भजन संहिता 48

48
सियोन पर्वत की सौंदर्यमय महिमा
गीत। कोरह वंशियों का। भजन।
1प्रभु महान है −
हमारा परमेश्‍वर अपने नगर में
अत्‍यन्‍त प्रशंसनीय है।
2उसका पवित्र पर्वत, जिसकी उठान सुन्‍दर है,
समस्‍त पृथ्‍वी के हर्ष का कारण है।
सियोन पर्वत श्रेष्‍ठ पर्वत#48:2 शब्‍दश: ‘उत्तर का सीमान्‍त’ अथवा ‘ईश्‍वर-निवास’। है,
और वह राजाधिराज का नगर है।#भज 50:2; शोक 2:15; मत 5:35
3उसके किलों में परमेश्‍वर ने स्‍वयं को सुदृढ़
सिद्ध किया है।
4देखो राजा एकत्र हुए;
उन्‍होंने एक-साथ नगर पर आक्रमण किया।
5पर वे उसे देखकर चकित रह गए;
वे आतंकित हो तुरन्‍त पलायन कर गए।
6वहाँ भय ने उन्‍हें जकड़ लिया;
उन्‍हें गर्भवती स्‍त्री के समान पीड़ा होने लगी।
7वे तर्शीश के जलयानों के समान हैं,
जिनको पूर्वी पवन छिन्न-भिन्न कर देता है।
8जैसे हमने सुना था वैसा हमने देखा-
स्‍वर्गिक सेनाओं के प्रभु के नगर में,
अपने परमेश्‍वर के नगर में।
परमेश्‍वर उसको सदा सुरक्षित रखता है।
सेलाह
9हे परमेश्‍वर, हमने तेरी करुणा का ध्‍यान
तेरे भवन के मध्‍य किया है।
10हे परमेश्‍वर, तेरे नाम के सदृश तेरी स्‍तुति भी
जगत के सीमान्‍तों तक होती है।
तेरा दाहिना हाथ सदा विजय प्रदान करता है।#मल 1:11
11सियोन पर्वत आनन्‍द मनाए।
तेरे न्‍याय के कारण
यहूदा प्रदेश के नगर हर्षित हों।
12सियोन के चारों ओर जाओ,
उसकी परिक्रमा करो-
उसकी मीनारों की गणना करो।
13उसके परकोटों पर ध्‍यान दो।
उसके गढ़ों में विचरण करो,
जिससे तुम आगमी पीढ़ी को
यह बता सको :
14यही परमेश्‍वर है,
यह युग-युगान्‍त हमारा परमेश्‍वर है।
मृत्‍यु में भी वह हमारा नेतृत्‍व करेगा।

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