निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबलनमूना

निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबल

दिन 24 का 365

परमेश्वर से कैसे सुनें

कल्पना कीजिये कि आप एक डॉक्टर के पास जाकर कहते हैं, "डॉक्टर, मुझे बहुत परेशानी है: मेरी एंड़ी मुड़ गई है.... मेरी आँखें जल रही हैं..... मेरी ऊँगली सूज गई है.... मेरी कोहनी सूज गई है.... मेरी पीठ में दर्द है....’. तब अपनी सारी शिकायतें सुनाने के बाद आप अपनी घड़ी को देखकर कहते हैं, ‘हाय, मेरा समय तो खत्म हो रहा है. अब मुझे जाना होगा.’’ डॉक्टर कहना चाहता होगा, ‘एक सैकेंड रूको, क्या तुम सुनना चाहोगे कि मुझे क्या कहना है?’

 

यदि हम परमेश्वर से कहें और उनकी कभी न सुनें, तो हम भी वही गलती कर रहे हैं. हम सब कह देते हैं, पर हम सच में उनकी सुनते नहीं हैं. लेकिन परमेश्वर के साथ हमारा संबंध दो-तरफा बातचीत के लिए बना है. जब मैं प्रार्थना करता हूँ, तो मुझे उन विचारों को लिखने में मदद मिलती है, जो परमेश्वर की आत्मा से मेरे मन में आते हैं.

 

मीड़्या से भरे युग में, बहुत सी आवाजें हमारे पास आती हैं जैसे टीवी, रेडियो, इंटरनेट, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ईमेल और टेक्स्ट संदेश. हमारे पास परिवार, दोस्त और सहयोगियों की आवाजें भी आती हैं. और कभी-कभी शौतान की आवाज भी आती है जो हमें परमेश्वर के शब्दों पर अविश्वास करने और संदेह करने के लिए कहता है जिसे परमेश्वर ने हमारे दिल में डाला है. 

 

हर तरह की आवाजों और जीवन की व्याकुलताओं के बीच परमेश्वर की आवाज कैसे सुनी जाए? 

नीतिवचन 3:1-10

वचनों में परमेश्वर की आवाज सुनें

 

मुख्य तरीका जिससे परमेश्वर हम से बात करते हैं उसे उन्होंने पवित्र शास्त्र में पहले ही कह दिया है -  उनकी ‘शिक्षा’ और उनकी ‘आज्ञाएं’ (व.1). जब आप बाइबल पढ़ते हैं, तो प्रार्थना कीजिये कि परमेश्वर आपसे बात करें और आप उनकी आवाज को सुन पाएं.  

 

‘खुद से अनुमान लगाने की कोशिश मत कीजिये. आप जो भी करें, और जहाँ भी जाएं उसमें परमेश्वर की आवाज सुनिये. वही हैं जो आपको सही पटरी पर रखेंगे (वव. 5-6, एमएसजी).

 

परमेश्वर के वचनों को याद करना एक तरीका है जिससे आप अपने ‘हृदय की तख्ती पर’ प्रभु के वचन लिख सकते हैं (व.3). मैंने और पीपा ने इन वचनों को अपनी सुहागरात में सीखा और उनके द्वारा जीने की कोशिश की.    

 

 ‘प्रेम और ईमानदारी’ द्वारा मार्गदर्शित रहें

 

·       हम जो भी निर्णय लें, यह हमारा मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत होना चाहिये. ‘प्रेम और ईमानदारी’ (व.3, एमएसजी) हमारे दिल की गहराई में बसी रहनी चाहिये. ईमानदारी मतलब उदाहरण के लिए, दूसरों के बारे में बात करना जैसे कि वे उपस्थित हैं. हम उनमें भरोसा बनाते हैं जो हमारी ईमानदारी में उपस्थित होते हैं जबकि वे उपस्थित नहीं रहते. यदि आप इस तरह जीएं, तो परमेश्वर आपको अच्छी इज्जत देने का वायदा करते हैं, ‘परमेश्वर की दृष्टि में और लोगों की दृष्टि में’ (व.4, एमएसजी). 

 

  परमेश्वर की ओर जाएं! बुराई से दूर रहें!

·       अभिमानी बनने और खुद को बुद्धिमान समझने के बजाय हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिये. परमेश्वर का भय मानने से, उनके लिए आदरपूर्ण भावना रखने से, यह हमें परमेश्वर के पास जाने में मदद करता है! और बुराई से दूर रहने में भी मदद करता है! (व.7, एमएसजी). परमेश्वर वायदा करते हैं कि यह तुम्हारे शरीर को स्वास्थ्य और हड्डियों को पोषण देगा’ (व.8). दूसरे शब्दों में, आत्मिकता और भौतिकता के बीच गहरा संबंध है.    

उदारता से देने वाले बनें  

·       यह सच में मायने रखता है कि आप अपने धन का क्या करते हैं. परमेश्वर को दीजिये, ‘प्रथम और उत्तम’ (व.9, एमएसजी) (यानि अपनी कमाई का पहला हिस्सा ना कि आखिरी). मैंने पाया है कि यह एक असाधारण सिद्धांत है; कि यदि आप अपने देने में सही हैं, तो आप इस सच्चाई को साकार होता हुआ पाएंगे कि परमेश्वर आपकी सारी जरूरतों को पूरा करते हैं. ‘ इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुंडों से नया दाखमधु उमड़ता रहेगा’ (व.10).  

प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं आपके वचनों को केवल पढ़ने वाला न बनूँ, बल्कि उन्हें सीखूँ और उनके द्वारा जीऊँ और आपके नाम की महिमा करुं.

मत्ती 16:21-17:13

यीशु के शब्दों द्वारा परमेश्वर की आवाज सुनें

 

यीशु के शब्द परमेश्वर के वचन हैं. परमेश्वर कहते हैं, ‘उनकी सुनों’ (17:5). जब आप यीशु के शब्दों को पढ़ें और उन्हें अपने दिल में ले जाएं, तो आप परमेश्वर को सुनेंगे.

 

यीशु अपने शिष्यों को चेतावनी देते हैं कि हमले की अपेक्षा करें. हम कभी अपमान से नहीं बच सकते (16:21). इस पद्यांश में दो बार यीशु ने अपने शिष्यों को उन कष्टों के बारे में बताया जिसका अनुभव वह करने वाले थे – उन्हें क्रूस और पुनरूत्थान के बारे में समझाते हुए (16:21.17:9-12).

 

फिर भी यीशु की सुनने के बजाय, पतरस ने उनसे बहस की (16:22). यीशु ने पतरस को डांटा जो कि गंभीर रूप से महत्वपूर्ण हैं. हम जब भी मुख्य निर्णय लें, तब हमें खुद से पूछना चाहिये कि हमारे मन में परमेश्वर की बातों पर मन लगाते हैं या मनुष्य की बातों पर मन लगाते हैं (व.23).  

 

हमें आराम और सुरक्षा का जीवन पाने का प्रयास नहीं करना चाहिये. यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि, ‘यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले. क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोए, वह उसे पाएगा. जो मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा?’ (वव. 24-26).

 

यीशु के पीछे चलना यानि अपने आप से इंकार करना है, यानि अपना क्रूस उठाकर उनके पीछे चलना है (व.24). जीवन में परिपूर्णता का यही तरीका है.

 

धन, एक तरह से बिल्कुल बेकार है. आपके धन का असली प्रमाण यह है कि यदि आप अपना सारा धन गंवा दें तब भी आपकी प्रतिष्ठा कितनी बनी रहती है. धन या संपत्ति के मुकाबले जीवन में आपका उद्देश्य ज्यादा महत्व रखता है. यदि आप अपना प्राण गंवा दें, और आपका जीवन नाश हो जाए तो इस दुनिया में सारा धन, इस दुनिया में सारी सफलता, इस दुनिया में सारी प्रतिष्ठा, और इस दुनिया में सारी ताकत का कोई मोल नहीं है (व.26). 

 

दूसरी तरफ, यदि आप यीशु पीछे चलें और अपना जीवन उन्हें समर्पित करें, तो आप अपने जीवन का उद्देश्य पा सकेंगे. यीशु के शब्द बहुत ही शक्तिशाली हैं. ऐसा समय कभी नहीं आया जब ‘उनकी आवाज सुनने’ से ज्यादा कुछ और महत्वपूर्ण रहा हो.

‘यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊंचे पहाड़ पर ले गए. और उनके सामने उनका रूपान्तर हुआ और उनका मुंह सूर्य की नाईं चमका और उनका वस्त्र ज्योति की नाईं उजला हो गया. और देखो, मूसा और एलिय्याह उनके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए. ’

 

जैसे मूसा और एलियाह यीशु के साथ बात कर रहे थे, उसी तरह से आप भी ‘यीशु के साथ बात करते हुए’ जीवन बिता सकते हैं. आप भी अपने जीवन में यीशु की उपस्थिति जान सकते हैं. उनके वचनों को पढ़ने और उन पर मनन करने के द्वारा, आप पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु के साथ बातचीत करने का अनुभव पा सकते हैं.  

 

एक तरह से आप, उनके चेहरे को देख सकते हैं, जो कि ‘सूर्य की नाई’ चमक रहा है (व.2). आप नीचे गिरकर उनकी आराधना कर सकते हैं (व.6). आप महसूस कर सकते हैं कि यीशु आपको सच में छू रहे हैं और कह रहे हैं, ‘डरो मत’ (व.7). और ऐसा समय भी आएगा जब आप अपनी आँखें उठाकर देखें और यीशु को छोड़ और किसी को न देखें (व.8). 

 

प्रभु, आपको धन्यवाद कि आप मेरे साथ बात करते हैं और आपने मुझे अपने पीछे चलने के लिए बुलाया है. आपका धन्यवाद कि जब आपकी खातिर मैं अपना जीवन देता हूँ, तो मैं इसे पाता हूँ. मुझे आपकी आवाज सुनने में मदद कीजिये.

उत्पत्ति 47:13-48:22

पूरा जीवन परमेश्वर को सुनते रहें

 

जब याकूब अपने जीवन के अंत में आया और तब उसने प्रभु की सारी आशीषों को याद किया (सारी परीक्षाओं और परेशानियों के बावजूद), ‘तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाकर प्रार्थना की ’ (47:31-. वह जान गया कि परमेश्वर ने सारा जीवन उसका मार्गदर्शन किया है. यह उस व्यक्ति की याद ताजा करने वाली छवि थी जिसने परमेश्वर के साथ करीबी संबंध बनाते हुए, उनकी और उनकी बुद्धि की सुनते हुए जीवन बिताया है. उसे याद आया कि परमेश्वर ने उसके साथ कैसे बात की और उसे अपने जीवन के लिए एक दर्शन दिया (48:3-4). वह कह सकता था, ‘वही परमेश्वर मेरे जन्म से ले कर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है’ (व.15).    

 

याकूब यह भी जान गया कि परमेश्वर ने उसके पुत्र यूसुफ की अगुआई असाधारण तरीके से की है. क्योंकि यूसुफ ने परमेश्वर को सुनना सीख लिया था, वह फिरौन के स्वप्न का अर्थ बता सका और इसके परिणाम स्वरूप उसने महान आशीष देखी. उसने न केवल परमेश्वर के लोगों की जान बचाई, बल्कि उसने सभी मिस्रियों की जान भी बचाई (47:25). जब यासूफ के जीवन का अंत करीब आया तो उसने भविष्य के लिए परमेश्वर के वायदों और आशीषों पर यकीन करते हुए यूसुफ के बच्चों को आशीष दी. 

 

जब इब्रानियों पुस्तक के लेखक ने याकूब के विश्वास भरे जीवन पर टिप्पणी की, तो उसने इस घटना को याद किया: ‘ विश्वास ही से याकूब ने मरते समय यूसुफ के दोनों पुत्रों में से एक को आशीष दी, और अपनी लाठी के सिरे पर सहारा लेकर दण्डवत किया ’ (इब्रानियों 11:21). जब वह अपने जीवन के अंतिम समय में आया तो, परमेश्वर पर याकूब का भरोसा डगमगाया नहीं. अंत में उसका विश्वास और भी बढ़ गया. 

 

आराधना में विश्वास योग्य बने रहिये और पूरा जीवन परमेश्वर की सुनिये. परमेश्वर पर विश्वास कीजिये कि वह आने वाले समय में आपका मार्गदर्शन करेंगे और आपकी अगुआई करेंगे, और यह कि वे लोग भी चरवाहा की आवाज को सुनेंगे (यूहन्ना 10:3-4 देखें). 

 

प्रभु, आपका धन्यवाद कि पूरे पवित्र शास्त्र में मैंने आपकी आवाज को सुनने के महत्व को देखा. आपको धन्यवाद कि आपने मुझसे मेरी अगुआई करने और मुझसे बात करने का वायदा किया है. जीवन  भर प्रतिदिन आपकी आवाज सुनने में मेरी मदद कीजिये.

Pippa Adds

पीपा विज्ञापन

 

‘सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना..... उसी को स्मरण करके सब काम करना, ’ (नीतिवचन 3:5-6). संपूर्ण दिल से, ‘सब कामों में संपूर्ण मन से’ – परमेश्वर को संपूर्ण समर्पण करना. मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ मामलों को जाँचने की जरूरत है, कि वे ‘पूरी तरह से’ परमेश्वर को समर्पित रहें.  

 

References

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।         

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

 

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।   

दिन 23दिन 25

इस योजना के बारें में

निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबल

यह योजना एक वाचक को पुरे साल में प्रति दिन वचनों की परिपूर्णता में, पुराने नियम, नये नियम, भजनसंहिता और नीतिवचनोंको पढ़ने के सात सात ले चलती हैं ।

More

अपने दिन Bible in One Year के साथ शुरू करें जो कि निकी और पिप्पा गंबेल की टिप्पणी के साथ लंदन के HTB चर्च से एक बाइबल पठन की योजना है।. हम इस योजना को प्रदान करने के लिए निकी और पिपा गंबेल, एचटीबी का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://alpha.org