मत्ती 17

17
प्रभु येशु का रूपान्‍तरण
1छ: दिन बाद येशु ने पतरस, याकूब और उसके भाई योहन को अपने साथ लिया और वह उन्‍हें एक ऊंचे पहाड़ पर एकान्‍त में ले गए।#मक 9:2-13; लू 9:28-36 2वहाँ उनके सामने येशु का रूपान्‍तरण हो गया। उनका मुखमण्‍डल सूर्य की तरह दमक उठा और उनके वस्‍त्र प्रकाश के समान उज्‍ज्‍वल हो गये।#2 पत 1:16-18 3और वहाँ शिष्‍यों को मूसा और नबी एलियाह उनके साथ बातचीत करते दिखाई दिये। 4तब पतरस ने येशु से कहा, “प्रभु! यह हमारे लिए कितना अच्‍छा है कि हम यहाँ हैं। आप चाहें, तो मैं यहाँ तीन तम्‍बू खड़ा करूँ : एक आपके लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” 5वह बोल ही रहा था कि उन सब पर एक चमकीला बादल छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई पड़ी, “यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्‍यन्‍त प्रसन्न हूँ। इसकी बात सुनो।”#मत 3:17; 16:16-17; व्‍य 18:15 6यह वाणी सुन कर शिष्‍य मुँह के बल गिर पड़े और बहुत डर गये। 7तब येशु ने पास आकर उनका स्‍पर्श किया और कहा, “उठो, डरो मत।” 8उन्‍होंने आँखें ऊपर उठायीं, तो येशु के अतिरिक्‍त और किसी को नहीं देखा।
नबी एलियाह के विषय में प्रश्‍न
9येशु ने पहाड़ से उतरते समय उन्‍हें यह आदेश दिया, “जब तक मानव-पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम किसी को भी इस दर्शन के विषय में मत बताना।”#मत 16:20 10इस पर शिष्‍यों ने उन से पूछा, “शास्‍त्री यह क्‍यों कहते हैं कि पहले एलियाह का आना अनिवार्य है?”#मत 11:14; मल 4:5 11येशु ने उत्तर दिया, “अवश्‍य, एलियाह आने वाले हैं और वह सब कुछ ठीक करेंगे।#प्रव 48:10 12परन्‍तु मैं तुम से कहता हूँ, एलियाह आ चुके हैं। उन्‍होंने एलियाह को नहीं पहचाना और उनके साथ मनमाना व्‍यवहार किया। इसी प्रकार मानव-पुत्र भी उनके हाथों दु:ख उठाएगा।”#मत 14:9-10; लू 1:17 13तब शिष्‍य समझ गये कि येशु योहन बपतिस्‍मादाता के विषय में कह रहे हैं।
भूतग्रस्‍त बालक को स्‍वस्‍थ करना
14जब वे जनसमूह के पास पहुँचे तब एक मनुष्‍य आया।#मक 9:14-29; लू 9:37-42 वह येशु के सामने घुटने टेक कर बोला, 15“प्रभु! मेरे पुत्र पर दया कीजिए। वह मिरगी का रोगी है। जब उसे दौरा पड़ता है, तब उसे बहुत कष्‍ट होता है। वह अक्‍सर आग या पानी में गिर जाता है। 16मैं उसे आपके शिष्‍यों के पास लाया, किन्‍तु वे उसे स्‍वस्‍थ नहीं कर सके।” 17येशु ने कहा, “अविश्‍वासी और भ्रष्‍ट पीढ़ी! मैं कब तक तुम्‍हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्‍हें सहता रहूँगा? उसे मेरे पास लाओ।”#व्‍य 32:5; यो 14:9 18येशु ने भूत को डाँटा और वह उस में से निकल गया। वह लड़का उसी घड़ी स्‍वस्‍थ हो गया।
19बाद में शिष्‍यों ने एकान्‍त में येशु के पास आ कर पूछा, “हम लोग उसे क्‍यों नहीं निकाल सके?”#मत 10:1 20येशु ने उन से कहा, “अपने विश्‍वास की कमी के कारण। मैं तुम से सच कहता हूँ − यदि तुम्‍हारा विश्‍वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो यदि तुम इस पहाड़ से यह कहोगे, ‘यहाँ से वहाँ हट जा’, तो यह हट जाएगा; और तुम्‍हारे लिए कुछ भी असम्‍भव नहीं होगा।#मत 21:21; लू 17:6; मक 11:23 21[परन्‍तु भूतों की यह जाति प्रार्थना तथा उपवास के सिवा किसी और उपाय से नहीं निकाली जा सकती#17:21 कुछ प्राचीन प्रतियों में यह पद नहीं मिलता]।”
दु:खभोग और पुनरुत्‍थान की द्वितीय भविष्‍यवाणी
22जब वे गलील प्रदेश में एकत्र हुए तब येशु ने अपने शिष्‍यों से कहा#मक 9:30-32; लू 9:43-45 , “मानव-पुत्र मनुष्‍यों के हाथ पकड़वाया जाने वाला है।#मत 16:21 23वे उसे मार डालेंगे, परन्‍तु वह तीसरे दिन जीवित हो उठेगा”। यह सुन कर शिष्‍यों को बहुत दु:ख हुआ।
मन्‍दिर का कर
24जब वे कफरनहूम नगर में आये, तब मन्‍दिर का कर उगाहने वालों ने पतरस के पास आ कर पूछा, “क्‍या तुम्‍हारे गुरु मन्‍दिर का कर#17:24 मूल में ‘दिद्रख्‍मा’ अथवा, ‘दो दिन की मजदूरी’ नहीं देते?”#नि 30:13 25उसने उत्तर दिया, “हाँ, देते हैं।” जब पतरस घर पहुँचा, तो उसके कहने से पहले ही येशु ने पूछा, “सिमोन! तुम्‍हारा क्‍या विचार है? दुनिया के राजा किन लोगों से चुंगी या कर लेते हैं? अपने ही पुत्रों से या परायों से?” 26पतरस ने उत्तर दिया, “परायों से।” इस पर येशु ने उससे कहा, “तब तो पुत्र कर से मुक्‍त हैं। 27फिर भी हम उन लोगों के लिए बुरा उदाहरण न बनें; इसलिए तुम झील के किनारे जा कर बंसी डालो। जो मछली पहले फँसेगी, उसे पकड़ लेना और उसका मुँह खोलना। उसमें तुम्‍हें चाँदी का एक सिक्‍का#17:27 मूल में, ‘स्‍ततेर’ अर्थात् ‘दिद्रख्‍मा’ का दुगुना मिलेगा। उसे ले लेना और मेरे तथा अपने लिए उन को दे देना।”

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