मत्ती 18

18
स्‍वर्गराज्‍य में बड़ा कौन?
1उस समय शिष्‍य येशु के पास आ कर बोले, “स्‍वर्ग के राज्‍य में सब से बड़ा कौन है?”#मक 9:33-47; लू 9:46-48 2येशु ने एक बालक को बुलाया और उसे शिष्‍यों के बीच में खड़ा कर 3कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, जब तक तुम में परिवर्तन न हो और तुम बच्‍चों के समान न बनो, तो तुम स्‍वर्ग के राज्‍य में प्रवेश नहीं कर सकते।#मत 19:14; यो 3:3-5 4इसलिए जो अपने-आप को इस बालक-जैसा छोटा समझता है, वह स्‍वर्ग के राज्‍य में सब से बड़ा है 5और जो कोई मेरे नाम पर ऐसे बालक का स्‍वागत करता है, वह मेरा स्‍वागत करता है।#मत 10:40; यो 13:20
दूसरों के लिए बुरा उदाहरण बनना
6“जो कोई मुझ पर विश्‍वास करने वाले इन छोटों में से किसी एक को विश्‍वास से विचलित करता है#18:6 अथवा, ‘किसी एक के लिए पाप का कारण बनता है’ , उसके लिए अच्‍छा यही होता कि उसके गले में चक्‍की का भारी पाट बाँधा जाता और वह गहरे समुद्र में डुबा दिया जाता।#लू 17:1-2 7प्रलोभनों के कारण संसार को धिक्‍कार! प्रलोभन अनिवार्य है, किन्‍तु धिक्‍कार उस मनुष्‍य को, जो प्रलोभन का कारण बनता है!
8“यदि तुम्‍हारा हाथ अथवा तुम्‍हारा पैर तुम्‍हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्‍छा यही है कि तुम लूले अथवा लंगड़े हो कर जीवन में प्रवेश करो, किन्‍तु दोनों हाथों अथवा दोनों पैरों के रहते अनन्‍त आग में न डाले जाओ।#मत 5:29-30 9यदि तुम्‍हारी आँख तुम्‍हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्‍छा यही है कि तुम काने हो कर जीवन में प्रवेश करो, किन्‍तु दोनों आँखों के रहते आग के नरक में न डाले जाओ।
10“देखो, इन छोटों में से किसी एक को भी तुच्‍छ न समझना; क्‍योंकि मैं तुम से कहता हूँ − इनके दूत स्‍वर्ग में निरन्‍तर मेरे स्‍वर्गिक पिता के सम्‍मुख उपस्‍थित रहते हैं।#इब्र 1:14; तोब 12:15
भटकी हुई भेड़
11“[जो खो गया था उसी को बचाने के लिए मानव-पुत्र आया है।#18:11 कुछ प्राचीन प्रतियों में यह पद नहीं पाया जाता है।]
12“तुम्‍हारा क्‍या विचार है? यदि किसी के पास एक सौ भेड़ें हों और उन में से एक भेड़ भटक जाए, तो क्‍या वह उन निन्‍यानबे भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़कर उस भटकी हुई भेड़ को खोजने नहीं जाएगा?#लू 15:4-7 13और यदि वह उसे मिल जाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह उन निन्‍यानबे भेड़ों की अपेक्षा, जो भटकी नहीं थीं, उस भेड़ के लिए अधिक आनन्‍द मनाएगा। 14इसी तरह तुम्‍हारा स्‍वर्गिक पिता नहीं चाहता है कि इन छोटों में से एक भी नष्‍ट हो जाए।
भाई-बहिन का सुधार
15“यदि तुम्‍हारा भाई तुम्‍हारे विरुद्ध कोई अपराध करता है, तो जाओ और उसे अकेले में, जहाँ वह और तुम दोनों हो, समझाओ। यदि वह तुम्‍हारी बात मान लेता है, तो तुम ने अपने भाई को बचा लिया।#लेव 19:17; लू 17:3; गल 6:1 16यदि वह तुम्‍हारी बात नहीं मानता है, तो अपने साथ दो-एक व्यक्‍तियों को ले जाओ ताकि दो या तीन गवाहों के सामने सब कुछ प्रमाणित हो जाए।#व्‍य 19:15 17यदि वह उनकी भी नहीं सुनता, तो कलीसिया को बता दो और यदि वह कलीसिया की भी नहीं सुनता है, तो उसे विधर्मी और चुंगी-अधिकारी जैसा समझो।#1 कुर 5:13
18“मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्‍वी पर बाँधोगे, वह स्‍वर्ग में बंधा रहेगा और जो कुछ तुम पृथ्‍वी पर खोलोगे, वह स्‍वर्ग में खुला रहेगा#18:18 मत्ती 16 : 19 की टिप्‍पणी देखिए #मत 16:19; यो 20:23
सामूहिक प्रार्थना
19“यह भी मैं तुम से सच कहता हूँ : यदि तुम में से दो व्यक्‍ति एकमत हो कर पृथ्‍वी पर कुछ भी माँगेंगे, तो वह उन्‍हें मेरे स्‍वर्गिक पिता की ओर से निश्‍चय ही मिलेगा;#मक 11:24 20क्‍योंकि जहाँ दो या तीन व्यक्‍ति मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच उपस्‍थित रहता हूँ।#मत 28:20; यो 14:23
अपराध की क्षमा
21तब पतरस ने पास आ कर येशु से कहा, “प्रभु! यदि मेरा भाई अथवा बहिन#18:21 मूल में, ‘भाई’ मेरे विरुद्ध अपराध करता जाए, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? क्‍या सात बार तक?” 22येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से नहीं कहता − सात बार तक, बल्‍कि सत्तर गुना सात बार तक।#लू 17:4
निर्दय सेवक का दृष्‍टान्‍त
23“यही कारण है कि स्‍वर्ग का राज्‍य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था। 24जब वह लेखा लेने लगा, तब उसके सामने एक सेवक लाया गया। उस पर दस हजार सोने के सिक्‍कों#18:24 मूल में ‘तलंत’; एक सिक्‍के का मूल्‍य प्राय: पन्‍द्रह वर्ष की मजदूरी है। का कर्ज था। 25कर्ज चुकाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्‍वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्‍नी, उसके बच्‍चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाए और ऋण अदा कर लिया जाए। 26इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रखिए। मैं आपको सब कुछ चुका दूँगा।’ 27उस सेवक के स्‍वामी को उस पर तरस आया और उसने उसे मुक्‍त कर जाने दिया और उसका कर्ज माफ कर दिया। 28जब वह सेवक बाहर निकला, तब वह अपने एक सह-सेवक से मिला, जिस पर उसका लगभग एक सौ चाँदी के सिक्‍कों#18:28 मूल में ‘दीनार’; एक सिक्‍के का मूल्‍य एक ही दिन की मजदूरी है। का कर्ज था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला दबा कर कहा, ‘अपना कर्ज चुका दो।’ 29सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रखिए, मैं आप को कर्ज चुका दूँगा।’ 30परन्‍तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिए बन्‍दीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज न चुका दे। 31यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दु:खी हुए और उन्‍होंने अपने स्‍वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं। 32तब स्‍वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ‘दुष्‍ट सेवक! तुम्‍हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्‍हारा सारा कर्ज माफ कर दिया था, 33तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्‍या उसी प्रकार तुम्‍हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’ 34और स्‍वामी ने क्रुद्ध हो कर उसे तब तक के लिए यंत्रणा देने वालों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे।#मत 5:26 35इसी प्रकार यदि तुम में हर एक जन अपने भाई-बहिन को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्‍वर्गिक पिता भी तुम्‍हारे साथ ऐसा ही करेगा।”#मत 6:14-15

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