पहाड़ी उपदेश नमूना
पहाड़ी उपदेश “परम आनंद” की बातों से आरंभ होता है (5:1-12) । इसको अंग्रेजी में Beatitudes कहतें हैं जो कि लैटिन शब्द Beatus से आया है जिसका अर्थ धन्य या आशीषित होता है ।
बहुत से लोगों के लिए ये परम आनंद की बातें इसलिए हैं कि कैसे हम आशीषित हो सकते हैं और हमें आशीषित होने के लिए क्या करना है । हम सोचते हैं : यदि हम स्वर्ग का राज्य प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें आत्मा में दुर्बल होना है , यदि हम विश्राम चाहते हैं तो हमें विलाप करना है , यदि हमें पृथ्वी का अधिकारी बनना है तो हमें नम्र और दीन होना है , यदि हम संतुष्ट होना चाहते हैं तो हमें धार्मिकता के लिए भूख और प्यास होनी चाहिए , यदि हम दया प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें भी दयालु होना है , यदि हम परमेश्वर को देखना चाहते हैं तो हमें मन से पवित्र होना है , यदि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाने चाहते हैं तो हमें मेल कराने वाला होना है ।
लेकिन क्या ऐसा ही है ? नहीं ।
असलियत में परम आनंद की बातें हमसे कुछ करने को नहीं कहती हैं । परम आनंद की बातें केवल हमारी मानवीय अवस्था बता रही हैं और सामान्य रूप से जो परिस्थिति है, और कैसे मसीह का आगमन हमारे अस्तित्व की अवस्था में अंतर लाता है ।
यीशु कह रहे हैं कि हम जो मन के दीन हैं, अब हम धन्य है और अब स्वर्ग के राज्य में हमारा हिस्सा है क्योंकि यीशु आ गया है ।
हम जो जीवन में दु:खी और शोकित हैं, अब विश्राम पायेंगे क्योंकि यीशु आ गया है ।
बहुत सी बार जीवन के संसाधनों और संपत्ति में हमारा कोई भी अधिकार या हिस्सा नहीं होता है लेकिन अब हम पृथ्वी पर सबसे धनी और कल्याणकारी हो गए हैं क्योंकि यीशु आ गया है ।
हम जो धार्मिकता का जीवन जीने में असफल और दुखी थे , अब हम परमेश्वर की धार्मिकता के आनंद से भरे जा सकते हैं ।
हम जो दूसरों पर दयालु हैं लेकिन खुद दया के अभिलाषी हैं लेकिन अब हम परमेश्वर की दया प्राप्त कर सकते हैं ।
हम, जो जीवन में और संसार में शुद्धता देखने के इच्छुक हैं, अब शुद्धता में भी शुद्ध को देखने वाले और जानने वाले होंगे अर्थात परमेश्वर के खुद के चेहरे की सुन्दरता, क्योंकि यीशु आ गया है ।
हम, जो शांति के लिए संसार में कार्यरत और प्रयत्नशील रहतें हैं मतभेदों के समूह , गलतफहमी और दो प्रकार की पहचान में जकड़ लिए जाते हैं , हम जो बिना पहचान के थे अब परमेश्वर द्वारा दी गई पहचाने में अपना नाम पुकार सकते हैं – अब हम परमेश्वर की संतान कहलाये जा सकते हैं ।
एक समय हम धन्य नहीं थे लेकिन अब हम धन्य हैं – यीशु आ गया है और हमने उसे पा लिया है !
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
इस क्रम में पहाड़ी उपदेशों को देखा जाएगा (मत्ती 5-7)। इससे पाठक को पहाड़ी उपदेश को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलेगी और उससे जुड़ी बातों को रोज़मर्रा के जीवन में लागू करने की समझ भी प्राप्त होगी ।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए RZIM भारत को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://rzimindia.in/