पहाड़ी उपदेश नमूना
![पहाड़ी उपदेश](/_next/image?url=https%3A%2F%2Fimageproxy.youversionapistaging.com%2Fhttps%3A%2F%2Fs3.amazonaws.com%2Fyvplans-staging%2F16621%2F1280x720.jpg&w=3840&q=75)
यीशु ने कहा कि वह पुराने नियम की व्यवस्था को पूरा करने आया है । उसने यह भी कहा कि उसके अनुयायिओं की धार्मिकता उस समय के सबसे अधिक धर्मी व्यक्तियों – शास्त्रियों और फरीसियों से बढ़कर होनी चाहिए । (5:17-20)
यीशु तब आगे इसे विस्तार से बताते हैं कि वास्तविक परिस्तिथियों में यह कैसा दिखता है । मत्ती 5:21-48 में जो यीशु ने कहा वह नियम नहीं हैं जिनका पालन उनके अनुयायिओं को धार्मिकता और वैधता के साथ करना है लेकिन यह सब वास्तविक जीवन के दृष्टान्त और उदाहरण हैं जिसके द्वारा यीशु सीख दे रहे हैं कि उनके अनुयायिओं को कैसा होना चाहिए ।
हत्या के सन्दर्भ में (पद 21-25), यीशु बताने चाहते हैं कि हत्या एक फल है जिसकी जड़ क्रोध है , हत्या लक्षण है जबकि बिमारी क्रोध है । इसलिए सबसे प्रभावित तरीका इससे निपटने का यह नहीं है कि सीधे जाकर इसे संबोधित किया जाए लेकिन गहराई से इसको संबोधित किया जाए – सीधे उस हाथ से न निपटकर उस ह्रदय से निपटा जाए जिसके अन्दर क्रोध का रोग पल रहा है ।
इसी तरह यीशु व्यभिचार के विषय बात करते हैं (पद 27-30), और गहराई में उसकी जड़ों को खोजते हैं । यीशु के लिए व्यभिचार एक लक्षण है जबकि इसकी बिमारी का कारण एक वासना से भरा ह्रदय और अभिलाषा से भरी आँखें हैं ।
अगली बात यीशु तलाक के बारे में करते हैं , वह यहाँ बता रहे हैं कि पुराने नियम में तलाक के लिए जो व्यवस्था थी वह सिर्फ एक अनुमति थी ; तलाक के लिए एक अनुमति, न कि इसके द्वारा तलाक को बढ़ावा दिया जाये या उसका समर्थन किया जाए ।
यीशु ने कहा कि उनके अनुयायिओं को सत्य्निष्ट होना चाहिए और ऐसे लोगों के रूप में जाने जायें कि जिनके लिए शपथ लेना भी आवश्यक न हो । वे ऐसे लोग हों जिनका ‘हाँ’ हाँ हो और जिनका ‘न’ न हो ।
यीशु तब आखिरी में प्रतिशोध के बारे में बात करते करते हुए पुराने नियम के पदों को बोलते हैं—“आँख के बदले आँख और दांत के बदले दांत” । हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि मूसा ने जो व्यवस्था पुराने नियम में दी थी वह न्याय के लिए एक सिद्धांत था – न्याय की समानता । मूसा एक मानक नहीं लेकिन एक सीमा को निर्धारित कर रहा था । ज्यादा से ज्यादा यह होना चाहिए कि – आँख के बदले आँख न कि आँख के बदले आँखें , दांत के बदले दांत न कि दांत के बदले दांतों को । यीशु, मूसा की व्यवस्था में मतभेद नहीं पैदा कर रहे हैं लेकिन उसके स्पष्ट अंदरूनी तर्क की ओर ध्यान को केन्द्रित कर रहे हैं जिसको यीशु ने अपनी सेवकाई और अपने जीवन में पूरा किया – अपने शत्रुओं को प्रेम करने का आदर्श ।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
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इस क्रम में पहाड़ी उपदेशों को देखा जाएगा (मत्ती 5-7)। इससे पाठक को पहाड़ी उपदेश को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलेगी और उससे जुड़ी बातों को रोज़मर्रा के जीवन में लागू करने की समझ भी प्राप्त होगी ।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए RZIM भारत को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://rzimindia.in/