सही दिशा में उठाये कदमनमूना
सौदा और विरोध
जब यहूदा इस्करियोती ने कुछ लोगों और अधिकारियों के हाथों यीशु को पकड़वाया तो उसका परिणाम अति भयानक हुआ। वह अपने स्वामी से नाराज़ हो गया था,जिसे इस संसार की रीति पर राजा बनने में कोई रूची नहीं थी,जिसे सोने और चांदी से कोई मोह नहीं था, और जिसे बाजारी बातों में कोई दिल्चस्पी नहीं थी। यहूदा को विश्वासघात करने पर मिले तीस चांदी के सिक्कों को आसानी से एक छोटे से थैले में रखा जा सकता था। क्या वह वास्तव में उसकी मज़दूरी थी?किस बात ने यहूदा को बदमाश बनाया?
क्या यह उसका धन या पद के प्रति मोह था?क्या वह इस धरती के राज्य में वित्त मंत्री बनना चाहता था?उसका मकसद जो भी रहा हो,जब उसने सोचा कि वह याजकों के पास जाकर एक सौदा तक करके बहुत अच्छा काम कर रहा था,तब वह एक पथभ्रष्ट प्रेरणा का शिकार था,जिसके तरह उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह शहर के याजकों को लज्जित करने वाले जन को नाश करने वाला एक उपकरण या माध्यम बन रहा है। लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि उसने ‘निष्पाप लहू’ को धोखा दिया है वह उठ खड़ा हुआ और फिर उसने आगे कोई काम नहीं किया।
बाद में,उसने फांसी लगा ली- दुविधा उसके लिए दुष्परिणाम बन गयी। तीन वर्ष से भी ज्यादा यीशु के साथ कंधे से कंधा मिलाने पर भी,वह असफलता का कोई भी सबक सीखने में असफल रहा। वह सिक्के गिनने में इतना व्यस्त था कि वह अपनी आशीषें गिनना ही भूल गया। भविष्यद्वक्ता योना भी यहूदा के समान था- वह परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने को तैयार था लेकिन अपनी ही शर्तों पर। जब उस से उसकी पसन्द के विरूद्ध एक लक्ष्य पर जाने के लिए कहा गया,तो वह वहां से भाग कर छुप या,लेकिन परमेश्वर के जी.पी.एस की नज़र उस पर हमेषा बनी हुई थी,और उसने उसे जीवन के कुछ सबक बिना चूके सिखाएं।
यदि हमारे कामों को आत्मिक तौर पर फलवन्त होना है तो उन्हें परमेश्वर की ओर से ग्रहणयोग्य ठहरना बहुत जरूरी है।
उत्पत्ति की पुस्तक में हम नूह के पुत्र,हाम द्वारा उसे नशे की हालत में देखने की रूचीकर घटना लिखी हुई है। इस रोचक दृश्य को देखकर,हाम जाकर जल्दी से अपने भाईयों को यह खबर सुनाता है। लेकिन शेम और येपेत,अपने बूढ़े पिता की इज्जत की मर्यादा का पालन करते हुए,एक चादर को अपने कंधों पर रखा और पीछे की ओर उलटा चलकर अपने पिता के नंगे तन को ढांक दिया,और वे अपना मुंह पीछे किये हुए थे इसलिए उन्होंने अपन पिता को नंगा नहीं देखा। यह लोगों और उनकी गलतियों के प्रति उनकी हृदय स्पर्शी परवाह व ध्यान को दर्शाता है।
यहां पर एक विरोधाभास है- पीछे की ओर चले फिर भी प्रगति करे (आत्मिक प्रतिफल मिलता है),प्रार्थना ने घुटने टेककर भी विजयी हो,चुपचाप खड़े होकर (केवल प्रार्थना करो) परमेश्वर के उद्धार को देखो। पापों और प्रलोभनों से अपने कदम वापस खींचना,गिरने पर फिर खड़े हो जाना,सहनशीलता,अनुग्रह और क्षमा को प्रगट करना ये सब सही दिशा में उठाये जाने वाले कदम हैं।
अपनी सारी चिन्ताओं को परमेश्वर पर डाल देना हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ कदम है। सहीं कदम उठाएं - और जियें।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
यह जानना कि हमें क्या चाहिए और हमारे लक्ष्य की ओर बढ़ना कोई बुरी बात नहीं है, बेशर्ते हम परमेश्वर के वचन की ज्योति में चल रहे हों। बहुत से लोग सही दिशा में कदम उठाते हैं और उपलब्धि हासिल करने वाले बन जाते हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग किसी काम को करने की शुरूआत तो करते हैं लेकिन अन्त में पूर्ण विराम बन जाते हैं।
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हम यह योजना प्रदान करने के लिए Rani Jonathan को धन्यवाद देना चाहते हैं। और अधिक जानकारी के लिए कृपया विजिट करें: http://ourupsdowns.blogspot.com/