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मत्ती 23

23
शास्त्री अउ फरीसी मन कर आलोचना
(मरकुस 12:38-40; लूका 11:37-52; 20:45-47)
1तब यीशु हर भीड़ ले अउ अपन चेला मन ले कहिस, 2शास्त्री अउ फरीसी मन मूसा कर आसन मे बईठिन है; 3एकरे बर ओमन तुमन ले जे कुछ कही ओहिच ला करिहा, अउ मानिहा, लेकिन ओमन जईसन बुता झिन करिहा; काबर कि ओमन कहथे लेकिन नी करथे। 4ओमन मन एक एसन भारी बोझ ला जेमन मन ला उठाए बर कठिन है, बाएध के ओला लोग मन कर खांध मे रखथे, लेकिन अपन मन ओला अपन ओगली ले भी सरकेक नी चाहथे। 5ओमन मन अपन सबेच बुता ला लोग मन ला देखाए बर करथे: ओमन मन अपन ताबीज मन ला चवड़ा करथे अउ अपन कपरा मन कर कोर मन ला बगरा करथे। 6भोज मे मुख्य-मुख्य जगहा अउ अराधनालय मे मुख्य-मुख्य आसन, 7अउ बजार मन मे नमस्कार, अउ लोग मन ले गुरू कहलाए बर ओमन मन ला बड़िया लागथे। 8लेकिन तुमन गुरू झिन कहलईहा, काबर कि तुमन कर एगोठ गुरू है, अउ तुमन सबेच भाई हवा। 9अउ धरती मे कोनो ला अपन दाऊ झिन कईहा, काबर कि तुमन कर एगोठ दाऊ है, जेहर स्वर्ग मे है। 10अउ मालिक भी झिन कहलईहा, काबर कि तुमन कर एगोठ स्वामी है, मने कि मसीह। 11जेहर तुमन मे बड़खा होही, ओहर तुमन कर सेवक बनही। 12जे कोनो अपन आप ला बड़खा बनाही, ओला छोटे करल जाही: अउ जे कोनो हर अपन आप ला छोटा बनाही, बड़खा करल जाही।
13हे कपटी शास्त्री मन अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए! तुमन मैनसे मन कर बिरोध मे स्वर्ग कर राएज कर दूरा ला ढाकथा, न त अपन ही ओमे ढुकथा अउ न ओमे ढुकईया मन ला ढुके बर देथा। 14(हे कपटी शास्त्री अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए! तुमन बिधवा मन कर घर मन ला खाए देथा, अउ देखाए बर ढेरेच देरी तक प्रार्थना करत रथा: एकरे बर तुमन मन ला ढेरेच सजा मिलही)।
15हे कपटी शास्त्री मन अउ फरीसी मन, तुमन उपर हाए! तुमन एक झन ला अपन मत मे लाए बर सबेच पानी अउ जमीन मे फिरथा, अउ जब ओहर मत मे आए जाथे, त ओला अपन ले दूना नरक कर भागी बनाथा।
16हे अन्धवा अगुवा मन, तुमन उपर हाए! जे कहथा कि अगर कोनो मन्दिर कर कसम खाही त कुछ नही, लेकिन अगर कोनो हर मंदिर कर सोना कर कसम खाथे त ओकर ले बईंध जाही। 17हे मूर्ख अउ अन्धवा मन, कोन बड़खा है; सोना या मन्दिर जेकर ले सोना हर पवित्र होथे? 18फिर कहथा कि अगर कोनो बेदी कर कसम खाथे त कुछ नही, लेकिन जे भेंट ओमे है अगर कोनो ओकर कसम खाही त बईंध जाही। 19हे अन्धवा मन, कोन बड़खा है; भेंट या बेदी जेकर ले भेंट पवित्र होथे? 20एकर ले जेहर बेदी कर कसम खाथे, ओहर ओकर अउ जे कुछ ओमे है, ओकर भी कसम खाथे। 21जेहर मन्दिर कर कसम खाथे, ओहर ओकर अउ ओमे रहे बाला मन भी कसम खाथे। 22जेहर स्वर्ग कर कसम खाथे, ओहर परमेश्वर कर सिंहासन कर अउ ओमे बईठोईहा मन कर भी कसम खाथे।
23हे कपटी शास्त्री मन अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए! तुमन मन पोदीने, अउ सौप, अउ जीरा मन कर दसवां हिस्सा ला त देथा, लेकिन ब्यवस्था कर गंभीर गोएठ मन ला मने कि न्याय, अउ दया, अउ बिश्वास ला छोएड़ देहे हवा, चाहे रहिस कि एमन मन ला भी करत रहता, अउ ओमन ला भी झिन छोड़ता। 24हे अन्धवा अगुवा मन, तुमन मन मच्छर ला त छाएन देथा लेकिन ऊट ला लील जाथा।
25हे कपटी शास्त्री अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए! तुमन मन कटोरी अउ छीपा मन ला उपर ले त मांजथा लेकिन भीतर अन्धार अउ असंयम ले भरल आहे। 26हे अन्धवा फरीसी मन, आगू कटोरा अउ छीपा ला भीतरी ले मांजा कि ओमन मन ला बाहर ले भी साफ होए।
27हे कपटी शास्त्री मन अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए, तुमन मन चूना पोतल कबर कर नियर हा जेहर उपर ले त बड़िया दिखथे, लेकिन भीतरी मरल मन कर हाड़ा अउ सबेच नियर के कचरा मन ले भरिस आहे। 28एहिच नियर तुमन मन भी उपर ले लोग मन ला धर्मी दिखाई देथा, लेकिन भीतर कपट अउ अधर्म ले भरल हा।
29हे कपटी शास्त्री मन अउ फरीसी मन, तुमन मन पर हाए! तुमन अगमजानी मन कर कबर मन ला संवारथा अउ धर्मी मन कर कबर मन ला बनाथा। 30अउ कहथा, अगर हमन अपन बाप दादा मन कर दिन मन मे रहतेन त अगमजानी मन हत्या मे ओमन मन कर साझी झिन होतेन। 31एकर ले त तुमन मन अपन पर अपन ही गवाही देथा कि तुमन मन अगमजानी मन कर हत्यारा कर संतान हवा। 32तले तुमन अपन बाप-दादा मन कर पाप कर घड़ा पूरी तरह भईर देवा। 33हे साप मन, हे करैत मन कर छउवा मन, तुमन नरक कर सजा ले कईसे बचिहा? 34एकरे बर देखा, मैहर तुमन मन जग अगमजानी मन अउ ज्ञानी मन अउ शास्त्री मन ला भेजथो, अउ तुमन मन ओमन मन ले कुछ मन ला माएर डालिहा, अउ क्रूस पर चड़हईहा, अउ कुछ मन ला अपन अराधनालय मन मे कोड़ा मारिहा अउ एक नगर ले दूसर नगर मे खदेड़त फिरिहा। 35जेकर ले धर्मी हाबिल ले ले के बिरिक्याह कर बेटा जकर्याह तक, जेला तुमन मन्दिर अउ बेदी कर मांझा मे माएर देहे रहा, जेतेक धर्मी मन कर लहू धरती मे बहाल गईस है ओहर सबेच तुमन कर मूड़ मे पड़ही। 36मैहर तुमन मन ले सहिच कहथो, ये सबेच गोएठ ये समय कर लोग मन पर आए पड़ही।
यीशु कर यरूशलेम शहर पर बिलाप
(लूका 13:34-35)
37“हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तुमन मन जे अगमजानी मन ला माएर देथा, अउ जेमन तुमन मन जग भेजल गईन, ओमन मन उपर पखना मारथा। केतेक तोर मैहर चाहे कि जईसन मुरगी अपन छउवा मन ला अपन डेना मन कर खाल्हे जमा करथे, ओहिच नियर मैहर भी तोर छउवा मन ला जुटाथे, लेकिन तुमन मन नी चाहा। 38देखा, तुमन मन कर घर तुमन बर उजड़े बर छोएड़ देहल जाथे। 39काबर कि मय तुमन ले कहथो, कि अब ले जब तक तुमन नी कईहा, ‘धन्य हे ओहर, जेहर प्रभु कर नाव ले आथे’ तब तक तुमन मन मोला फिर कभो नी देखिहा।”

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मत्ती 23: SGJNT

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