Logótipo YouVersion
Ícone de pesquisa

लूकस 14

14
विश्राम के दिन आतिथ्‍य-सत्‍कार
1येशु एक विश्राम के दिन किसी फरीसी अधिकारी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी ताक में थे।#लू 6:6-11; 11:37 2येशु के सामने जलोदर से पीड़ित एक मनुष्‍य आया। 3येशु ने अपनी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए व्‍यवस्‍था के आचार्यों तथा फरीसियों से पूछा, “विश्राम के दिन स्‍वस्‍थ करना उचित है या नहीं?” 4वे चुप रहे। इस पर येशु ने जलोदर-पीड़ित का हाथ पकड़ कर उसे अच्‍छा कर दिया और विदा किया। 5तब येशु ने उन से कहा, “यदि तुम्‍हारा पुत्र या बैल कुएँ में गिर पड़े, तो तुम लोगों में ऐसा कौन है, जो उसे विश्राम के दिन ही तुरन्‍त बाहर न निकाल ले?”#लू 13:15; मत 12:11 6और वे इसका कोई उत्तर नहीं दे सके।
नम्रता और आतिथ्‍य
7येशु ने निमंत्रित व्यक्‍तियों को मुख्‍य-मुख्‍य स्‍थान चुनते देख कर उन्‍हें यह दृष्‍टान्‍त सुनाया,#मत 23:6 8“विवाह में निमन्‍त्रित होने पर सब से अगले स्‍थान पर मत बैठो। कहीं ऐसा न हो कि मेजबान ने तुम से अधिक प्रतिष्‍ठित व्यक्‍ति को निमन्‍त्रित किया हो#नीति 25:6 9और जिसने तुम दोनों को निमन्‍त्रण दिया है, वह आ कर तुम से कहे, ‘इन्‍हें अपनी जगह दीजिए’। तब तुम्‍हें लज्‍जित हो कर सबसे पिछले स्‍थान पर बैठना पड़ेगा। 10इसलिए जब तुम्‍हें निमन्‍त्रण मिले, तो जा कर सबसे पिछले स्‍थान पर बैठो, जिससे निमन्‍त्रण देने वाला आ कर तुम से यह कहे, ‘बन्‍धु! आगे बढ़ कर बैठिए।’ इस प्रकार सब अतिथियों के सामने तुम्‍हारा सम्‍मान होगा; 11क्‍योंकि जो अपने आप को बड़ा मानता है, वह छोटा किया जाएगा और जो अपने आप को छोटा मानता है, वह बड़ा किया जाएगा।”#लू 18:14; मत 23:12
परोपकार का उपदेश
12फिर येशु ने अपने निमन्‍त्रण देने वाले से कहा, “जब तुम दोपहर या रात का भोज दो, तब न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्‍बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्‍हें निमन्‍त्रण दे कर बदला चुका दें। 13पर जब तुम भोज दो, तो गरीबों, लूलों, लंगड़ों और अन्‍धों को बुलाओ।#व्‍य 14:29 14तब तुम धन्‍य होगे; क्‍योंकि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं होता और तुम्‍हें धार्मिकों के पुनरुत्‍थान के समय बदला चुका दिया जाएगा।”#यो 5:29
महाभोज का दृष्‍टान्‍त
15साथ भोजन करने वालों में किसी ने यह सुन कर येशु से कहा, “धन्‍य है वह, जो परमेश्‍वर के राज्‍य में भोजन करेगा!”#लू 13:29 16येशु ने उसे उत्तर दिया, “किसी मनुष्‍य ने एक बड़े भोज का आयोजन किया और बहुत-से लोगों को निमन्‍त्रण दिया।#मत 22:2-10 17भोजन के समय उसने अपने सेवक द्वारा निमन्‍त्रित लोगों को यह कहला भेजा कि आइए, क्‍योंकि अब सब कुछ तैयार है। 18लेकिन सब के सब बहाना करने लगे। पहले ने सेवक से कहा, ‘मैंने खेत मोल लिया है और मुझे उसे देखने जाना है। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’ 19दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़े बैल खरीदे हैं और उन्‍हें परखने जा रहा हूँ। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’ 20और एक ने कहा, ‘मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’#1 कुर 7:33 21सेवक ने लौट कर यह सब अपने स्‍वामी को बताया। तब घर के स्‍वामी ने क्रुद्ध होकर अपने सेवक से कहा, ‘शीघ्र ही नगर के बाजारों और गलियों में जा कर गरीबों, लूलों, अन्‍धों और लंगड़ों को यहाँ ले आओ।’ 22जब सेवक ने कहा, ‘स्‍वामी! आपकी आज्ञा का पालन किया गया है; किन्‍तु और भी जगह शेष है,’ 23तो स्‍वामी ने सेवक से कहा, ‘सड़कों और बाड़ों की ओर जाओ और लोगों को भीतर आने के लिए बाध्‍य करो, जिससे मेरा घर भर जाए; 24क्‍योंकि मैं तुम सबसे कहता हूँ, उन निमन्‍त्रित लोगों में कोई भी मेरे भोजन का स्‍वाद नहीं चख पाएगा’।”
शिष्‍य बनने का मूल्‍य : आत्‍मत्‍याग
25येशु के साथ-साथ एक विशाल जनसमूह चल रहा था। उन्‍होंने मुड़ कर लोगों से कहा, 26“यदि कोई मेरे पास आता है#मत 10:37-38 और अपने माता-पिता, पत्‍नी, सन्‍तान, भाई-बहिनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्‍य नहीं हो सकता।#व्‍य 33:9-10; लू 18:29-30; यो 12:25 27जो अपना क्रूस उठा कर नहीं ले जाता और मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्‍य नहीं हो सकता।#लू 9:23
28“तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर खर्च का हिसाब न लगाए और यह न देखे कि क्‍या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है? 29कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह निर्माण-कार्य, पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें, 30‘इस मनुष्‍य ने निर्माण-कार्य प्रारम्‍भ तो किया, किन्‍तु यह उसे पूरा नहीं कर सका।’
31“अथवा कौन ऐसा राजा होगा जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि जो राजा बीस हजार सैनिकों की फौज के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्‍या वह दस हजार सैनिकों की फौज से उसका सामना कर सकता है? 32यदि वह सामना नहीं कर सकता है तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेजकर उससे सन्‍धि का प्रस्‍ताव करेगा।
33“इसी तरह तुम में से जो व्यक्‍ति अपना सब कुछ नहीं त्‍याग देता, वह मेरा शिष्‍य नहीं हो सकता।
नमक का दृष्‍टान्‍त
34“नमक अच्‍छा है, किन्‍तु यदि वह अपना गुण खो दे, तो वह किस प्रकार फिर सलोना किया जाएगा?#मत 5:13; मक 9:50 35वह न तो भूमि के किसी काम का रह जाता है और न खाद के। लोग उसे बाहर फेंक देते हैं। जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।”

Atualmente selecionado:

लूकस 14: HINCLBSI

Destaque

Partilhar

Copiar

None

Quer salvar os seus destaques em todos os seus dispositivos? Faça o seu registo ou inicie sessão