योहन 3
3
निकोदेमुस के साथ संवाद
1फरीसी सम्प्रदाय का एक मनुष्य था। उसका नाम निकोदेमुस था। वह यहूदियों का एक धर्मगुरु था।#यो 7:50; 19:39 2वह रात में येशु के पास आया और बोला, “गुरुजी, हम जानते हैं कि आप परमेश्वर की ओर से आए हुए गुरु हैं। आप जो आश्चर्यपूर्ण चिह्न दिखाते हैं, उन्हें कोई तब तक नहीं दिखा सकता, जब तक कि परमेश्वर उसके साथ न हो।”#मत 22:16 3येशु ने उसे उत्तर दिया, “मैं आप से सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई ऊपर से† जन्म न ले, तब तक वह परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता।”#मत 18:3; लू 17:21; 1 पत 1:23 4निकोदेमुस ने उनसे पूछा, “मनुष्य कैसे बूढ़ा हो जाने पर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश कर जन्म ले सकता है?” 5येशु ने उत्तर दिया, “मैं आप से सच-सच कहता हूँ; जब तक कोई जल और आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।#यहेज 36:25-27; इफ 5:26; तीत 3:5 6जो शरीर से उत्पन्न होता है, वह शरीर है और जो आत्मा से उत्पन्न होता है, वह आत्मा है।#यो 1:13; उत 5:3; भज 51:5 7आश्चर्य न कीजिए कि मैंने यह कहा कि आप को ऊपर से#3:3,7 अथवा, ‘दुबारा’ जन्म लेना आवश्यक है। 8वायु#3:8 मूल यूनानी शब्द में श्लेष है। उसके अर्थ (1) वायु और (2) आत्मा दोनों हैं। जिधर चाहती, उधर बहती है। आप उसकी आवाज सुनते हैं, किन्तु यह नहीं जानते कि वह किधर से आती और किधर जाती है। जो आत्मा से जन्मा है, वह ऐसा ही है।”#मक 4:41; प्रव 16:19
9निकोदेमुस ने उन से पूछा, “यह कैसे हो सकता है?” 10येशु ने उसे उत्तर दिया, “आप इस्राएल के गुरु हैं और ये बातें भी नहीं समझते! 11मैं आप से सच-सच कहता हूँ : हम जो जानते हैं, वही कहते हैं और हम ने जो देखा है, उसी की साक्षी देते हैं, किन्तु आप लोग हमारी साक्षी स्वीकार नहीं करते।#यो 7:16; 8:26,28; 12:49 12मैंने आप को पृथ्वी की बातें बतायीं और आप विश्वास नहीं करते। यदि मैं आप को स्वर्ग की बातें बताऊं, तो आप कैसे विश्वास करेंगे?#लू 22:67; प्रज्ञ 9:16-17
13“कोई व्यक्ति स्वर्ग पर नहीं चढ़ा। केवल एक, अर्थात् मानव-पुत्र जो स्वर्ग से उतरा है।#नीति 30:4; इफ 4:9; बारू 3:29 14जिस तरह मूसा ने निर्जन प्रदेश में साँप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव-पुत्र का भी ऊपर उठाया जाना अनिवार्य है,#गण 21:8-9; प्रज्ञ 16:5-7 15जिससे जो कोई विश्वास करता है, वह उसमें शाश्वत जीवन प्राप्त करे।#3:15 अथवा, “जो कोई उस पर विश्वास करता है, वह शाश्वत जीवन प्राप्त करे”। ”
येशु संसार के मुक्तिदाता
16“परमेश्वर ने संसार से इतना प्रेम किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करता है, वह नष्ट न हो, बल्कि शाश्वत जीवन प्राप्त करे।#रोम 5:8; 8:32; 1 यो 4:9 17परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा कि वह संसार को दोषी ठहराए। उसने उसे इसलिए भेजा है, कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे। #यो 5:22; 12:47; लू 19:10; प्रे 17:31
18“जो पुत्र में विश्वास करता है, वह दोषी नहीं ठहराया जाता है। जो विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; क्योंकि वह परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं करता।#यो 3:36; 5:24 19दोषी ठहराने का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कार्य बुरे थे।#यो 1:5,9-11; 12:48 20जो बुराई करता है, वह ज्योति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कार्यों के दोष प्रकट न हो जाएँ।#इफ 5:13 21किन्तु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो कि उसके कार्य परमेश्वर में किए गए हैं।”#3:21 कुछ विद्वानों के मतानुसार उद्धरण-चिह्न पद 15 पर समाप्त होता है।#1 यो 1:6; तोब 4:6
योहन की अन्तिम साक्षी
22इसके पश्चात् येशु अपने शिष्यों के साथ यहूदा प्रदेश में आए। वहाँ वह शिष्यों के साथ रहकर बपतिस्मा देने लगे।#यो 4:1-2 23योहन भी सलीम नगर के निकट एनोन में बपतिस्मा दे रहे थे, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था। लोग वहाँ आ कर बपतिस्मा ग्रहण करते थे।#मत 4:12 24योहन अभी बंदीगृह में नहीं डाले गए थे।#मत 14:3
25योहन के शिष्यों का किसी यहूदी धर्मगुरु के साथ शुद्धीकरण के विषय में वाद-विवाद छिड़ गया। 26उन्होंने योहन के पास जा कर कहा, “गुरुजी! देखिए, जो यर्दन नदी के उस पार आपके साथ थे और जिनके विषय में आपने साक्षी दी थी, वह बपतिस्मा देने लगे हैं और सब लोग उनके पास जाने लगे हैं।”#यो 1:26-34 27योहन ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता है।#इब्र 5:4 28तुम लोग स्वयं साक्षी हो कि मैंने कहा था, ‘मैं मसीह नहीं हूँ, किन्तु मैं उनसे पहले भेजा गया हूँ।’#यो 1:20,23,27; मक 1:2; मत 11:10 29जिसकी दुलहिन है वही दूल्हा है। दूल्हे का मित्र, जो उसके पास खड़ा रहता है और उसकी बात सुनता है, वह दूल्हे के स्वर से बहुत आनन्दित होता है। मेरा आनन्द ऐसा ही है और अब वह परिपूर्ण है।#मत 9:15; 22:2; यश 62:4 30यह अनिवार्य है कि वह बढ़ते जाएँ और मैं घटता जाऊं।”#2 शम 3:1
मसीह की श्रेष्ठता
31जो ऊपर से आता है, वह सर्वोपरि है। जो पृथ्वी से आता है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह सर्वोपरि है।#यो 8:23 32उसने जो कुछ देखा और सुना है, वह उसी की साक्षी देता है; किन्तु उसकी साक्षी कोई स्वीकार नहीं करता।#यो 3:11 33जो उसकी साक्षी स्वीकार करता है, वह इस बात को प्रमाणित कर चुका कि परमेश्वर सत्य है। 34जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर के ही शब्द बोलता है; क्योंकि परमेश्वर नाप-तौल कर पवित्र आत्मा प्रदान नहीं करता।#यो 1:33-34 35पिता पुत्र को प्यार करता है और उसने उसके हाथ में सब कुछ दे दिया है।#यो 5:20; 17:2; मत 11:27 36जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है। परन्तु जो पुत्र में विश्वास करने से इन्कार करता है, वह जीवन का दर्शन नहीं करेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है।#यो 3:18; लू 3:7; 1 यो 5:12
Àwon tá yàn lọ́wọ́lọ́wọ́ báyìí:
योहन 3: HINCLBSI
Ìsàmì-sí
Pín
Daako
Ṣé o fẹ́ fi àwọn ohun pàtàkì pamọ́ sórí gbogbo àwọn ẹ̀rọ rẹ? Wọlé pẹ̀lú àkántì tuntun tàbí wọlé pẹ̀lú àkántì tí tẹ́lẹ̀
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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Used by permission. All rights reserved worldwide.
योहन 3
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निकोदेमुस के साथ संवाद
1फरीसी सम्प्रदाय का एक मनुष्य था। उसका नाम निकोदेमुस था। वह यहूदियों का एक धर्मगुरु था।#यो 7:50; 19:39 2वह रात में येशु के पास आया और बोला, “गुरुजी, हम जानते हैं कि आप परमेश्वर की ओर से आए हुए गुरु हैं। आप जो आश्चर्यपूर्ण चिह्न दिखाते हैं, उन्हें कोई तब तक नहीं दिखा सकता, जब तक कि परमेश्वर उसके साथ न हो।”#मत 22:16 3येशु ने उसे उत्तर दिया, “मैं आप से सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई ऊपर से† जन्म न ले, तब तक वह परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता।”#मत 18:3; लू 17:21; 1 पत 1:23 4निकोदेमुस ने उनसे पूछा, “मनुष्य कैसे बूढ़ा हो जाने पर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश कर जन्म ले सकता है?” 5येशु ने उत्तर दिया, “मैं आप से सच-सच कहता हूँ; जब तक कोई जल और आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।#यहेज 36:25-27; इफ 5:26; तीत 3:5 6जो शरीर से उत्पन्न होता है, वह शरीर है और जो आत्मा से उत्पन्न होता है, वह आत्मा है।#यो 1:13; उत 5:3; भज 51:5 7आश्चर्य न कीजिए कि मैंने यह कहा कि आप को ऊपर से#3:3,7 अथवा, ‘दुबारा’ जन्म लेना आवश्यक है। 8वायु#3:8 मूल यूनानी शब्द में श्लेष है। उसके अर्थ (1) वायु और (2) आत्मा दोनों हैं। जिधर चाहती, उधर बहती है। आप उसकी आवाज सुनते हैं, किन्तु यह नहीं जानते कि वह किधर से आती और किधर जाती है। जो आत्मा से जन्मा है, वह ऐसा ही है।”#मक 4:41; प्रव 16:19
9निकोदेमुस ने उन से पूछा, “यह कैसे हो सकता है?” 10येशु ने उसे उत्तर दिया, “आप इस्राएल के गुरु हैं और ये बातें भी नहीं समझते! 11मैं आप से सच-सच कहता हूँ : हम जो जानते हैं, वही कहते हैं और हम ने जो देखा है, उसी की साक्षी देते हैं, किन्तु आप लोग हमारी साक्षी स्वीकार नहीं करते।#यो 7:16; 8:26,28; 12:49 12मैंने आप को पृथ्वी की बातें बतायीं और आप विश्वास नहीं करते। यदि मैं आप को स्वर्ग की बातें बताऊं, तो आप कैसे विश्वास करेंगे?#लू 22:67; प्रज्ञ 9:16-17
13“कोई व्यक्ति स्वर्ग पर नहीं चढ़ा। केवल एक, अर्थात् मानव-पुत्र जो स्वर्ग से उतरा है।#नीति 30:4; इफ 4:9; बारू 3:29 14जिस तरह मूसा ने निर्जन प्रदेश में साँप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव-पुत्र का भी ऊपर उठाया जाना अनिवार्य है,#गण 21:8-9; प्रज्ञ 16:5-7 15जिससे जो कोई विश्वास करता है, वह उसमें शाश्वत जीवन प्राप्त करे।#3:15 अथवा, “जो कोई उस पर विश्वास करता है, वह शाश्वत जीवन प्राप्त करे”। ”
येशु संसार के मुक्तिदाता
16“परमेश्वर ने संसार से इतना प्रेम किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करता है, वह नष्ट न हो, बल्कि शाश्वत जीवन प्राप्त करे।#रोम 5:8; 8:32; 1 यो 4:9 17परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा कि वह संसार को दोषी ठहराए। उसने उसे इसलिए भेजा है, कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे। #यो 5:22; 12:47; लू 19:10; प्रे 17:31
18“जो पुत्र में विश्वास करता है, वह दोषी नहीं ठहराया जाता है। जो विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; क्योंकि वह परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं करता।#यो 3:36; 5:24 19दोषी ठहराने का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कार्य बुरे थे।#यो 1:5,9-11; 12:48 20जो बुराई करता है, वह ज्योति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कार्यों के दोष प्रकट न हो जाएँ।#इफ 5:13 21किन्तु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो कि उसके कार्य परमेश्वर में किए गए हैं।”#3:21 कुछ विद्वानों के मतानुसार उद्धरण-चिह्न पद 15 पर समाप्त होता है।#1 यो 1:6; तोब 4:6
योहन की अन्तिम साक्षी
22इसके पश्चात् येशु अपने शिष्यों के साथ यहूदा प्रदेश में आए। वहाँ वह शिष्यों के साथ रहकर बपतिस्मा देने लगे।#यो 4:1-2 23योहन भी सलीम नगर के निकट एनोन में बपतिस्मा दे रहे थे, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था। लोग वहाँ आ कर बपतिस्मा ग्रहण करते थे।#मत 4:12 24योहन अभी बंदीगृह में नहीं डाले गए थे।#मत 14:3
25योहन के शिष्यों का किसी यहूदी धर्मगुरु के साथ शुद्धीकरण के विषय में वाद-विवाद छिड़ गया। 26उन्होंने योहन के पास जा कर कहा, “गुरुजी! देखिए, जो यर्दन नदी के उस पार आपके साथ थे और जिनके विषय में आपने साक्षी दी थी, वह बपतिस्मा देने लगे हैं और सब लोग उनके पास जाने लगे हैं।”#यो 1:26-34 27योहन ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता है।#इब्र 5:4 28तुम लोग स्वयं साक्षी हो कि मैंने कहा था, ‘मैं मसीह नहीं हूँ, किन्तु मैं उनसे पहले भेजा गया हूँ।’#यो 1:20,23,27; मक 1:2; मत 11:10 29जिसकी दुलहिन है वही दूल्हा है। दूल्हे का मित्र, जो उसके पास खड़ा रहता है और उसकी बात सुनता है, वह दूल्हे के स्वर से बहुत आनन्दित होता है। मेरा आनन्द ऐसा ही है और अब वह परिपूर्ण है।#मत 9:15; 22:2; यश 62:4 30यह अनिवार्य है कि वह बढ़ते जाएँ और मैं घटता जाऊं।”#2 शम 3:1
मसीह की श्रेष्ठता
31जो ऊपर से आता है, वह सर्वोपरि है। जो पृथ्वी से आता है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह सर्वोपरि है।#यो 8:23 32उसने जो कुछ देखा और सुना है, वह उसी की साक्षी देता है; किन्तु उसकी साक्षी कोई स्वीकार नहीं करता।#यो 3:11 33जो उसकी साक्षी स्वीकार करता है, वह इस बात को प्रमाणित कर चुका कि परमेश्वर सत्य है। 34जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर के ही शब्द बोलता है; क्योंकि परमेश्वर नाप-तौल कर पवित्र आत्मा प्रदान नहीं करता।#यो 1:33-34 35पिता पुत्र को प्यार करता है और उसने उसके हाथ में सब कुछ दे दिया है।#यो 5:20; 17:2; मत 11:27 36जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है। परन्तु जो पुत्र में विश्वास करने से इन्कार करता है, वह जीवन का दर्शन नहीं करेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है।#यो 3:18; लू 3:7; 1 यो 5:12
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Ìsàmì-sí
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Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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