निक्की गम्बेल के साथ एक साल में बाईबलनमूना
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एक प्रभावशाली व्यक्ति कैसे बना जाए
जॉन मैक्सवेल लिखते हैं, 'लीडरशिप एक प्रभाव है,' जिनकी संस्थान ने पूरी दुनिया में दस लाख से भी ज्यादा लीडर्स को प्रशिक्षित किया है. वह बताते हैं कि, समाजशास्त्रीयों के अनुसार, सबसे ज्यादा अंतर्मुखी व्यक्ति भी अपने पूरे जीवन काल में 10,000 से भी ज्यादा लोगों को प्रभावित करेगा!
एक तरह से केवल एक ही लीडर होता है. हमारे आज के नये नियम के पाठ्यांश में, यीशु कहते हैं, ‘तुम्हारा एक ही गुरू है...... मसीह’ (मत्ती 23:10, एमएसजी). दूसरी तरफ हरएक मसीह को एक लीडर बुलाया जाता है, इस धारणा से कि दूसरे लोग आपको एक उदाहरण के रूप में देखेंगे. अलग-अलग तरह से दूसरों पर आपका प्रभाव पड़ता है. दूसरों को प्रभावित करने के लिए परमेश्वर द्वारा आपको बुलाया जाना एक सौभाग्य की बात है, लेकिन इसमें बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.
भजन संहिता 18:25-36
1. आत्मविश्वास
दाऊद एक ऐसे लीडर थे जिसमें आत्मविश्वास था. मगर यह, आत्मविश्वास नहीं, बल्कि परमेश्वर में विश्वास था: ‘क्योंकि तेरी सहायता से मैं सेना पर धावा करता हूँ; और अपने परमेश्वर की सहायता से शहरपनाह को लांघ जाता हूँ ’ (व.29). दाऊद जान जाते हैं कि उन्हें परमेश्वर की सहायता इन बातों के लिए चाहिये:
सुरक्षा:
‘वह अपने सब शरणागतों की ढाल हैं’ (व.30ब). ‘तू ने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है’ (व.35).
ताकत के लिए
‘यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबन्ध बान्धता है, और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। वही मेरे पैरों को हरणियों के पैरों के समान बनाता है, और मुझे मेरे ऊंचे स्थानों पर खड़ा करता है’ (वव.32-33).
प्रशिक्षण के लिए
‘वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है, ’ (व.34अ). मैं इस भजन को सन 1992 में पढ़ रहा था और इस वचन ने मुझे यह एहसास दिलाया कि प्रत्येक अल्फा के शुरू होने से पहले हमें लीडर्स को (छोटे समूह के आयोजनकर्ताओं और सहकर्मियों को) प्रशिक्षित करना चाहिये. यह ‘अल्फा ट्रेनिंग’ का मूल था.
मार्गदर्शन के लिए
‘तू ही मेरे दीपक को जलाता है; मेरा परमेश्वर यहोवा मेरे अन्धियारे को उजियाला कर देता है’ (व.28). ‘ईश्वर का मार्ग सच्चाई; यहोवा का वचन ताया हुआ है’ (व.30अ).
प्रभु, मुझे आपकी मदद चाहिये. मैं आपसे सुरक्षा, सामर्थ और मार्गदर्शन पाने के लिए प्रार्थना करता हूँ. मुझे अपने सिद्ध मार्ग पर चलाइये.
मत्ती 23:1-39
2. चरित्र
यीशु अपने दिनों के धार्मिक गुरूओं पर कड़े शब्दों में आलोचना करते हैं: ‘हे सांपो, हे करैतों के बच्चों’ (व.33). इस भाषा ने लोगों को पूरी तरह से धक्का पहुँचाया. अब ‘शास्त्रियों और फरीसियों’ के बारे में हमारी कल्पना पूरी तरह से अलग है जिस तरह से वे उस समय बर्ताव करते थे. वे लोग अत्यधिक साम्माननीय और आदरणीय लोग थे.
शास्त्री वकील हुआ करते थे. उन्होंने कानून को संरक्षित किया था और उनका अर्थ बतलाया था. उन्हें न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अधिकार प्राप्त था. काफी अध्ययन करने के बाद उन्हें नियुक्त किया जाता था. वे लोग गुरू थे और उनके आसपास चेले जमा हुआ करते थे.
फरीसी जनसाधारण लोग थे. वे मध्यम वर्ग से हुआ करते थे (सदूकियों के विपरीत जो कि ज्यादा वैभवशाली होते थे. धार्मिकता के कारण वे ज्यादा आदरणीय होते थे. उन्होंने अक्सर प्रार्थना और उपवास किया था. उन्होंने सभाओं में भाग लिया था. वे नियमित रूप से दिया करते थे. उन्होंने ‘खराई, और नैतिक’ जीवन जीया. उनका समाज में बहुत बड़ा प्रभाव था. साधारण लोगों द्वारा उनकी काफी प्रशंसा की जाती थी.
फिर भी, उनके कपटी होने के कारण यीशु उनकी आलोचना करते हैं : ‘इसलिये वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना; परन्तु उन के से काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं’ (व.3).
अच्छे प्रभावशाली व्यक्ति बनने के लिए यीशु के ‘सात श्राप’ हमें सात अच्छे गुण विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं :
सच्चाई
धार्मिक गुरूओं के कपटी होने के कारण यीशु उनकी आलोचना करते हैं (वव.3-4). वह कहते हैं, ‘परन्तु उन के से काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं। वे एक ऐसे भारी बोझ को जिन को उठाना कठिन है, बान्धकर उन्हें मनुष्यों के कन्धों पर रखते हैं; परन्तु आप उन्हें अपनी उंगली से भी सरकाना नहीं चाहते’ (वव.3ब-4). सच्चाई इसके विपरीत है, इसका मतलब है वही करना जिसका आप प्रचार करते हैं, और इस बात का ध्यान रखना कि आपके शब्द लोगों को उठाएं, ना कि उन्हें दोष और अन्य बोझ के तले दबा दें.
प्रमाणिकता
यीशु स्पष्ट रूप से उनकी आलोचना करते हैं (वव.5-7). वह उनसे कहते हैं, ‘वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं’ (व.5अ). लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि जब कोई नहीं देखता तब आप कैसे रहते हैं. यीशु परमेश्वर के साथ आपके ‘रहस्य’ जीवन के बारे में कह रहे हैं. परमेश्वर के साथ प्रमाणिक निजी जीवन बनाने का प्रयास करें.
नम्रता
यीशु पदों और पहचाने जाने से प्यार करने के विरूद्ध चेतावनी देते हैं (वव.8-11). यीशु आपको सचेत रहने के लिए कहते हैं ताकि आप ‘मुख्य जगहों’, ‘सभा में मुख्य स्थानों’ के प्रलोभन में न पड़ें (वव.6-7, एमएसजी). यीशु सचेत करते हैं कि, ‘तुम रब्बी न कहलाना; क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरू है: और तुम सब भाई हो’ (व.8). यह बहुत बड़ा प्रलोभन है लेकिन यीशु कहते हैं, ‘जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा’ (व.12). हमेशा खुद को ऊँचा करने के बजाय यीशु को ऊँचा उठाएं.
करूणा
दूसरों के लिए मार्ग में रूकावटें पैदा करने के लिए यीशु धर्म गुरूओं की आलोचना करते हैं (वव.13-15). ‘तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उस में प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करने वालों को प्रवेश करने देते हो’ (व.13). लीडर्स की भावना इसके ठीक विपरीत होनी चाहिये – जो हरएक के लिए खुला हो और उनका स्वागत करे.
यीशु स्वयं करूणा का उदाहरण स्थापित करते हैं. वह कहते हैं, ‘हे यरूशलेम, हे यरूशलेम...... कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे बालकों को इकट्ठा कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा ’ (व.37).
दर्शन
लीडर्स का दर्शन बड़ा होना चाहिये. यीशु धार्मिक गुरूओं की छोटी सोच और संकीर्णता की आलोचना करते हैं (वव.16-22). ‘मूर्खतापूर्ण तरीके से बाल की खाल खींचना!’ (व.19, एमएसजी). वे आँख का लठ्ठा नहीं देख पाते थे. आपको महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, परमेश्वर के दर्शन के लिए प्रार्थना करनी चाहिये और इससे भटकना नहीं चाहिये. परमेश्वर से दर्शन मांगिये जो इतना बड़ा हो कि परमेश्वर के बिना इसका पूरा होना असंभव लगे.
ध्यान केन्द्रित करना
उस पर ध्यान लगाएं जो सच में मायने रखता हो (वव.23-24). छोटी से बात में पकड़े जाना और विधि सम्मत होना टालें. यीशु कहते हैं, ‘हे अन्धे अगुवों, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊंट को निगल जाते हो’ (व.24). बजाय इसके ‘हमें व्यवस्था की गम्भीर बातों पर अर्थात न्याय, और दया, और विश्वास पर ज्यादा ध्यान देना है’ (व.23). अन्याय और गरीबी के विरूद्ध लड़ें; और अपने परिवारवालों और दूसरों के साथ ‘विश्वासयोग्यता’ दर्शाएं.
उदारता
यह लालच और असंयमता के विपरीत है, जिसकी यीशु निंदा करते हैं (वव.25-28). उनका आंतरिक जीवन, बाहरी जीवन से बहुत ही अलग था. यीशु आपको एक जैसा बने रहने के लिए बुलाते हैं – जैसे बाहर हैं वैसे ही अंदर होने के लिए (वव.27-28).
यह बहुत ही ऊँचा मापदंड है और उसे पाना बहुत मुश्किल है. यहाँ यीशु के शब्द ‘श्राप’ की चरम सीमा है (वव.29-36), इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि ये शब्द साधारण लोगों को नहीं कहे गये थे. यीशु ताकतवर अगुओं की निंदा कर रहे थे जो खुद को ‘ऊँचा करने’ की कोशिश कर रहे थे (व.12) और जिन्होंने ‘मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द कर दिया था’ (व.13).
हमें साधारण लोगों को या बल्कि उन अगुओं को धमकाने के लिए इन शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये जो सच में लोगों को यीशु बतलाने की कोशिश कर रहे हैं. वे इन शब्दों से चुनौती देते हैं – लेकिन यह चुनौती गलत लोगों की तरफ नहीं होनी चाहिये!
यीशु के शब्दों के बारे में विस्मयकारी बात यह है कि मानवीय रूप से देखा जाए तो वह बड़ी कमजोर स्थिति में थे और फिर भी वह अपने दिनों में अधिकार जमाने से नहीं डरे.
प्रभु, मुझे उन समयों के लिए क्षमा कीजिये जब मैं इन क्षेत्रों में असफल हुआ था. मुझे सच्चाई, प्रमाणिकता, नम्रता, करूणा, दर्शन, केंद्रित और उदारता का जीवन जीने में मेरी मदद कीजिये. जिस तरह से यीशु अपने शहर के बारे में चिंतित थे उसी तरह से मुझे भी चिंता करने में मदद कीजिये.
अय्यूब 33:1-34:37
3. आलोचना
जैसा कि रिक वारेन ने बताया है, ‘आलोचना, एक प्रभाव का मूल्य है. जब तक कि आप किसी को प्रभावित नहीं करते, कोई भी आपके बारे में चूँ चां नहीं कर सकता. लेकिन आपका प्रभाव जितना ज्यादा होगा.... आपके पास उतने ही ज्यादा शहर होंगे.’
बेचारा अयूब, जो कि अगुआई करने की स्थिति में था (अध्याय 1 देखें), उसे अपने आलोचकों से लगातार कड़ी निंदा सुननी पड़ी. यह ज्यादा परेशान करने वाली बात है क्योंकि यह उसके कथित ‘दोस्तों’ से आयी थी. आलोचना हमेशा सबसे ज्यादा दु:खदाई होती है जब यह उन लोगों से आती है जिन्हें अपना मित्र होना चाहिये था. यह बड़े दु:ख की बात है जब मसीही लीडर्स को आलोचना स्वयं चर्च से मिलती है – उनके कथित ‘दोस्तों’ से.
एलीहू की बातें सुनना अयूब के लिए सच में कष्टप्रद रहा होगा, जो कि उससे छोटा था फिर भी अपने खुद के अनुभव से उसने अयूब से मूर्खतापूर्ण बातें कीं, ‘मैं तुझे बुद्धि की बात सिखाऊंगा’ (33:33) पर ‘अय्यूब ज्ञान की बातें नहीं कहता, और न उसके वचन समझ के साथ होते हैं’ (34:35). और यह परामर्श देने के लिए, क्योंकि वह आलोचना से सहमत नहीं था, ‘वह अपने पाप में विरोध बढ़ाता है; ओर हमारे बीच ताली बजाता है, और ईश्वर के विरुद्ध बहुत सी बातें बताता है’ (व.37).
एलीहू, जैसे बहुत से आलोचक, ‘सोच विचार कर कहने’ और ‘अपने मन की बात सिधाई से प्रगट करने’ का दावा करते हैं (33:2-3). वह दावा करता है कि अन्य लोग उसके साथ सहमत हैं, ‘सब ज्ञानी पुरुष वरन जितने बुद्धिमान मेरी सुनते हैं वे मुझ से कहेंगे, कि अय्यूब ज्ञान की बातें नहीं कहता, और न उसके वचन समझ के साथ होते हैं’ (34:34-35).
हम खुद भी ऊपरी तरीके से परमेश्वर के लोगों का न्याय करने के जाल में फंस सकते हैं, जैसा कि एलीहू ने किया था. दूसरों की आलोचना करने खतरे से सावधान रहें.
हालाँकि यह बताया जा चुका है कि अब तक किसी भी आलोचक का स्मारक नहीं बना है, फिर भी यह हम सब को आलोचक बनने की चाहत से नहीं रोक पाता. आप दूसरों के बारे में क्या कहते हैं उसके प्रति बहुत सावधान रहिये. और यदि आपकी आलोचना की जा रही है, तो आश्चर्यचकित मत होइये.
प्रभु, मुझे दूसरों पर दोष लगाने से बचाकर रखिये. जो जीवन में संघर्ष कर रहे हैं उनके प्रति मुझे बुद्धि और संवेदनशीलता दीजिये. मुझे सच्चे गुरू, यीशु मसीह पर अपनी नजरें टिकाए रखने में, उनकी प्रभुता के अधीन होने में, उनके आदर्शों का अनुसरण करने में, और एक प्रभावशाली व्यक्ति बनने में मेरी मदद कीजिये.
Pippa Adds
मुझ में ज्यादा शारीरिक शक्ति नहीं है, मुझे यह सभी वचन अच्छे लगते हैं: ‘अपने परमेश्वर की सहायता से शहरपनाह को लांघ जाता हूं’ (भजन संहिता 18:29); ‘यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबन्ध बान्धता है’ (व.32); ‘मुझे मेरे ऊंचे स्थानों पर खड़ा करता है’ (व.33ब); ‘वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है’ (व.34); ‘तू ने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है’ (व.35अ); ‘तू अपने दाहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है’ (व.35ब). जब मैं थका हुआ महसूस करता हूँ, शारीरिक रूप से चीजों के ऊपर नहीं, तो ये शब्द मुझे सच में प्रोत्साहित करते हैं.
References
जॉन सी मैक्सवेल, डेवलपिंग द लीडर विथइन यू, (थोमस नेल्सन; 1 संस्करण, 2005)
रिक वारेन, मार्क ड्रिस्कोल के साथ हुई बातचीत के दौरान, द क्रिश्चियन पोस्ट, वॉरने, ड्रिस्कोल से: सभी बड़ी कलीसियाएं एक जैसी नहीं होतीं’, 27 अगस्त 2012. http://www.christianpost.com/news/warren-to-driscoll-not-all-megachurches-are-alike-80667/ last accessed January 2016] से लिया गया है।
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
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