निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबलनमूना

निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबल

दिन 22 का 365

हे प्रभु, कब तक?

क्या आपके जीवन में कभी ऐसा समय आया है जब आपने यह पूछा हो कि, ‘हे प्रभु, कब तक? ये संघर्ष और निराशा ‘कब तक’ चलेगी? ये आर्थिक समस्याएं कब तक चलेंगी? ये स्वास्थ्य की परेशानी कब तक रहेगी? संबंधों में ये मुश्किलें कब तक रहेंगी? मैं इस व्यसन से कब तक जूझता रहूँगा? यह गंभीर लालसाएं कब तक रहेंगी? इस नुकसान से उबरने में मुझे कितना समय लगेगा?  

 

कभी-कभी मैं और पीपा सेंट पीटर के ब्राइटन में जाते हैं, जो कि हमारी ही कलीसिया है. एक सभा के अंत में, एक महिला मेरे पास आई और मुझे बताया कि सैंतीस वर्षों से वह अपने पति के लिए प्रार्थना कर रही है मसीह पर विश्वास लाने के लिए. इन सैंतीस सालों तक वह कहती रही, ‘कब तक, हे प्रभु, कब तक?’

 

जब 2009 में सेंट पीटर फिर से खुला, तो उसके पति ने तय किया कि वह उसके साथ चर्च आना पसंद करेगा. जिस पल वह सेंट पीटर में आया, उसने महसूस किया कि वह घर आ गया है और उसने ‘नया जन्म’ पाया है. अब वह चर्च से प्यार करता है और हर हफ्ते चर्च में आता है. परमेश्वर ने उसकी पत्नी की विनती सुनी. हमारी पूरी बातचीत में वह अपने चेहरे पर आनंद व्यक्त करते हुए यही दोहरा रही थी: ‘कब तक, हे प्रभु, कब तक?’ अंत में, उसने अपनी प्रार्थना का उत्तर पाया.

 

‘कब तक, हे प्रभु,कब तक?’ हमारे आज के भजन के आरंभिक शब्द हैं. दाऊद लगातार चार बार पुकारता है, ‘कब तक......?’ (भजन संहिता 13:1-2).     

 

ऐसा समय भी आता है जब ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर हमें भूल गए हैं (व.1अ). ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना चेहरा छिपा लिया है (व.1ब). किसी अबोध्य कारण की वजह से हम अपने साथ उनकी उपस्थिति महसूस नहीं कर पाते. हर दिन संघर्ष भरा दिन लगता है – अपने विचारों से लड़ते हुए (व.2अ). हरदिन दु:खों से भरा लगता है (व.2ब). ऐसा लगता है कि हम हार रहे हैं और शत्रु हम पर जय पा रहा है (व.2क). 

 

ऐसे समय में आप कैसी प्रतिक्रिया करेंगे? 

भजन संहिता 13:1-6

आगे बढ़ते रहें

 

आज के भजन में हम चार बातों को देखते हैं जिसे आपको हर मुश्किल घड़ी में करते रहना चाहिये.

प्रार्थना करते रहें

दाऊद परमेश्वर को पुकारता रहा, ‘हे मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, मेरी आंखों में ज्योति आने दे ’ (व.3). वह परमेश्वर के सामने अपना दिल उंडेल देता है. यह दूर दिखाई दे तब भी प्रार्थना करना मत छोड़िये.

 भरोसा बनाए रखें

‘परन्तु मैं ने तो तेरी करूणा पर भरोसा रखा है;’ (व.5अ). जब चीजें अच्छी हो रही हों, तो अपेक्षाकृत आसान लगता है, लेकिन विश्वास की परीक्षा तब होती है जब ऐसा प्रतीत होता है कि चीजें अच्छी नहीं हो रही हैं.

 आनंद मनाते रहें

वह परीक्षा में आनंद नहीं मनाता, बल्कि परमेश्वर के उद्धार में. वह कहता है, ‘मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा’ (व,5ब). ‘मैं तेरे बचाव का उत्सव मना रहा हूँ’ (व. 5ब, एमएसजी). 

 आराधना करते रहें

वह हर चीजों से गुजर रहा था इसके बावजूद, दाऊद परमेश्वर की भलाई को देख पाया: ‘ मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊंगा, क्योंकि उसने मेरी भलाई की है’ (व.6ब). परमेश्वर ने उसके लिए जो भी किया था वह सब उसे याद है.

जब आप परमेश्वर की स्तुती और आराधना करने लगते हैं, तो वह आपकी समस्याओं का समाधान लाते हैं. कभी-कभी, मैंने अपने जीवन में पीछे देखना और परमेश्वर को धन्यवाद देना लाभदायक पाया है कि उन्होंने मुझे खुद के अनेक संघर्षों, निराशाओं और शोक से उबारा है और यह याद करना लाभदायक होता है कि उन्होंने इन सब में मुझ पर किस तरह भलाई की है. 

प्रभु, आज मैं आपकी आराधना करता हूँ. मेरे प्रति आपकी भलाई के लिए धन्यवाद. आने वाले सभी संघर्षों में आपके अटल प्रेम पर मैं विश्वास करता हूँ.  

मत्ती 15:10-39

यीशु का अनुसरण करते रहें

 

देरी परमेश्वर के वायदों को बेअसर नहीं कर सकती. परमेश्वर हमेशा हमारी स्थितियों को तुरंत नहीं बदलते. बीमारी और तकलीफें पूरी तरह से नाश नहीं की जाएंगी जब तक यीशु वापस न आ जाएं. ये कहानियाँ और हमारे चमत्कार के अनुभव और चंगाई, उसका पूर्वाभास हैं जो बाद में होने वाला है.

 

परमेश्वर की भलाई श्रेष्ठता से यीशु में प्रगट की गई है. एक बार फिर, इस पद्यांश में, हम यीशु की अद्भुत भलाई को और वह पाप, बीमारी और तकलीफों से कैसे निपटते हैं उसे देखते हैं. 

 

अपने मन को नया बनाते रहिये

 

·    यीशु कहते हैं कि हमारी परेशानी सामान्य चीजों को लेकर नहीं हैं, जैसे खाना (व.11). खाना अंदर जाता है और आपके शरीर से बाहर निकल जाता है (व.17). जो चीज आपको नुकसान पहुँचा सकती है वह अंदर से आती है – ‘जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है ’ (व.17). वास्तविक परेशानी आपके दिल में पाप है: ‘कि कुचिन्ता, हत्या, पर स्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलतीं है. यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, ’ (वव. 19-20अ).

 

·    यीशु के शब्दों की चुनौती यह है कि हालाँकि हम शरीर से हत्या या व्यभिचार नहीं करते, हम सब पहली ही बाधा में गिर जाते हैं. सबसे पहली बात जो यीशु ने कही है वह है ‘बुरे विचार’. हमारे पाप का हल बाहरी रीति-रिवाज नहीं हैं, जिस तरह से फरीसी संघर्ष कर रहे थे. केवल परमेश्वर ही मेरे मन को बदल सकते हैं. मुझे बदलने और पवित्र करने के लिए मुझे पवित्र आत्मा की मदद चाहिये.

 

चंगाई के लिए प्रार्थना करते रहें

·    अपने बच्चों को तड़पता हुआ देखने से ज्यादा कष्टदायक कोई चीज नहीं है. कनानी स्त्री की बेटी भयानक दर्द में थी (व.22). यह स्त्री अवश्य ही अपने दिल में रो रही होगी. 'कब तक, हे प्रभु, कब तक?’ लेकिन वह चंगाई के लिए विनती करती रही और उसने इस सच्चाई से निराश होने से इंकार कर दिया कि यीशु उसकी प्रार्थना का उत्तर देते नजर नहीं आ रहे थे. ‘पर वह आई, और उसे प्रणाम करके कहने लगी; हे प्रभु, मेरी सहायता कर’ (व.25).    

·    यीशु ने देखा कि उसका विश्वास बड़ा है और उसने उसकी बेटी को चंगा किया (व. 28). वह ‘लंगड़ों, अंधों, लूलों, गूँगों और अन्य कई लोगों को चंगा करते रहे’ (व.30).

 

 भूखों को तृप्त करते रहें

·    यीशु ने केवल बीमारों को ही चंगा नहीं किया (व.22 से आगे), बल्कि उन्हें भूख से पीड़ित लोगों की भी बेहद चिंता थी. वह कहते हैं, ‘मुझे इस भीड़ पर तरस आता है; क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उन के पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; ’ (व.32). 

·    यीशु बहुत छोटे से परंतु बहुत कुछ करने में सामर्थी थे. उन्हें बहुत कम भोजन दिया गया जिससे उन्होंने बड़ी भीड़ को खाना खिलाया. यदि आप उन्हें छोटी सी मात्रा देंगे, अपने जीवन और अपने स्रोतों का, तो वह उन्हें बढ़ाने में और महानता से उनका उपयोग करने में सामर्थी हैं.   

·    यदि यीशु ने थोड़ी सी भूख के लिए इतनी चिंता की, तो वह लाखों करोड़ों लोगों की कितनी चिंता करेंगे जो आज भी दुनिया में भूख और कुपोषण से पीड़ित हैं. यीशु के अनुयायी होने के नाते आज हमें भूखों के लिए कार्य करना है.

·    निश्चित ही हर कोई यीशु को मानेंगे. लेकिन कई फरीसी खेदित हुए (व.12) जब उन्होंने यीशु के बारे में सुना. यीशु ने जो कहा था यदि उससे लोग खेदित हुए, यदि आज मसीही जन और चर्च कहने लगेंगे तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बहुत से लोग खेदित होंगे.  

प्रभु, पीड़ित लोगों के लिए मुझे अपनी करूणा दीजिये, चाहें वे बीमारी से या भूख से या किसी अन्य कारण से पीड़ित हैं. आइये, पवित्र आत्मा.

उत्पत्ति 43:1-44:34

आशा बनाए रखें

 

याकूब, दाऊद की तरह पुकार सकता था: 'कब तक, हे प्रभ' (भजन संहिता 13:1अ). उसकी तकलीफें चलती ही जा रही थीं. वह बीस साल से अपने खोए हुए पुत्र के लिए दु:खी था. अब वहाँ पर भयंकर सूखा पड़ा था (उत्पत्ति 43:1) और अब उसे सबसे ज्यादा प्यारे पुत्र बिन्यामीन के खोने का दु:ख सता रहा था. उसने कहा, 'तुमने मुझ से बुरा बर्ताव किया? ' (व.6). सबसे ज्यादा दु:खी होकर वह कहता है, ' यदि मैं निर्वंश हुआ तो होने दो ' (व.14).  

 

अंतत: याकूब को परमेश्वर पर भरोसा करना पड़ा और उसने अपने पुत्र बेन्यामीन को जाने दिया. जब उसने ऐसा किया तो सब ठीक हो गया. अक्सर ऐसा ही होता है, जब तक कि हम स्थिति को  प्रभु के हाथों में नहीं सौंपते – शायद बदतर होने के डर से – कि प्रभु सबकुछ ठीक कर देंगे.

 

उत्पत्ति के इस भाग की कहानी बताने वाला व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान है. वह वेदना को बाहर निकालता है. यहूदा जानता था कि यदि पिता बिन्यामीन – के साथ साथ यूसुफ - को खो देंगे तो इससे शायद उनकी मृत्यु हो जाए. ' वह उस दु:ख के बारे में बताता है जो उसके पिता पर आ सकता था' (44:34). इन सब में, हम - पाठक - जानते हैं कि यूसुफ जिंदा है और यह कि उसके द्वारा सारे सपने पूरे होने वाले हैं (43:26-28). यूसुफ 'बहुत दु:खी हुआ' और उसे रोने के लिए एक स्थान देखना पड़ा (व.30).    

 

यूसुफ अपने भाइयों की परीक्षा लेता है. यहूदा बदल गया था. पहले उसने संवेदनाहीन ढंग से अपने भाई को दासत्व में बेच दिया था (37:26-27). अब वह अपने भाई को बचाने के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार है: ' सो अब तेरा दास इस लड़के की सन्ती अपने प्रभु का दास हो कर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपने भाइयों के संग जाने दिया जाए ' (44:33).

 

इस कहानी में अनपेक्षित घुमाव और मोड़ में अपने उद्देश्य को पूरा करते हुए परमेश्वर कार्य कर रहे हैं. वह हमेशा आपके चरित्र में कार्य कर रहे हैं और आपको इस योग्य बना रहे हैं ताकि जब आप पीछे मुड़कर देखें तो कहें कि, 'प्रभु ने मेरी भलाई की है ' (भजनसंहिता 13:6).   

 

जब हम इसे नये नियम की दृष्टि से पढ़ते हैं तो हमें याद आता है कि परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए अपने एकलौते पुत्र यीशु को भेजा. याकूब को अपने पूरे परिवार को बचाने के लिए अपने 'केवल' पुत्र (' वह अब अकेला रह गया', उत्पत्ति 42:38) बिन्यामीन को भेजना पड़ा

 

प्रभु, इस अद्भुत उपाय के लिए आपको धन्यवाद जिसमें आप हमारे जीवन में और इतिहास में अपने उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं. जब मैं पुकारूँ 'हे प्रभु, कब तक?', तो मेरी मदद कीजिये ताकि मैं यीशु का अनुसरण करता रहूँ, प्रार्थना करता रहूँ, विश्वास करता रहूँ, आनंद मनाता रहूँ, आराधना करता रहूँ और आप में अपनी आशा बनाए रखूँ.   

Pippa Adds

पीपा विज्ञापन

 

उत्पत्ति 43:1-44:34

 

 

यह पद्यांश बहुत ही मर्मस्पर्शी है और हमें अनिश्चित अंत वाले नाटक में छोड़ देता है. उन सब के द्वारा काफी नफरत, ईर्ष्या, कपट और अदयालुता की गई. यूसुफ यह जानने के लिए उनकी परीक्षा करता है कि उनके दिलों में क्या है: क्या वे बदल गए हैं? क्या वे अपने कार्यों पर पछता रहे हैं? जब यूसुफ ने देखा कि उसके भाई झुक कर प्रणाम कर रहे हैं, तो उसे यह कहने की इच्छा हुई होगी, ‘याद है वे सपनें.....? मैंने तुम से कहा था न....?’ हमारे प्रोत्साहन के लिए इसमें कुछ तो शामिल है, लेकिन इन्हें दूसरों से न कहें तो अच्छा है.

References

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।         

 

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

 

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है। 

दिन 21दिन 23

इस योजना के बारें में

निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबल

यह योजना एक वाचक को पुरे साल में प्रति दिन वचनों की परिपूर्णता में, पुराने नियम, नये नियम, भजनसंहिता और नीतिवचनोंको पढ़ने के सात सात ले चलती हैं ।

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