सच्चा प्यार क्या है?नमूना
जैसा हम अनुभव करतें हैं ज़रूरी नहीं कि वो वास्तविक हो।
इस पर विचार करें: जैसा हम अनुभव करतें हैं ज़रूरी नहीं कि वो वास्तविक हो। हम बहुत आसानी से अपनी भावनाओं द्वारा धोखा खा जातें हैं। हम प्रेम करतें हैं या नहीं, हमारी भावनाओं से कहीं ज़्यादा, हमारे हाव-भाव तथा हमारा मनोभाव व्यक्त करता है। और यहाँ तक कि जब हम स्वयं का मूल्याँकन करतें हैं, अपनी दृष्टि की विकृति को देखतें हैं। हम दृष्टिहीन होतें हैं तथा मुश्किल से देख पातें हैं। हम एक दिन में एक या दो चीज़ों के आत्म-त्याग को ही देखतें हैं और तोभी बाकि का दिन हमारे उपकरणों तथा इच्छाओं में ही बीतता है।
आपके हाव-भाव क्या कहतें हैं?
जबकि हमारा जन्म तथा पालन-पोषण स्वार्थपरता एवं आत्म-केंद्रित संसार में हुआ है, तो ऐसे में हम सच्चा प्रेम कैसे प्राप्त कर सकतें हैं? इस अन्तर को हम कैसे पहचानेगें तथा इसकी शुरुआत कहाँ से करेंगें? जैसा परमेश्वर का स्वरूप है, हमे उसकी ओर देखना है क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। वही स्त्रोत है, और वह क्या करता है, तथा वह कौन है, इनके द्वारा प्रेम की परिभाषा तथा इसकी समझ हमे सही तरीके से मिलती है।
शुक्र है कि परमेश्वर का प्रेम श्रेष्ठता पर आधारित नहीं है। उसकी इस करुणा के लिए परमेश्वर का धन्यवाद हो क्योंकि हम में से कोई भी उसके प्रेम के योग्य नहीं है। परन्तु बड़ी कृपा से मसीह में हमें उसका प्रेम प्राप्त हुआ है। यदि ऐसा है, इस सच्चे प्रेम का स्त्रोत हम जानतें हैं। उद्धार होने के साथ हम उसके प्रेम को प्राप्त करतें हैं, और अनुग्रह के द्वारा से ही हमें यह प्रेम प्राप्त होता है--उसकी पवित्र आत्मा के द्वारा। इसलिए हम:
परमेश्वर से प्रेम तथा
दूसरों से प्रेम कर सकतें हैं।
इसका मतलब है हमारे सभी हाव-भाव का सोता प्रेम है।
क्या आप यीशु के प्रेम को जानतें हैं? क्या आपने परमेश्वर के प्रेम तथा उसके पुत्र यीशु मसीह को ग्रहण किया है? क्या आप सुसमाचार की वास्तविकता को जानतें हैं?
परमेश्वर की यह तीव्र इच्छा है कि हम बड़ी ही दीनता के साथ उसके प्रेम में प्रवेश करें और उसके प्रेम को प्राप्त करें। हम जहाँ भी हैं--दुःख में, आनंद में, निराशा में, विजय में, वह हमसे मिलेगा। उसकी यह इच्छा है कि हम इस बात को जानें कि वह हमसे सच्चा प्रेम करता है। और वह चाहता है कि हम उसके प्रेम पर विश्वास करें। हम अपने सम्पूर्ण ध्यान, अपने सारे भय, अपने सारे पापों, एयर अपनी सारी परेशानियों के साथ उसके समक्ष आने वाले हो सकें, और इन तमाम बातों को उसके चरणों में रखने वाले हो सकें और बदले में उसका अनुग्रह, करुणा, तथा प्रेम प्राप्त करने वाले हो सकें।
इस पर विचार करें: जैसा हम अनुभव करतें हैं ज़रूरी नहीं कि वो वास्तविक हो। हम बहुत आसानी से अपनी भावनाओं द्वारा धोखा खा जातें हैं। हम प्रेम करतें हैं या नहीं, हमारी भावनाओं से कहीं ज़्यादा, हमारे हाव-भाव तथा हमारा मनोभाव व्यक्त करता है। और यहाँ तक कि जब हम स्वयं का मूल्याँकन करतें हैं, अपनी दृष्टि की विकृति को देखतें हैं। हम दृष्टिहीन होतें हैं तथा मुश्किल से देख पातें हैं। हम एक दिन में एक या दो चीज़ों के आत्म-त्याग को ही देखतें हैं और तोभी बाकि का दिन हमारे उपकरणों तथा इच्छाओं में ही बीतता है।
आपके हाव-भाव क्या कहतें हैं?
जबकि हमारा जन्म तथा पालन-पोषण स्वार्थपरता एवं आत्म-केंद्रित संसार में हुआ है, तो ऐसे में हम सच्चा प्रेम कैसे प्राप्त कर सकतें हैं? इस अन्तर को हम कैसे पहचानेगें तथा इसकी शुरुआत कहाँ से करेंगें? जैसा परमेश्वर का स्वरूप है, हमे उसकी ओर देखना है क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। वही स्त्रोत है, और वह क्या करता है, तथा वह कौन है, इनके द्वारा प्रेम की परिभाषा तथा इसकी समझ हमे सही तरीके से मिलती है।
शुक्र है कि परमेश्वर का प्रेम श्रेष्ठता पर आधारित नहीं है। उसकी इस करुणा के लिए परमेश्वर का धन्यवाद हो क्योंकि हम में से कोई भी उसके प्रेम के योग्य नहीं है। परन्तु बड़ी कृपा से मसीह में हमें उसका प्रेम प्राप्त हुआ है। यदि ऐसा है, इस सच्चे प्रेम का स्त्रोत हम जानतें हैं। उद्धार होने के साथ हम उसके प्रेम को प्राप्त करतें हैं, और अनुग्रह के द्वारा से ही हमें यह प्रेम प्राप्त होता है--उसकी पवित्र आत्मा के द्वारा। इसलिए हम:
परमेश्वर से प्रेम तथा
दूसरों से प्रेम कर सकतें हैं।
इसका मतलब है हमारे सभी हाव-भाव का सोता प्रेम है।
क्या आप यीशु के प्रेम को जानतें हैं? क्या आपने परमेश्वर के प्रेम तथा उसके पुत्र यीशु मसीह को ग्रहण किया है? क्या आप सुसमाचार की वास्तविकता को जानतें हैं?
परमेश्वर की यह तीव्र इच्छा है कि हम बड़ी ही दीनता के साथ उसके प्रेम में प्रवेश करें और उसके प्रेम को प्राप्त करें। हम जहाँ भी हैं--दुःख में, आनंद में, निराशा में, विजय में, वह हमसे मिलेगा। उसकी यह इच्छा है कि हम इस बात को जानें कि वह हमसे सच्चा प्रेम करता है। और वह चाहता है कि हम उसके प्रेम पर विश्वास करें। हम अपने सम्पूर्ण ध्यान, अपने सारे भय, अपने सारे पापों, एयर अपनी सारी परेशानियों के साथ उसके समक्ष आने वाले हो सकें, और इन तमाम बातों को उसके चरणों में रखने वाले हो सकें और बदले में उसका अनुग्रह, करुणा, तथा प्रेम प्राप्त करने वाले हो सकें।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
सब जानना चाहतें हैं कि वास्तव में प्रेम क्या है। लेकिन बाइबिल प्रेम के विषय में क्या बताती है, कुछ लोग ही इस बात को जानते हैं। प्रेम, बाइबिल के मुख्य विषयों में से एक तथा मसीह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सदगुण है। थीस्लबेण्ड मिनिस्ट्रीज़ की ओर से यह पठन योजना, बाइबिल आधारित प्रेम के मायने तथा परमेश्वर और सब लोगों से कैसे बेहतर तरीके से प्रेम करें, इन बातों की खोज करती है।
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यह योजना हमें उपलब्ध कराने के लिए हम थिसलबेंड मिनिस्ट्री का शुक्रिया अदा करते हैं ! अधिक जानकारी के लिए कृप्या देखे: www.thistlebendministries.org