सही दिशा में उठाये कदमनमूना
आत्मिक बनाम शारीरिक
जब हम ठीक बात कहने और सही समय और सही जगह पर होने की बात करते हैं तो,चाहे वे सब चीजें हमें कितनी भी गलत क्यों न नज़र आयें,यीशु हमारे लिए प्रेरणा है। वह दुष्टात्मा से ग्रसित मनुष्य को छुटकारा प्रदान करने के लिए एक कब्रिस्तान में गया,वह पापियों के साथ उठा बैठा,और वह चार दिन के एक मुर्दे को जिलाने के लिए कब्र पर गया - देखा जाये तो ये सारे स्थान किसी के द्वारा स्वेच्छा से जाने के लिए चुने हुए स्थान नहीं दिखते हैं,लेकिन यदि आप यीशु के समान किसी लक्ष्य का पीछा करने वाले जन हैं तो कोई भी जगह आपके कब्जे और कोई भी जन आपकी पहुंच से बाहर नहीं है।
जब यीशु ने यरूशलेम में जाने की ठान ली थी,तो उसने पहले से ही अपने चेलों को उसके साथ होने वाली घटनाओं को बता दिया था,वरन उसने उन्हें अपनी मृत्यु और पुनरूत्थान के बारे में भी बता दिया था। इस बात को सुनकर पतरस झुंझलाया और उसने कहा,“नहीं,प्रभु,तेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हो सकता। तू तो परमेश्वर है! यदि तू मर गया,तो तेरे सारे अनुयायी तो टूट जायेंगे और तितर बितर हो जायेंगे। यह ‘यीशु आन्दोलन’ गतिहीन और असफल हो जाएगा,और फिर हमारा क्या होगा?”यीशु ने उसकी ओर मुड़कर पतरस से कहा,“तू मेरे लिए ठोकर का कारण है;तू स्वयं शैतान है क्योंकि तू परमेश्वर की योजना और उसके लक्ष्य को नहीं देख पा रहा है। तू बिल्कुल मरणहार मनुष्य के समान बातें करता है।”
तेरी आंखें कम देख पाती है,यहां पर जल्दी आपा खोने की बात नहीं हुई है और तू मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है। मेरे सामने से दूर हो जा,पतरस। मत्ती16:17में पतरस को सराहने मिलने बाद,उसे यहां पर लगता है कि जैसे उसे डांटा जा रहा है। जो कदम उसके शिक्षक और मार्गदर्शन की ओर से यरूशलेम की ओर जाते हुए अत्यधिक गलत कदम लग रहा था जहां पर लोग उसे फंसाने के लिए इन्तजार कर रहे थे वही उसकी विजय का प्रथम कदम था। केवल यीशु में ही गलत को सही करने,शाप को एक आशीष में बदलने की सामर्थ्य है। लोग यीशु की क्रूस पर भयावह मृत्यु को अन्त समझते हैं,लेकिन वह यीशु की महिमा और उस पर विश्वास करने वालों के उद्धार की केवल शुरूआत थी।
जब तक आप एक बीज को देख पाते हैं तब तक वह मृतक वस्तु है,लेकिन जब उसे ज़मीन में गाड़ कर मिट्टी से ढक दिया जाता है तो वहां पर चमत्कार होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यीशु की मृत्यु गलत हुई। परमेश्वर नहीं मरते,है न?
एक ‘शारीरिक’ मनुष्य इस घटना को व्यर्थ,बर्बर,समय और प्रयासों की भरपूर बर्बादी के रूप में देखता हैः भरी जवानी में एक आदमी की जान ले ली गयी,इतना घोर कष्ट,खून बहाना और दुःख-यह सब किस लिए?लेकिन ‘आत्मिक’ जन ने क्रूस से परे देखा,अर्थात बीज बोया जाना,मृत्यु से जीवन का फूंटना,लाभ महिमा,और मुकुट अर्थात प्रतिफल की फसल काटना। इस घटना से जुड़ी गणित पूरी तरह से गलत है-एक व्यक्ति के जीवन लिया गया और लाखों लोग परमेश्वर के राज्य में जुड़ गये;उसे दुःख और कष्ट उठाना पड़ा,लेकिन हमें आनन्द और ख़ुशी प्राप्त हुई । यह वास्तव में कितना बढ़ा आत्मिक सौदा है।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
यह जानना कि हमें क्या चाहिए और हमारे लक्ष्य की ओर बढ़ना कोई बुरी बात नहीं है, बेशर्ते हम परमेश्वर के वचन की ज्योति में चल रहे हों। बहुत से लोग सही दिशा में कदम उठाते हैं और उपलब्धि हासिल करने वाले बन जाते हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग किसी काम को करने की शुरूआत तो करते हैं लेकिन अन्त में पूर्ण विराम बन जाते हैं।
More
हम यह योजना प्रदान करने के लिए Rani Jonathan को धन्यवाद देना चाहते हैं। और अधिक जानकारी के लिए कृपया विजिट करें: http://ourupsdowns.blogspot.com/