याकूब 4
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संसार का मित्र परमेश्वर का शत्रु बन जाता है
1आप लोगों में द्वेष और लड़ाई-झगड़ा कहां से आता है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि आपकी वासनाएँ आप के अन्दर लड़ाई करती हैं?#रोम 7:23; 1 पत 2:11 2आप अपनी लालसा पूरी नहीं कर पाते और इसी लिए हत्या करते हैं। आप जिस चीज के लिए ईष्र्या करते हैं, उसे नहीं पाते और इसलिए लड़ते-झगड़ते हैं। आप प्रार्थना नहीं करते, इसलिए आप लोगों के पास कुछ नहीं होता। 3जब आप मांगते भी हैं, तो इसलिए नहीं पाते कि अच्छी तरह प्रार्थना नहीं करते। आप अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
4व्यभिचारियों के सदृश आचरण करने वाले अनिष्ठावान लोगो! क्या तुम यह नहीं जानते कि संसार से मित्रता रखने का अर्थ है परमेश्वर से बैर करना? जो संसार का मित्र होना चाहता है, वह परमेश्वर का शत्रु बन जाता है।#लू 6:26; रोम 8:7; 1 यो 2:15 5क्या तुम समझते हो कि धर्मग्रन्थ अकारण कहता है कि परमेश्वर ने जिस आत्मा को हम में समाविष्ट किया, उस को वह बड़ी ममता से चाहता है?#नि 20:3,5; मत 6:24; गल 5:17 6वह प्रचुर मात्रा में अनुग्रह भी देता है, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “परमेश्वर घमण्डियों का विरोध करता, किन्तु विनीतों को अनुग्रह प्रदान करता है।”#नीति 3:34 (यू. पाठ); अय्य 22:29; मत 23:12; 1 पत 5:5 7अत: आप लोग परमेश्वर के अधीन रहें। शैतान का सामना करें और वह आप के पास से भाग जायेगा।#इफ 6:12; 1 पत 5:8-9 8परमेश्वर के पास जायें और वह आप के पास आयेगा। पापियो! अपने हाथ शुद्ध करो। कपटियो! अपना हृदय पवित्र करो।#जक 1:3; यश 1:16 9अपनी दुर्गति पहचान कर शोक मनाओ और आंसू बहाओ। अपनी हंसी शोक में और अपना आनन्द विषाद में बदल डालो। 10प्रभु के सामने दीन-हीन बनो तो वह तुम्हें ऊंचा उठायेगा।#1 पत 5:6
दूसरों की निन्दा नहीं करनी चाहिए
11भाइयो और बहिनो! आप एक दूसरे की निन्दा नहीं करें। जो अपने भाई अथवा बहिन की निन्दा करता या अपने भाई अथवा बहिन का न्याय करता है, वह व्यवस्था की निन्दा और व्यवस्था का न्याय करता है। यदि आप व्यवस्था का न्याय करते हैं, तो आप व्यवस्था के पालक नहीं, बल्कि न्यायकर्ता बन बैठते हैं। 12केवल एक ही विधायक और एक ही न्यायकर्ता है, जो बचाने और नष्ट करने में समर्थ है। अपने पड़ोसी का न्याय करने वाले तुम कौन हो?#मत 7:1; रोम 2:1; 14:4
भविष्य अनिश्चित है
13तुम लोग जो यह कहते हो, “हम आज या कल अमुक नगर जायेंगे, एक वर्ष तक वहां रह कर व्यापार करेंगे और धन कमायेंगे”, मेरी बात सुनो।#नीति 27:1; प्रज्ञ 2:4; 5:9-13 14तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारा क्या हाल होगा। तुम्हारा जीवन एक कुहरा मात्र है-वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है।#लू 12:20; भज 39:5,11 15तुम लोगों को यह कहना चाहिए, “यदि प्रभु की इच्छा होगी, तो हम जीवित रहेंगे और यह अथवा वह काम करेंगे”।#प्रे 18:21 16किन्तु तुम अपनी धृष्ठता पर धृष्ठता करते हो। इस प्रकार का घमण्ड बुरा है। 17जो मनुष्य भलाई करना जानता है किन्तु करता नहीं, उसे पाप लगता है#लू 12:47; रोम 14:23।#4:17 अथवा, ‘वह भी पाप करता है।’
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