जीतने वाली प्रवृति नमूना
जीतने की प्रवृति 3- नम्रता
मत्ती 5:5 "धन्य है वे, जो नम्र हैं क्योंकि वे शान्ति पाएंगें।"
क्या नम्रता कोई कमज़ोरी है ? बल्कि इसके विपरीत यह सर्वोच्च शक्ति प्रतीत होती है। ग्रीक भाषा में नम्रता के लिए, प्राइस, शब्द है, जिसका अर्थ कोई कमज़ोरी, समझौता, यहां तक कि संयम का अभ्यास भी नहीं है। यह उस शक्ति को नियंत्रण में करने को दर्शाता है जिसमें उच्च कोटी के कार्य करने की क्षमता होती है। इस विशेषता को परमेश्वर बहुत अधिक अहमियत देते हैं और यह केवल उस व्यक्ति के द्वारा प्राप्त की जा सकती है जिसका परमेश्वर के साथ मज़बूत सम्बन्ध हो। यशायाह 66 के 2 में लिखा है, "मैं उसी की ओर दृष्टि करूंगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो।"
स्वाभाविक तौर पर इसका सबसे उत्तम उदाहरण, "यीशु मसीह हैं, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।" (फिलिप्पियों 2:5,6) वह जानता था कि पिता ने सब कुछ उसके अधीन कर दिया है, इसलिए वह उठा और उसने अपने चेलों के पांव धोना प्रारम्भ कर दिया और कहा, "जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है वैसा ही तुम भी एक दूसरे के साथ किया करो।" (यूहन्ना 13; मत्ती 11:29, 1पतरस 2:21-23)। मूसा, महान शक्ति रखने के बावजूद नम्र था और उसे सारी दुनिया में सबसे ज्यादा विनम्र व्यक्ति के रूप में जाना जाता था (गिनती 12:1-10)। जब घमण्ड का हर एक कण परमेश्वर के हाथों में समर्पित कर दिया जाए, और आप एक चित्त होकर उस काम को करने में लग जाएं जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए रखा हो तो सम्पूर्ण सर्मपण आप की वह प्रवृति, नम्रता कहलाती है। सच्ची नम्रता को पाने के लिए कई वर्षों तक चलना पड़ता है। इसका अर्थ अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करना और उसे उसकी सामर्थ्य से बदल देना है। नम्रता की असली परख दबाव में प्रगट होती हैं। जब उन्होंने यीशु की बेईज्जती की, तब यीशु ने बदला नहीं लिया; जब उसे कष्ट हुआ, तब उसने उन्हें धमकाया नहीं। इसके बजाय, उसने अपने आप को उसके हाथों में सौंपा जो धर्म से न्याय करता है (1 पतरस 2:23)। एक नम्र व्यक्ति में अहम कम और भरोसा ज़्यादा होता है, और जो लोग भरोसा करते हैं, उन्हें बदले में "पृथ्वी का अधिकार" दिया जाएगा। (भजन 37:11)।
नम्र लोगों के अन्दर प्रकाश और आत्मविश्वास भरा होता है जो शारीरिक चुनौतियों और चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों में प्रगट होते हैं। वे तब भी लोगों की आखों में आखें डालकर प्रेम और आदर के साथ बोल सकते हैं जब उन्हें उनसे गालियां खाने को मिल रही हों, तो उन्हें अपनी बातें कहने के लिए चिल्लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती वरन ध्यान आकर्षित व आदर उत्पन्न करती है। उसकी थोड़ी सी बातों का बड़ा मूल्य होता है। उनके भीतर मसीह प्रत्यक्ष नज़र आता है। उनकी चुप्पी में पूर्ण निश्चय होता है कि सब कुछ परमेश्वर के नियन्त्रण में है इसलिए वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी चुपचाप रहते हैं।
नम्रता प्रगट करने के लिए क्या हम परमेश्वर को गहराई से जानते हैं? क्या हम हर परिस्थिति में शान्त और सारे लोगों के बीच में दीन हैं? क्या हमारी सर्वोच्च शक्ति हमारे भीतर विराजमान मसीह और उस विश्वास से विकिरण होती है कि हमारा प्राण सुरक्षित है और हमेशा सामर्थ्य से सामर्थ्य की ओर बढ़ता चला जाता है।
इस योजना के बारें में
खुशी क्या है? सफलता? भौतिक लाभ? एक संयोग? ये मात्र अनुभूतियां हैं। प्रायः खुशी के प्रति अनुभूति होते ही वह दूर चली जाती है। यीशु सच्ची व गहरी खुशी व आशीष को परिभाषित करते हैं। वह बताते हैं कि आशीष निराश नहीं वरन जीवन रूपान्तरित करती है। वह निराशाओं और संकट में प्रकाशित होती है। वह हमारी व हमारे करीबियों की आत्मा को हर समय व परिस्थिति में उभारती है।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए बेला पिल्लई को धन्यवाद देना चाहेंगे। ज्यादा जानकारी के लिये पधारें: http://www.bibletransforms.com