसकी धार्मिकता ने उसका साथ दिया।#यश 63:5
17उसने धार्मिकता का कवच धारण किया,
और उद्धार का मुकुट अपने सिर पर रखा।
उसने प्रतिशोध के वस्‍त्र पहिने,
और क्रोधाग्‍नि की चादर ओढ़ ली।#इफ 6:14; 1 थिस 5:8; प्रज्ञ 5:17-23
18वह दुर्जनों को
उनके दुष्‍कर्मों के अनुसार प्रतिफल देगा,
वह अपने बैरियों पर अपना क्रोध प्रकट
करेगा;
वह अपने शत्रुओं से प्रतिशोध लेगा;
वह समुद्रतट के द्वीपों को
उनके कामों का बदला देगा।
19अत: पूर्व से पश्‍चिम तक
लोग प्रभु के नाम से, उसके तेज से डरेंगे;
क्‍योंकि वह उमड़ते हुए जल-प्रवाह के
सदृश आएगा,
जिसको प्रभु का आत्‍मा बहाएगा।#मत 8:11
20याकूब के वंशजों के पास
जो अपने अपराधों से पश्‍चात्ताप करते हैं,
वह सियोन में
मुक्‍तिदाता के रूप में आएगा।
प्रभु की यही वाणी है।#रोम 11:26
21प्रभु कहता है, ‘जहाँ तक मेरा प्रश्‍न है, मैंने तेरे साथ यह विधान स्‍थापित किया है : मेरा आत्‍मा, जो तुझ पर है, तथा मेरे वचन, जो मैंने तेरे मुंह में प्रतिष्‍ठित किए हैं, वे तेरे मुंह से, तेरी सन्‍तान के मुंह से तथा आनेवाली पीढ़ी से पीढ़ी के मुंह से आज से युग-युगान्‍त तक कभी अलग न होंगे’ − प्रभु की यही वाणी है।

वर्तमान में चयनित:

यशायाह 59: HINCLBSI

हाइलाइट

शेयर

कॉपी

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in