ओहर केतेक समय तक ले ओकर नी मानिस लेकिन आखरी मे मन मे सोच के कहिस, ‘जब कि मैहर परमेश्वर ले नी डरथो, अउ न लोग मन कर परवाह करथो; तबो ले ये बिधवा हर मोला सतात रथे, एकरे बर मैहर ओकर न्याय ला चुकाहू, कहो एसन झिन होए कि घरी-घरी आए के आखरी ले मोर नाक मे दम झिन करे।’”