याकूब 3

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जीभ पर नियन्‍त्रण आवश्‍यक
1मेरे भाइयो और बहिनो! आप लोगों में बहुत लोग गुरु न बनें, क्‍योंकि आप जानते हैं कि हम गुरुओं से अधिक कड़ाई से लेखा मांगा जायेगा।#याक 1:19 2हम सब बारम्‍बार गलत काम करते हैं। जो कभी गलत बात नहीं कहता, वह पहुँचा हुआ मनुष्‍य है और वह अपने पूर्ण शरीर को नियंत्रण में रख सकता है।#याक 1:26; प्रव 5:9-15; 14:1; 28:13-26 3यदि हम घोड़ों को वश में रखने के लिए उनके मुँह में लगाम लगाते हैं, तो उनके सारे शरीर को इधर-उधर घुमा सकते हैं। 4जलयान का भी उदाहरण लीजिए। वह कितना ही बड़ा क्‍यों न हो और तेज हवा से भले ही बहाया जा रहा हो, तब भी वह कर्णधार की इच्‍छा के अनुसार एक छोटी-सी पतवार से चलाया जाता है। 5इसी प्रकार जीभ शरीर का एक छोटा-सा अंग है, किन्‍तु वह शक्‍तिशाली होने का दावा कर सकती है। देखिए, एक छोटी-सी चिनगारी कितने विशाल वन में आग लगा सकती है। 6जीभ भी एक आग है। उसमें अधर्म का संसार भरा पड़ा है। हमारे अंगों में जीभ ही है जो हमारा समस्‍त शरीर दूषित करती और नरकाग्‍नि से प्रज्‍वलित हो कर हमारे भव-चक्र में आग लगा देती है।#मत 15:11,18-19; 12:36-37 7हर प्रकार के पशु और पक्षी, रेंगने वाले और जलचर जीवजन्‍तु, सब-के-सब मानव-जाति द्वारा वश में किये जा सकते हैं अथवा वश में किये जा चुके हैं, 8किन्‍तु कोई मनुष्‍य अपनी जीभ को वश में नहीं कर सकता। वह एक ऐसी बुराई है, जो कभी शान्‍त नहीं रहती और प्राणघातक विष से भरी हुई है।#भज 140:3
9हम उस से अपने प्रभु एवं पिता की स्‍तुति करते हैं और उसी से मनुष्‍यों को अभिशाप देते हैं, जो परमेश्‍वर के स्‍वरूप में बनाए गए हैं।#उत 1:27 10एक ही मुख से स्‍तुति भी निकलती है और अभिशाप भी। मेरे भाइयो और बहिनो! यह उचित नहीं है। 11क्‍या जलस्रोत की एक ही धारा से मीठा पानी भी निकलता है और कड़वा भी? 12क्‍या अंजीर के पेड़ पर जैतून लगते हैं या दाखलता पर अंजीर? खारे जलस्रोत से भी मीठा पानी नहीं निकलता।
संसार की बुद्धि और ईश्‍वरीय प्रज्ञ
13आप लोगों में जो ज्ञानी और समझदार होने का दावा करता है, वह अपने सदाचरण द्वारा, अपने नम्र तथा बुद्धिमान व्‍यवहार द्वारा इस बात का प्रमाण दे।#याक 2:18; 1 पत 2:12; प्रव 19:20-30 14यदि आपका हृदय कटु ईष्‍र्या और स्‍वार्थ से भरा हुआ है, तो डींग मार कर सत्‍य के विपरीत झूठा दावा मत करें।#इफ 4:31 15इस प्रकार की बुद्धि ऊपर से नहीं आती, बल्‍कि वह पार्थिव, पाशविक और शैतानी है।#याक 1:5,17 16जहाँ ईष्‍र्या और स्‍वार्थ है, वहाँ अशान्‍ति और हर तरह की बुराई पायी जाती है। 17किन्‍तु ऊपर से आयी हुई प्रज्ञ सब से पहले निर्दोष है, और वह शान्‍तिप्रिय, सहनशील, विनम्र, करुणामय, परोपकारी, पक्षपातहीन और निष्‍कपट भी है।#इब्र 12:11 18धार्मिकता शान्‍ति के क्षेत्र में बोयी जाती है और शान्‍ति स्‍थापित करने वाले उसका फल प्राप्‍त करते हैं।#यश 32:17; मत 5:9

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