निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबलनमूना

निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबल

दिन 20 का 365

जीवन को कैसे मार्गदर्शन करें

हमारी कार के दोनों ओर बहुत खरोंचे थी। उनमें से बहुतों के लिए मैं स्वयं जिम्मेदार हूँ। (हाँलाकि मेरी याद इस विषय में सरलता से अस्थायी है) हमारी क्लीसिया के मैदान के एक ओर सँकरे प्रवेश द्वार से (स्टेयरिंग चलाने) में बहुत कठिनाई हो रही थी, यह उसी का परिणाम था। प्रवेश द्वार के एक ओर ईंट की दीवार है, इसका प्रमाण यह है कि बहुत सी कारों पर खरोंचें लगी हुई हैं जो सँकरे मार्ग में काँचो से बिना टकराए चलाए जाने में असफल हो रही हैं।

 

ज्ञान को ‘परिचालन की कला’ से परिभाषित किया गया है। जब आप जीवन से गुजरते हैं, तो आपको कठिन परिस्थितियों में से जाने के लिए दिशानिर्देश की जरूरत पड़ती है जिसके लिए बुद्धि की आवश्यकता है, ताकि आप खुद को और दूसरों को नुकसान पहुँचाने से रोक सकें।  

नीतिवचन 2:12-22

गलत मोड़ से बचे रहें।

 

अविश्वसनीयता (व 16-18) गलत मोड़  का उदाहरण है। बुद्धि आपको गलत मोड़ लेने से या गलत दिशा में जाने से रोकेगी (व 12 एमएसजी)। इसमे कोई संदेह नहीं कि बुद्धि आपको बुरे परिचालन से रोकेगी। यह आपको उस मार्ग पर जाने से रोकेगी जो कहीं नहीं जाता, बल्कि अस्थिर भूलभूलैया के चक्कर लगाता है और जिसका अंत बहुत बुरा होता है (व15 एमेएसजी)। बुराई बहुत जल्दी आकर्षित करती है, लेकिन वह बहुत ही हठीली होती है और अंधकार की ओर अगुवाई करती है।

 

विवाह परमेश्वर के सम्मुख  ...... की गयी वाचा है (व 17)। ‘वाचा’ बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है, जो इस्राएल के परमेश्वर के साथ संबंध को दर्शाता है – पुरानी वाचा और नई वाचा में हमारे संबंध उनके साथ हैं। वाचा एक लिखित शपथ है, जिसे तोड़ा नहीं जाना चाहिए।

 

व्यभिचार के संबंध में सम्मिलित होना दोनों ही ओर के लोगों के लिए गलत होता है। इस विषय में, स्त्री ने ‘जिसने अपने जवानी के साथी को छोड़ दिया’ और उसके कारण ‘ वह उस वाचा को भूल जाती है, जिसे उसने परमेश्वर के सम्मुख बाँधी थी’ (व 17)। वह व्यक्ति जिसने उसके साथ व्यभिचार किया है, वह बहकावे के प्रलोभन में आकर सही मार्ग से भटक जाता है, और अंत में वह मार्ग उसे मृत्यु की ओर ले जाता है (क-18)।

 

बुद्धि आपको सही मार्ग में संचालित करेगी (व 16 अ)। ‘ वह आपके पैरों को विश्वसनीय और सच्चे मार्ग पर रखेगी’ (व 20 एमएसजी)। वह आपको उन लोगों के साथ खराई से चलाएगी जो सीधे मार्ग पर चलते हैं (व 21एमएसजी)।

 

प्रभु, मुझे बुद्धि दीजिए और मेरी सहायता कीजिए कि मैं अपने जीवन को सीधे मार्ग पर ले जा सकूँ, जो जीवन की ओर जाता है।

मत्ती 14:1-21

सही मार्ग का निर्णय लेना

 

आपके जीवन का कठिन समय आपको गलत दिशा की ओर ले जा सकता है।लेकिन यदि आप सही मार्ग पर बने रहें, तो यह आपको अधिक सहानुभूति और बुद्धि की ओर ले जाएगा। 

 

नीतिवचन की पुस्तक हमारे सम्मुख बुद्धि के मार्ग और दुष्टता के मार्ग के बीच चुनाव करने को कहती है। यहाँ हम पढते हैं कि दोनों मार्गों को व्यवहार में लाने से ये किस तरह नजर आते हैं, यीशु और हेरोदेस के जीवन में।

 

दुष्टता का मार्ग

 

शासक हेरोदेस एक प्राधान्य के विरुद्ध था (21Bc-AD39)।  यह वह व्यक्ति था जिसने यीशु को उनकी मृत्यु के कुछ समय पहले अस्वीकार किया था (जब पीलातुस ने यीशु को हेरोदेस के पास भेजा) (लूका 23:8-12 देखें)।

 

हेरोदेस ने वही काम किया, जिसके विरुद्ध नीतिवचन के लेखक ने चेतावनी दी थी। उसने अपने भाई की पत्नी हेरोदिया के साथ व्यभिचार किया था। अपने दोषी विवेक के कारण, जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हेरोदेस का विरोध किया, तो उसने उसे बन्दी बनाकर कैदखाने में डाल दिया। (मत्ती 14:3)

 

हेरोदेस का जीवन उसकी संतुष्टी के चारों ओर घूमता हुआ प्रतीत हो रहा था। उसने अपनी एक पत्नी को निकाल कर दूसरी को रख लिया था। उसका पूरा ध्यान केवल खुद की व्यक्तिगत प्रसन्नता को पूरा करने पर लगा था, इसी कारण वह अन्य लोगों के दु:ख का कारण बना- जैसे कि उसके भाई फिलीपी के लिए। जब आपकी व्यक्तिगत प्रसन्नता अन्य लोगों की जरुरतों से बढ जाएँ, तब सावधान रहें।

 

अस्वीकार किए जाने का भय हमें समस्याओं की ओर ले जा सकता है। हेरोदेस युहन्ना को मार डालना चाहता था, लेकिन वह लोगों से डरता था (व 5)। फिर भी हेरोदेस को डर था कि उसके रात्री भोज सम्मेलन में आए हुए अतिथी उसका इंकार ना कर दें, और इसलिए हेरोदिया की बेटी की विनती के अनुसार युहन्ना बपतिस्मा वाले का सिर कटवाकर उसे दे दिया (व 8-10)।  यह निश्चय कर लें कि क्या सही है इससे बढ कर लोग आपके विषय में क्या सोचते हैं इसकी अनुमती ना दें। 

 

युहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने साहसपूर्वक कहा था, इसलिए हेरोदेस उसे मार डालना चाहता था (व 4)। परिवार में बुराई चल रही थी, क्योंकि उसकी भतिजी हेरोदेया की बेटी ने अपनी माँ के साथ मिलकर षडयंत्र रचा था कि युहन्ना का सिर अलग किया जाएं (व 6-10)।  वे दुष्ट्ता से इतने कठोर बन गए थे कि तंग आकर उन्होने युहन्ना बप्तिस्मा देने वाले का सिर थाल में मंगवा लिया (व-11)।

 

सत्य का मार्ग

 

युहन्ना के चेलों ने यीशु को इस भयानक घटना का समाचार दिया (व-12)। अपने चचेरे भाई की मृत्यु के बारे में सुनकर यीशु को गहरा धक्का लगा। बुरे समाचार के प्रति उनकी प्रतिक्रिया यह थी कि वे व्यक्तिगत रुप से एंकात स्थान में चले गए (व 13)। उन्हें अकेले में परमेश्वर के साथ रहने की जरुरत थी।

 

फिर भी, अपनी योजना में बाधा आने के बाबजूद, यीशु क्रोधित नहीं हुए (जैसा कि मैं अक्सर हो जाता हूँ) योजना बनाना अच्छा है, लेकिन परमेश्वर को अपनी योजना में हस्तक्षेप करने की अनुमति अवश्य दें। ‘क्योंकि उनकी दया के कारण’ (व-14) यीशु के पास बुद्धि ना केवल ‘बहाव के साथ जाने के लिए’ थी बल्कि सक्रियता से उत्तर देने के लिए भी थी। ‘उसने उनकी बीमारियों को चंगा किया’ (व-14)। यहाँ तक कि इन सब के बाद, उन्होने भीड़ से दूर जाने का अवसर नहीं लिया, बल्कि उन सभी को भोजन कराया - और यीशु ने अपने चेलों को चमत्कारी ढंग से भोजन कराना सिखाया (व-16.19-20)।

 

हम यीशु की असाधारण बुद्धि को देखते हैं, कि जब उन्होने उस दिन का मार्गदर्शन किया तो उस दिन का आरंभ दुखद हुआ था। लेकिन यीशु सफल रहें, उन्होने बीमारों को चंगा किया था और चमत्कारिक ढंग से उन्होने स्त्रियों और बच्चों के अलावा ‘5 हजार पुरुषों को खाना भी खिलाया था’ (व-22)। इस दिन को पूरे इतिहास में स्मरण किया गया और इसने लाखों के जीवनो में प्रभाव डाला।

 

प्रभु, मेरे जीवन के कठिन समय में आप मुझे सही मार्ग से भटकने न दें, बल्कि मुझे दया और बुद्धि की ओर  जरुर ले जाएं।

उत्पत्ति 40:1-41:40

जीवन की चुनौतियों द्वारा मार्गनिर्देशन

 

क्या आप कभी नकारे गये हैं,  क्या आपके साथ कभी अन्याय हुआ है, क्या कभी आप मित्र द्वारा गिराए गये हैं या कभी खुद को निराश परिस्थिती में पाया है?

 

स्मिथ विगल्सवर्थ कहते हैं कि ‘ अद्भुत लड़ाई का परिणाम अद्भुत विश्वास हैं। अद्भुत गवाही परीक्षा का नतीजा है। अद्भुत सफलता अद्भुत परीक्षा से ही मिलती है।’इसे हम युसूफ के जीवन में उदाहरण के रुप में देखेते हैं।

 

30 वर्ष की उम्र में यूसुफ पूरे मिस्र का अधिकारी बन गया (41:46)। फिरौन बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति की खोज कर रहा था पर उसने देखा कि यूसुफ के अलावा कोई योग्य नहीं है (व 33,39)।

लेकिन यूसुफ को पहले बहुत मुश्किलों से होकर गुज़रना पड़ा। यह सब कुछ उसके प्रशिक्षण का हिस्सा था। वह अपने भाइयों द्वारा अस्वीकार किया गया, उसके साथ अन्याय किया गया और उसे जेल में डाल दिया गया था। इतने पर भी उसकी पीड़ा का अंत नहीं हुआ।

परमेश्वर ने यूसुफ को अपने साथी कैदी पिलानेहारा और पकानेगारा के स्वप्नों का अर्थ बताने की समझ दी। वह उन्हें साफ और सही अर्थ बताने लगा। पकानेहारा को फाँसी दी गई लेकिन पिलानेहारा को छोड़ दिया गया और उसे उसका पद फिर से दिया गया। यूसुफ ने जो कुछ उससे कहा था, वह उसे छुड़वाए जाने के लिए काफी था, ताकि वह यूसुफ का वर्णन फिरौन से करना स्मरण रखे और जेल से बाहर निकाला जाए (40:14)। 

फिर भी, प्रधान पिलानेहारा यूसुफ के बारे में सबकुछ भूल गया (व.23)। यह उसके लिए काफी मुश्किल और निराशा से भरा रहा होगा। जब आपके दोस्त आपको लज्जित करे, तो यह कभी भी आसान नहीं होता। यूसुफ के मामले में, कैदखाने में दो साल तक और रहना था (41:1)।

जिनके पास यूसुफ जैसी खूबियाँ हैं उनके लिए कैदखाना असाधारण रूप से निराशा युक्त स्थान रहा होगा। वह अपने 20वे वर्ष में था, जो उसके जीवन में मुख्य समय था। वह यह नहीं जानता था कि वह यहाँ से छुटेगा भी या नहीं। मैं धीरजवंत व्यक्ति नहीं हूँ। मैं सोचता हूँ कि मैं वहाँ होता तो निराशा से पागल ही हो जाता।

फिर भी परमेश्वर यूसुफ को अद्भुत बातों के लिए तैयार कर रहे थे। संभवत: उस समय ऐसा प्रतीत नहीं होता। अपने साथी कैदी को खाना खिलाने के द्वारा, परमेश्वर ने उस स्थान से यूसुफ को पूरे देश को खाना खिलाने के लिए तैयार किया।

अंत में, जब फिरौन ने स्वप्न देखा जिसका वह अर्थ नहीं बता पा रहा था, तब पिलानेहारा ने कहा, ‘आज मुझे अपना दोष स्मरण आया है’ (व. 9)। यूसुफ को फिरौन के स्वप्न का अर्थ बताने के लिए बुलाया गया।

यूसुफ ने कहा, “मैं तो कुछ नहीं जानता... परमेश्वर ही फिरौन के लिए शुभ वचन देगा’ (व. 16)। हम देखते हैं कि यूसुफ किस प्रकार बुद्धि में बढ़ गया था। उसका आत्मविश्वास और अकड़ परमेश्वर पर निर्भर रहने से बदल गई थी। वह यहाँ पर नम्रता और विश्वास के असाधारण मिश्रण (दो गुण जो अक्सर एक साथ नहीं होते) के साथ व्यवहार करता है। हमें ऐसी नम्रता और विश्वास की आवश्यकता है, जब हम जीवन की चुनौतियों का सामना करते हैं: ‘मैं नहीं कर सकता... लेकिन परमेश्वर कर सकते हैं और वह अवश्य करेंगे’।

यूसुफ फिरौन के स्वप्न का अर्थ बताता है, (व. 25-32) और बताता है कि वह इसकी प्रतिक्रिया कैसे करे (व. 33-36)। यहाँ तक कि फिरौन भी पहचान लेता है कि यूसुफ में अद्भुत बुद्धि का विकास हुआ है। वह अपने अधिकारियों से कहता है कि, ‘क्या हम को ऐसा पुरुष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है मिल सकता है?’ (व. 38) क्योंकि उसने पहचान लिया कि यूसुफ जैसा कुशाग्र बुद्धि वाला और ज्ञानी व्यक्ति कोई नहीं है, फिरौन उसे संपूर्ण देश का अधिकारी बनाता है (व. 34-40)।

आपकी सारे संकट, परीक्षा और क्लेश में, परमेश्वर आपको तैयार कर रहे हैं। यूसुफ का बुद्धि में विकास हुआ। परिणाम स्वरूप, उसने एक योजना बनाई जिसके द्वारा लोग आर्थिक मंदी और गड़बड़ी में मार्गदर्शन पा सकें। हम में से बहुत से लोग इस समय सभी प्रकार की आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। परमेश्वर की सहायता और बुद्धि हर समय हमारी परिस्थितियों को नहीं बदलती, लेकिन आपके संघर्ष में ये आपका मार्गदर्शन करेंगे।

प्रभु, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आप मेरे जीवन के कठिन समय का उपयोग करते हैं। मेरी सहायता कीजिए कि मैं बुद्धि में बढ़ूँ, आप में निडर रहूँ और जीवन की चुनौतियों में मार्गदर्शित रह सकूँ।

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उत्पत्ति 40

मैं यूसुफ से बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ। बच्चे के रूप में थोड़ा अक्खड़ होने के बावजूद – उसे बिगाड़ने में उसके पिता की गलती थी – यूसुफ ने गलत कदम नहीं उठाया. खैर, पकानेहारा में थोड़ी और युक्ति होनी चाहिये थी। 

दूसरों के द्वारा उसके प्रति सभी गलतियाँ करने के बावजूद, उसमें परमेश्वर के प्रति जरा भी कड़वाहट या संदेह नहीं था. वह फिरौन के लिए आदर योग्य था, लेकिन उसने स्पष्ट कर दिया था कि यह परमेश्वर ने किया है, ना कि यूसुफ ने, जिसने स्वप्न का अर्थ बताया था। उसके बचपन की शेखी चली गई थी और सारी महिमा प्रभु को जाती है। बल्कि उसने रिहाई के लिए बातचीत करने की कोशिश नहीं की। इसमें कोई शक नहीं कि फिरौन प्रभावित हुआ था। अब यूसुफ उसके सामने नम्रता, और साहस से खड़ा था और परमेश्वर द्वारा उपयोग किये जाने के लिए तैयार था।     

 

 

References

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मैं यूसुफ से बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ। बच्चे के रूप में थोड़ा अक्खड़ होने के बावजूद – उसे बिगाड़ने में उसके पिता की गलती थी – यूसुफ ने गलत कदम नहीं उठाया. खैर, पकानेहारा में थोड़ी और युक्ति होनी चाहिये थी। 

दूसरों के द्वारा उसके प्रति सभी गलतियाँ करने के बावजूद, उसमें परमेश्वर के प्रति जरा भी कड़वाहट या संदेह नहीं था. वह फिरौन के लिए आदर योग्य था, लेकिन उसने स्पष्ट कर दिया था कि यह परमेश्वर ने किया है, ना कि यूसुफ ने, जिसने स्वप्न का अर्थ बताया था। उसके बचपन की शेखी चली गई थी और सारी महिमा प्रभु को जाती है। बल्कि उसने रिहाई के लिए बातचीत करने की कोशिश नहीं की। इसमें कोई शक नहीं कि फिरौन प्रभावित हुआ था। अब यूसुफ उसके सामने नम्रता, और साहस से खड़ा था और परमेश्वर द्वारा उपयोग किये जाने के लिए तैयार था।     

 

 

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निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबल

यह योजना एक वाचक को पुरे साल में प्रति दिन वचनों की परिपूर्णता में, पुराने नियम, नये नियम, भजनसंहिता और नीतिवचनोंको पढ़ने के सात सात ले चलती हैं ।

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