हे कपटी शास्त्री मन अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए! तुमन मन पोदीने, अउ सौप, अउ जीरा मन कर दसवां हिस्सा ला त देथा, लेकिन ब्यवस्था कर गंभीर गोएठ मन ला मने कि न्याय, अउ दया, अउ बिश्वास ला छोएड़ देहे हवा, चाहे रहिस कि एमन मन ला भी करत रहता, अउ ओमन ला भी झिन छोड़ता।