शोक-गीत 1
1
बन्दिनी सियोन का दु:ख
1जो नगरी लोगों से भरी-पूरी थी, अब वह
उजाड़ पड़ी है;
वह विधवा के सदृश अकेली हो गई।
जो कभी राष्ट्रों में महान थी,
जो कभी नगरों में रानी थी,
अब वह दासी बन गई,
वह दूसरे राज्यों को कर चुकाती है।
2वह रात में फूट-फूटकर रोती है।
उसके गालों पर आंसू बहते हैं।
उसके अनेक चाहनेवाले थे,
पर अब उनमें से एक भी
उसको सांत्वना नहीं देता,
उसके मित्रों ने उसके साथ विश्वासघात
किया।
वे उसके शत्रु बन गए।#भज 6:6; यो 13:18
3अनेक दु:ख भोगने और कठोर गुलामी के
बोझ से दबने के लिए
यहूदा राष्ट्र को निर्वासित होना पड़ा;
अब यहूदा अनेक राष्ट्रों में भटक रहा है;
उसे कहीं ठौर नहीं मिला।
जब वह संकट में रहता है,
तब उसका पीछा करनेवाले उसको पकड़
लेते हैं।
4सियोन को जानेवाले मार्ग विलाप करते हैं,
क्योंकि अब पर्व मनाने के लिए
कोई वहां नहीं आता!
सियोन के सब द्वार उजाड़ पड़े हैं;
उसके पुरोहित कराह रहे हैं।
उसकी कन्याएँ दु:ख से पीड़ित हैं;
स्वयं सियोन नगरी दु:ख भोग रही है।
5सियोन के बैरी अब अगुए बन गए;
उसके शत्रु खुशहाल हैं।
सियोन के अपार अपराधों के कारण
प्रभु ने उसको दु:ख भोगने के लिए विवश
किया है।
सियोन के निवासी शत्रु के सम्मुख बन्दी
बनाए गए,
और वे निर्वासित हो गए।
6सियोन के निवासियों का वैभव लुट गया;
उसके शासक ऐसे मेढ़ों की तरह हो गए
जिन्हें चरने को चरागाह नहीं मिलते।
वे निर्बल हो गए,
और अपने पीछा करनेवालों के आगे-आगे
भागते हुए चल रहे हैं।
7ऐसे संकट और दु:ख-भरे दिनों में
यरूशलेम को धन-समृद्धि की, वैभवपूर्ण
दिनों की,
उन वस्तुओं की याद आ रही है,
जब प्राचीनकाल में ये वस्तुएँ
उसके अधिकार में थीं।
अब यरूशलेम के निवासी बैरियों के हाथ में
पड़ गए;
उनकी सहायता करनेवाला कोई न था;
उसके पतन को देखकर
उसके बैरी उसका मजाक उड़ाने लगे।
8यरूशलेम नगरी ने भयानक पाप किए थे,
अत: सब उससे घृणा करने लगे।
जो उसका आदर करते थे
अब वे उसका अनादर करते हैं;
क्योंकि उन्होंने उसकी नग्नता देख ली है।
अब यरूशलेम नगरी स्वयं कराह रही है,
और शर्म से अपना मुंह छिपा रही है।#यहेज 16:37
9उसकी अशुद्धता उसके कपड़ों पर लिपटी है।
उसने अपने अंत का विचार भी न किया।
अत: वह विस्मित ढंग से पतन के गड्ढे में
गिर पड़ी!
उसे सांत्वना देनेवाला भी कोई नहीं है।
‘हे प्रभु, मेरे कष्टों को देख;
क्योंकि शत्रु मुझ पर प्रबल हो गया!’#व्य 32:29
10शत्रु ने उसका धन-वैभव लूटने के लिए
अपना हाथ बढ़ाया है;
हां, यरूशलेम नगरी को यह भी देखना पड़ा;
विधर्मी राष्ट्र उसके पवित्र स्थान में घुस गए,
जिनके विषय में तूने, प्रभु, यह आज्ञा दी थी,
कि वे तेरी मंडली में प्रवेश नहीं करेंगे।#व्य 23:3
11अब उसके सब निवासी कराहते हुए
भोजन की तलाश में भटक रहे हैं।
वे अपने प्राण बचाने के लिए
बहुमूल्य वस्तुओं के बदले में भोजन खरीद
रहे हैं।
‘हे प्रभु, मेरे कष्ट को देख, मुझ पर ध्यान दे!
क्योंकि मैं कितनी तिरस्कृत हो गई हूं।’
12‘ओ सब राहगीरो!
तुम पर यह मुसीबत न आए!#1:12 मूल में अस्पष्ट। कुछ विद्वानों के मत से इस पद का यह अर्थ हो सकता है, “क्या तुम्हें इस बात की कुछ चिन्ता नहीं है।”
मुझे देखो, मुझ पर ध्यान दो।
जो दु:ख मुझे दिया गया है
क्या उस दु:ख के तुल्य अन्य दु:ख हो
सकता है?
प्रभु ने अपने क्रोध-दिवस पर
यह दु:ख मुझे दिया है।#मत 24:21
13‘उसने ऊपर से आग फेंकी,
और उसको मेरी हड्डियों तक उतार दिया।
उसने मेरे पैरों के लिए जाल फैलाया,
और मुझे चित्त कर दिया।
उसने मुझे उजाड़ दिया;
मैं दिन भर मूर्च्छित पड़ी रही।
14‘मेरे अपराधों का जूआ मुझ पर रखा गया;
स्वयं प्रभु ने अपने हाथ से
रस्सी के सदृश मेरे अपराधों को बुना है।
जूआ मेरी गर्दन पर बांधा गया;
स्वामी ने मेरी शक्ति क्षीण कर दी,
और मुझे उन लोगों के हाथ में सौंप दिया
जिनका सामना मैं नहीं कर सकती।
15‘मुझ में निवास करनेवाले सब योद्धाओं को
स्वामी ने मौत के घाट उतार दिया।
स्वामी ने मेरे विरुद्ध ऐसे दल को बुलाया
जिसने मेरे जवानों को रौंद डाला।
स्वामी ने यहूदा प्रदेश की कुंआरी कन्या को
पेर दिया,
जैसे रस-कुण्ड में अंगूर पेरा जाता है।#यश 63:3
16‘मैं इन बातों के कारण रोती हूं;
मेरी आंखों से आंसू की धारा बहती है।
वह मुझमें साहस फूंकता था,
वह मुझसे दूर चला गया है।
मेरे बच्चे बेघर हो गए हैं;
क्योंकि शत्रु मुझ पर प्रबल हुआ है।’
17सियोन हाथ फैलाकर प्रार्थना कर रही है;
पर उसे सांत्वना देनेवाला कोई नहीं है।
प्रभु ने याकूब के विरुद्ध
उसके पड़ोसी राष्ट्रों को आदेश दिया
कि वे उसके बैरी बन जाएं।
अत: उनके मध्य में यरूशलेम एक घृणित
नगरी बन गई।
18‘प्रभु सच्चा है;
मैंने ही उसके वचन से विद्रोह किया है।
ओ विश्व की सब कौमो!
मेरी बात सुनो, मेरे दु:ख पर ध्यान दो।
मेरे जवान बेटे और बेटियां
बन्दी बनकर निर्वासित हो गए।
19‘मैंने सहायता के लिए अपने प्रेमियों को
पुकारा;
किन्तु उन्होंने मुझे धोखा दिया।
मेरे पुरोहित और धर्मवृद्ध
नगर में भूख से मर गए,
जब वे प्राण बचाने के लिए
भोजन की तलाश में भटक रहे थे।
20‘हे प्रभु, देख; क्योंकि मैं संकट में हूं।
मेरी अंतड़ियाँ ऐंठ रही हैं।
मेरा हृदय व्याकुल हो उठा है;
क्योंकि मैंने तेरे वचन से बहुत विद्रोह किया है।
घर के बाहर तलवार से मैं निर्वंश होती हूं,
और घर के भीतर मृत्यु विराज रही है।#यश 16:11; यिर 4:19; व्य 32:25
21‘वे सुनते हैं कि मैं पीड़ा से कराहती हूं,
पर कोई मुझे सांत्वना नहीं देता।
मेरे सब शत्रुओं ने मेरे संकट के विषय में
सुना;
प्रभु, वे प्रसन्न हैं कि तूने मुझे संकट में
डाला।
जिस दिन की तूने घोषणा की है
वह दिन अविलम्ब ला,
ताकि मेरे शत्रु भी मुझ जैसे दु:ख भोगें।
22‘उनके समस्त दुष्कर्म तेरे सम्मुख प्रकट
किए जाएं;
जैसा तूने मेरे साथ मेरे तमाम अपराधों के
कारण कठोर व्यवहार किया है,
वैसा ही उनके साथ कर।
मैं बहुत कराहती हूं,
मेरा हृदय पीड़ा से मूर्च्छित हो जाता है।’
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