नियन्त्रण पानानमूना
गुस्से से निपटना
एक और उपलक्ष्य में,फिर से किसी खास मौके पर,एक महिला ने,अति दुखिःद अवस्था और पश्चाताप के साथ,यीशु के पैरों को आंसुओं से भिगोया और उसे अपने लम्बे बालों से पोंछ दिया। उसके इस काम में उसका पूरा समर्पण शामिल था। उसके स्पर्श और उसके पश्चाताप ने यीशु के वचनों में एक आदरणीय स्थान प्राप्त किया। यीशु की जगह पर यदि कोई और होता चाहे उसकी चापलूसी हो रही होती या उसे लज्जित किया जा रहा होता,उस व्यक्ति के द्वारा सार्वजतिक तौर भक्ति प्रगट करने और ध्यान खीचने के लिए उसे बाहर का रास्ता दिया जाता। लोगों की पहली प्रतिक्रिया तो सम्भवतः यह होती, ”वाह! यह तो अद्भुत है। और देखो उसने यह काम बड़े बड़े लोगों और दोस्तों के सामने किया है। मैं विश्वास करता हूं कि सभी लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया होगा कि यह चैनल संख्या5है और वे आंसू असली थे। लेकिन बाद में उन्होंने अपने मन में ऐसा विचार किया होगा, “अरे नहीं,यह सब लोगों के सामने नहीं होना चाहिए था! यदि मेरे फरीसी मेज़बान पास्टर शिमौन देखेगें कि एक चरित्र हीन स्त्री मेरे पैरों को चूम रही है,तो वे क्या सोचेगें?”और सारे लोग मेरी ओर तरफ शक की निगाहों से देख रहे हैं। यह तो बहुत बुरा है। “लेकिन यीशु की प्यार भरी और ख्याल रखने वाली प्रतिक्रिया ने न केवल मेज़बान की आंखों को खोला,वरन उसने उस महिला को उसके सारे पापों से भी मुक्त कर दिया। इस बारे में हम ज़्यादा लूका 7:36-38में पढ़ सकते हैं। यीशु को तब तक कभी कोई शान्तिपूर्ण या आरामदायक क्षण प्राप्त नहीं हुआ जब तक कि वह स्वयं लोगों से दूर पहाड़ की चोटी पर न चला गया। वह जहां कहीं भी जाता था,लोग उसे छूते,धक्का मारते,उसके आस पास भीड़ लगाते और ढकेलते थे। वह आम आपदमी के जैसे झील के किनारे नहीं चल सकता था अतः भीड़ की धक्का मुक्की से बचने के लिए वह नाव पर चढ़ जाता था। वह हर तरह के लोगों के साथ मिल जुलकर रहा करता था,उसने किसी को अस्विकार नहीं किया,सबको आमन्त्रित किया,बिना थके काम किया और वह निरन्तर उपदेश देता रहा। निश्चय तौर पर उसका धीरज बहुत बार परखा और जाचां गया,लेकिन जब जब पारा बढ़ा,तब तब उसने अपने नियन्त्रण को समायोजित कर लिया। यह एक बढ़िया रणनीति है। बहुत कम जगहों पर उसे गुस्सा करते हुए देखा गया,और जब भी वह गुस्सा हुआ तो धार्मिक गुस्सा था,अर्थात् उससे लोगों को भला ही हुआ। यदि उसके वचन का बीज हमारी आत्मा रूपी भूमि पर गिर जाता है तो हम भी अपने संगी स्त्री पुरूषों पर दया प्रगट कर सकते हैं। एक साथ मिलें। भजन सेहिता पढ़ें। और आत्मा के फलों को प्रगट करें।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जब हम दबाव में होते हैं तो हम किस प्रकार सामना करते हैं? क्या तब हम में से आत्मा के फल प्रगट होते हैं, या हमारे आम के पेड़ में से कड़वे फल निकलते हैं, और हमारे अंगूर की बेलों से खट्टे अंगूर पैदा होते हैं? जब पारा बढ़ता है तो तब क्या हमारा गुस्सा भी बढ़ जाता है?
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हम यह योजना प्रदान करने के लिए Rani Jonathan को धन्यवाद देना चाहते हैं। और अधिक जानकारी के लिए कृपया विजिट करें: http://ourupsdowns.blogspot.com/