जानो, बढ़ो, दिखाओ: यूहन्ना 15 पर मनन -Jaano, Badho, Dikhao: Yoohanna 15 Par Mananनमूना
दिन 7 बने रहना
बने रहने का क्या अर्थ है? तो जबकि यीशु के साथ हमारा संबंध हमेशा का है? कोई आपको उसके हाथों से छीन नहीं सकता, पर आप उसके साथ कितने बढ़िया संबंध का आनंद लेते है यह आप पर निर्भर करता है।
बने रहो, ये शब्द 4 आयतों में 10 बार दोहराए गए हैं। जोर देने के लिए दोहराना एक अच्छे शिक्षक का तरीका है और यीशु बिल्कुल एक अच्छा शिक्षक था। हम बुद्धिमान होंगे अगर ध्यान दें कि यीशु किस बात पर जोर दे रहा है।
बने रहो का अनुवाद “बसना” भी किया गया है। अपना निवास स्थान बनाना। इस पर पुराने नियम में अच्छी तरह मनन किया गया है भजन 91, भजन 84 में। यह वास करने के बारे में बताता है। जहाँ आप “घर पर” सुरक्षित, निश्चिन्त महसूस करें और सबसे करीबी संबंध रख सकें।
पुराने नियम में परमेश्वर की उपस्थिति सिर्फ एक क्षेत्रीय दायरे में सिमित थी। लोग दूर दूर से सफ़र करके मंदिर में आते जहाँ उसकी उपस्थिति थी। क्रूस पर उसकी मृत्यु ने इसे समाप्त कर दिया। आज उसकी उपस्थिति मोटे परदे के पीछे एक बक्से में सीमित नहीं है।
अब उसने उसका आवास हमारे बीच बना लिया है। अब उसने हमारे दिलों में घर बना लिया है। वह ये भी कहता है जहाँ दो या अधिक इकट्ठा होते हैं वहां मैं हूँ। इसीलिए, हममें परमेश्वर की उपस्थिति बसी है और उसकी प्रत्यक्ष उपस्थिति लोगों के समूह में होती है।
ध्यान दें कि इस वचन में जिम्मेदारी हम पर डाली गई है। उसकी तरफ से उसने कहा कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा।
कोई डाली अपने आप से नहीं फल सकती। कोई डाली बिना मुख्य डाली से जुड़े हुए जीवित नहीं रह सकती। सभी डालियां अपना रस, आधार मुख्य डाली से ही लेती हैं।
बने रहने के लिए वचनबद्धता और वाचा चाहिए। यह लेनदेन या शर्त रखना नहीं है। बने रहने के लिए लंबे समय की वचनबद्धता चाहिए। यह ढीला-ढाला नहीं है। इसमें दृढ़ निश्चय, संकल्प और विश्वसनीयता की जरूरत है।
बने रहने के लिए एक और शब्द है चिपके रहना। अपनी नजरों को यीशु पर लगाए रखना और किसी भी चीज़ या व्यक्ति से ध्यान भटकने ना देना।
यीशु बिना शर्त रखे हमसे विश्वसनीय, वचनबद्ध है। क्या हम उससे बिना शर्त रखे विश्वसनीय और वचनबद्ध हैं? क्या यह सहूलियत का रिश्ता है?
अलग होने का मतलब है दाखलता से कट जाना। यह तुलना दोहरी है, व्यक्तिगत और सामूहिक। यह ना सिर्फ आपके यीशु के साथ रिश्ते पर असर डालता है पर एक दूसरे के साथ भी। हम सभी एक शरीर के भाग हैं जिसमें कई भाग एक दूसरे से और सिर से जुड़े हैं। हम इस विषय पर बाद में और देखेंगे।
यह बने रहना चौबीसों घंटे हैं। हमें इसमें जुड़ते और अलग होते नहीं रहना चाहिए। हमें सिर्फ रविवार सुबह और हर सुबह 15 मिनट के लिए मसीह में नहीं बने रहना हैं। हम यीशु में बने रहते हैं अपने काम पर, घर पर, स्कूल में इत्यादि।
हमारे जीवनों में कोई आत्मिक और सांसारिक का विभाजन नहीं है। हमें राज्य के नज़रिए से जीना चाहिए; मसीह में बने रहने के। इसे बार-बार और जानबूझकर करना है।
यीशु लगातार अपने पिता की संगति में रहा। उसने अपने पिता से अलग होकर कुछ भी नहीं किया। वह हमसे उसी तरह उस में बने रहने के लिए कहता है और कहता है कि उससे अलग होकर हम कुछ नहीं कर सकते! प्रेरितों 17:28 में हमें याद दिलाया गया है कि हम उसी में रहते और उसी में हमारे गति और अस्तित्व हैं!
यह परमेश्वर के प्रति सचेत रहना है। वही हमारा मापदंड बन जाता है हमारे हर काम में।
ये जीने का एक बढ़िया और सुरक्षित तरीका है।
जब मैं उसकी उपस्थिति से जीता और उसकी उपस्थिति से कदम उठाता हूँ, तो उसके गुण मुझमे झलकने लगते हैं। मुझे एक नई सृष्टि बना दिया गया है जिसमे अब उसका स्वभाव प्रकट करने की योग्यता है।
मुझे ईश्वरीय विचार आएंगे, मसीह जैसी विचार प्रणाली जो खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचना है।
वचन उल्लेख
यूहन्ना 15:4
भजन 84
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
कुछ समय से परमेश्वर मुझे दोबारा यूहन्ना 15 के पास ले आ रहा है। इन हालातों में यह मेरे पावों के लिए दीपक और रास्ते के लिए ज्योति बन गया है। मैं आपको आमंत्रित करती हूं इन वचनों के कुछ मुख्य विषयों पर मनन करने; जानने, बढ़ने, और प्रेम करने के लिए। English Title: Know, Grow, Show - Reflections on John 15 by Navaz DCruz
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए वर्ड ऑफ ग्रेस चर्च को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://somequietthoughts.blogspot.com/