आशा का संदेशनमूना

आशा का संदेश

दिन 5 का 7

एक दीन उद्धारकर्ता

“पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।”(फ़िलिप्पियों 2:3)

लखनऊ शहर भारत की शालीनता और मेहमाननवाज़ी की बेताज राजधानी है। इसके बारे में एक चुटकुले में बहुत सुंदर ढंग से बताया गया है, जो कुछ इस तरह है: “लखनऊ रेलवे स्टेशन पर यात्री वहाँ से कभी बाहर क्यों नहीं निकलते?”“क्योंकि वे सब प्लेटफॉर्म पर एक-दूसरे से कहते रहते हैं, पहले आप!” बेशक, बाकी देशवासियों को भी दूसरों को पहले जाने देने की यह लखनवी तहज़ीब सीखनी चाहिए।

यीशु के अनुयायी होने के नाते, दीनता का हमारा मानदंड स्वयं यीशु ही हैं, जिन्होंने कहा था, "जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने" (मत्ती 23:11)। लेकिन उन्होंने यह बात सिर्फ़ शब्दों में ही नहीं कही, बल्कि उनके कार्यों और जीवन ने इसे हमारे लिए सिद्ध किया। सृष्टि के रचयिता यीशु ने चरनी में जन्म लिया मानव की समानता में हो गया, उन्होंने सेवक का स्वरूप धारण किया और मृत्यु तक आज्ञाकारी रहे—यहाँ तक कि क्रूस की मृत्यु तक (पद 6-8)। इसी आज्ञाकारी दीनता ने उनके पद को और ऊँचा किया और उन्हें संसार के उद्धारकर्ता के रूप में "सबसे ऊँचा स्थान" प्रदान किया (पद 9-11)।

दीन हृदय रखना आसान नहीं होता। जिनसे हम प्रेम करते हैं — जैसे परिवार या मित्रों से — उनके सामने दीनता दिखाना उतना कठिन नहीं है, परंतु अजनबियों की ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों के ऊपर रखना वास्तव में एक बहुत ही मुश्किल काम है (मरकुस 12:31)।

यीशु ने हमें सच्ची दीनता का स्वाभाव प्रदर्शित किया जब उन्होंने दूसरों को अपने से ऊपर रखा। हम भी इस क्रिसमस पर उनके इस अनुग्रहपूर्ण उदाहरण का अनुसरण कर सकें।

आप दूसरों की ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों के ऊपर कैसे रख सकते हैं? आप सभी लोगों के प्रति प्रेम कैसे दर्शा सकते हैं?

हे प्रभु, कृपया मुझमें वह दीनता उत्पन्न करें जो आपको प्रसन्न करे।

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