क्लेशों में परमेश्वर की वाणी सुनना नमूना

क्लेशों में परमेश्वर की वाणी सुनना

दिन 2 का 4

एकता के लिए पुकार या आहवाहन

वे कौन सी बाधाएं या सीमाएं हैं जो हमें अन्य मसीहियों या कलीसिया के सदस्यों से अलग कर रही हैं?परमेश्वर सम्भवतः हम से इस सन्दर्भ में क्या करने के लिए कह रहे हैं,और इससे चोटिल लोगों से भरे उस संसार पर क्या प्रभाव पड़ेगा जिसे यीशु की ज़रूरत है?

जब मसीही लोग एकता में रहते हैं तब संसार यीशु को अधिक स्पष्टता से देख पाता है। एकता विश्वास को प्रमुख घटक है। हम एक परमेश्वर पर विश्वास करते हैंः जो पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा है। त्रीएकता में एकता है। दूसरी तरफ देखें तो,आदम और हव्वा के पाप में गिरने के समय से लेकर ही विभाजन मानवजाति के लिए एक श्राप है।

यूहन्ना 17में,यीशु किस प्रमुख की बात के लिए प्रार्थना कर रहे थे?एकता। वह एकता के लिए प्रार्थना कर रहे थे ताकि संसार उन पर विश्वास कर सके। दूसरे शब्दों में कहें तो,यदि कलीसिया विभाजित है, तो संसार के लोग विश्वास नहीं करेगें। यदि हम एक मन नहीं है और संसार को सुसमाचार सुनाना चाहते हैं तो वे विश्वास नहीं करेगें। मेरा एक दोस्त है जो मसीही नहीं है,उसने मुझसे कहा,"मुझे तो कैथोलिक और प्रोटेस्टैन्ट सब एक ही जैसे दिखते हैं। आप दोनों के पास कलीसियाएं हैं। आप दोनों की प्रभु की प्रार्थना दोहराते हैं। लेकिन जब आप एक दूसरे से लड़ते हैं - चाहे वह किसी भी बात पर लड़ाई हो- तो मुझे उनके बारे में आगे कुछ जानने की इच्छा नहीं होती।’ और मैं सोचता हूं कि इस प्रकार के बहुत से लोग हैं जो सोचते हैं, अगर ये लोग अपने विश्वास पर ही आपस में सहमत नहीं हो सकते तो मुझे इनमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए यीशु ने प्रार्थना की कि हम एक मन हो ताकि संसार विश्वास कर सके क्योंकि वह जानते हैं मतभेद होने से लोग दूर हो जाते हैं और इससे उन्हें विश्वास करने में दिक्कत होती है। लेकिन एकता आकर्षित करती है,और कलीसिया में इसका होना बहुत ज़रूरी है।

एक दिन,परमेश्वर के सिंहासन के सामने कलीसिया के बीच में सिद्ध एकता होगी। इस एकता को हम प्रकाशितवाक्य 7:9में देखते हैं,जहां पर लिखा हुआ है ‘इसके बाद मैं ने दृष्टि की,और देखों हर एक जाति,और कुल,और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़,जिसे कोई गिन नहीं सकता था श्वेत वस्त्र पहिने,और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिये हुए सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है।’ विविधता अलग करने के लिए नहीं परन्तु आनन्द मनाने के लिए है,और यह बहुत सुन्दर है। यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया, ‘तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है,वैसे ही इस पृथ्वी पर पूरी हो।" (मत्ती 6:10)। अतः स्वर्ग में परमेश्वर की क्या इच्छा है?वह एकता चाहते हैं,वह चाहते हैं कि हम सिंहासन के सम्मुख एक साथ आराधना करें। इसलिए कलीसिया के सदस्यों के बीच में एकत्ता होना,भिन्न डिनोमिनेशन में एकता होना,भिन्न कलीसियाओं में एकता होना - यह कलीसिया का लक्ष्य है। जितनी जल्दी इस धरती पर दिखने वाली कलीसिया,स्वर्ग में दिखने वाली कलीसिया के समान दिखने लगती है, उतनी ही प्रभावशाली वह ठहरेगी।

पवित्र शास्त्र

दिन 1दिन 3

इस योजना के बारें में

क्लेशों में परमेश्वर की वाणी सुनना

आप परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? परमेश्वर विश्वव्यापी क्लेश में क्या कहते हैं? 4 दिवसीय योजना में,अल्फा के संस्थापक निक्की गम्बल सरल तरीके बताकर प्रारम्भ करते हैं जिससे उन्हें परमेश्वर की वाणी सुनने में मदद मिली।वह तीन मुख्य चुनौतियों को सामने रखते हैं जिनके सन्दर्भ में उन्हें लगा कि परमेश्वर हम से प्रतिक्रिया चाहते हैंः कलीसिया में अधिक एकता,सुसमाचार प्रसार को प्राथमिकता, और प्रतिदिन पवित्र आत्मा पर निर्भरता।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए अल्फा को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.leadershipconference.org.uk/