मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएंनमूना

मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएं

दिन 3 का 7

हमारे चरित्र की परीक्षा

जो कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करता है वह परीक्षा के महत्व को जानता है। एक परीक्षा विद्यार्थी की प्रगति और उन्नति को ध्यान में रखते हुए इस मनसा के साथ सामने रखी जाती है और वह निर्धारित भी करती है कि क्या वह व्यक्ति अगले स्तर की शिक्षा के लिए तैयार है या नहीं। आत्मिक तौर पर, मरूस्थल एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा हमारी परख होती है ताकि हम यात्रा के अगले चरण के लिए तैयार हो सकें। हमारे जीवन में सबसे अधिक हमारे चरित्र की परीक्षा होती है। चरित्र दर्शाता है कि हम अकेले या अपने निजी जीवन में अर्थात जब हमें कोई नहीं देख रहा हो तब क्या हैं। यह हमारे जीवन का वह हिस्सा है जो अप्रत्यक्ष तौर पर हमारे बाहरी स्वरूप व हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है। एक व्यक्ति सफल,कुशल और प्रभावशाली हो सकता है लेकिन यदि उनके चरित्र में कमज़ोरियां हैं तब सारे ही गुण बेकार हो जाते हैं। हम में से कोई भी जन सिद्ध नहीं है। हम में से हर एक जन के जीवन में त्रुटियां हैं अतः हमें इस बात से हैरान नहीं होना चाहिए कि यीशु का अनुसरण करने से वह हमारे व्यक्तिगत तथा निजी जीवन की गहराई में चंगाई तथा बदलाव करने लगते हैं। और जब हम परमेश्वर के साथ संगति में बढ़ने लगते हैं तो यह बदलाव हमारे जीवन में दिखने लगता है।

मरूस्थल बहुत अद्भुत व रूचिकर तरीके से हमारे जीवन को आकार प्रदान करता है। लम्बे समय तक इन्तज़ार करने,नुकसान और खाली पन से भरी कठोर परिस्थितियों के द्वारा हमारे हृदय की परीक्षा होती है जिसके द्वारा हमारा चरित्र परखा जाता है। हम क्या सोचते हैं,हम क्या कहते हैं,और हम क्या करते हैं इन सभी बातों का सम्बन्ध इस बात से है कि हम अपने जीवन की गहराई में क्या हैं। मरूस्थल आलौकिक ढंग से हमारे भीतरी मनुष्यत्व से पर्दे को हटाता और हमें यह देखने में मदद करता है कि भीतर से असल में क्या हैं।

राजा दाऊद, अपने कई भजनों में, अपनी भावनाओं और भयावह ईमानदारी में अपने दोषपूर्ण स्वभाव के बारे में लिखता है। इन वाक्यों में शक्तिशाली चीज़ यह थी कि वह अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करता है और वह इस बात को जानता था कि परमेश्वर उसे बदलने के लिए सामर्थी है और उसका प्रेम इतना सुदृढ़ है कि कोई उसे परमेश्वर से अलग नहीं कर सकता।

यदि हम अपने आप को नज़दीकी से देखें तथा अपने चरित्र का मूल्यांकन करें तो क्या होगा। हमें क्या परिणाम प्राप्त होगा? क्या हम परमेश्वर की उपस्थिति में शुद्ध व पवित्र अवस्था में आने के लिए तैयार हैं?

अपेक्षित कार्यः

“मैं हूं” से प्रारम्भ होने वाले वाक्यों की सूची बनाएं तथा इस सत्र में जिन नकारात्मक चारित्रिक गुणों को आपने देखा उनके साथ समाप्त करें। इसका मकसद आपको लज्जित करना या दोषी ठहराना नहीं है वरन आपके जीवन के इन क्षेत्रों को यीशु के सुरक्षित तथा चंगाई भरे हाथों में सौंपना है।

प्रार्थना:

अनन्त परमेश्वर

मैं स्वीकार करता हूं कि मैं.....,..........,.........

मैं अपने पापों को आपके सामने मान लेता हूं। मैं आपसे मेरे पापों को क्षमा करने, मेरे घावों को चंगा करने, मेरे गलतियों को साफ करने और एक बार फिर से आपके सम्मुख शुद्ध हृदय के साथ खड़ा करने के लिए प्रार्थना करता हूं। मेरी प्रार्थनाओं को सुनने के लिए आपका धन्यवाद। आपके प्रिय पुत्र यीशु के नाम में मांगता हूं,

आमीन।

दिन 2दिन 4

इस योजना के बारें में

मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएं

मरूस्थल एक अवस्था है जिसमें हम खुद को भटका,भूला और त्यागा हुआ महसूस करते हैं। लेकिन इस उजड़ेपन में रूचीकर बात यह है कि यह नज़रिये को बदलने,जीवन रूपांतरित करने और विश्वास का निर्माण करने वाली होती है। इस योजना के दौरान मेरी प्रार्थना यह है कि आप इस जंगल से क्रोधित होने के बजाय इसे स्वीकार करें और परमेश्वर को आप में कुछ उत्तम कार्य करने दें।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए क्रिस्टीन जयकरन को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.instagram.com/christinegershom/